पाठ – 5
यात्रियों के नजरिए
This post is about the detailed notes of class 12 History Chapter 5 yaatriyon ke najarie (Through the Eyes of Travellers) in Hindi for CBSE Board. It has all the notes in simple language and point to point explanation for the students having History as a subject and studying in class 12th from CBSE Board in Hindi Medium. All the students who are going to appear in Class 12 CBSE Board exams of this year can better their preparations by studying these notes.
यह पोस्ट सीबीएसई बोर्ड के लिए हिंदी में कक्षा 12 इतिहास अध्याय 5 यात्रियों के नजरिए के विस्तृत नोट्स के बारे में है। इसमें सभी नोट्स सरल भाषा में हैं और सीबीएसई बोर्ड से हिंदी माध्यम से 12वीं कक्षा में एक विषय के रूप में इतिहास पढ़ने वाले छात्रों के लिए उपयोगी है। वे सभी छात्र जो इस वर्ष की कक्षा 12 सीबीएसई बोर्ड परीक्षा में शामिल होने जा रहे हैं, इन नोट्स को पढ़कर अपनी तैयारी बेहतर कर सकते हैं।
Board | CBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | History |
Chapter no. | Chapter 5 |
Chapter Name | यात्रियों के नजरिए (Through the Eyes of Travellers) |
Category | Class 12 History Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
यात्रियों के नजरिए
- पिछले पाठ में हम ने विभिन्न धर्म ग्रंथों के अनुसार भारतीय इतिहास का अध्ययन किया
- इस पाठ में हम भारत में आए यात्रियों के नजरिए से भारत के इतिहास को समझेंगे
- इस पाठ में मुख्य रूप से तीन यात्रियों का वर्णन किया गया है अल बिरूनी इब्नबतूता फ्रांस्वा बर्नियर
प्राचीन दौर में यात्राएं करने की समस्याएं
- लंबा समय
- सुविधाओं का अभाव
- समुद्री लुटेरों का भय
- प्राकृतिक आपदाएं
- बीमारियां
- रास्ता भटकने का भय
प्राचीन दौर में यात्राएं क्यों की जाती थी
- रुचि
- व्यापार
- धर्म प्रचार
- ज्ञान की तलाश
- प्राकृतिक आपदा
- नए अवसरों की तलाश
भारत की यात्रा करने वाले मुख्य यात्री
वैसे तो अनेकों यात्रियों ने भारत की यात्रा की परंतु उनमें से कुछ मुख्य यात्रियों एवं उनके द्वारा दिए गए वृतांत के बारे में हम जानेंगे
- अल बिरूनी
- इब्न बतूता
- फ्रांस्वा बर्नियर
अल बिरूनी
- अल बिरूनी का जन्म 973 ईसवी में उज्बेकिस्तान के क्षेत्र ख्वारिज्म के खीवा प्रदेश में हुआ
- उस समय ख्वारिज्म शिक्षा का एक महत्वपूर्ण केंद्र था
- अलबरूनी ने उस समय की सबसे उच्च स्तरीय शिक्षा प्राप्त की
- अल बिरूनी अनेकों भाषाओं का ज्ञाता था उसे मुख्य रूप से अरबी फारसी सीरियाई संस्कृत
- और हिब्रू भाषा का ज्ञान था
- अलबरूनी का भारत आगमन
- 1017 ईस्वी में महमूद गजनवी ने ख्वारिज्म पर हमला किया और इस हमले के बाद
- महमूद गजनवी ख्वारिज्म से कई कवियों एवं विद्वानों को अपने साथ बंधक बनाकर भारत ले आया अल बिरूनी भी इन्हीं बंधकों में से एक था
- अल बिरूनी भारत में बंधक के रूप में आए परंतु धीरे-धीरे उन्हें यह प्रदेश पसंद आने लगे और उन्होंने अपने जीवन के 70 साल भारत में ही बताएं
- अपने जीवन काल में अलबरूनी ने उस समय भारत में प्रचलित व्यवस्था का अध्ययन किया और अपने सभी अनुभवों को अपनी एक मुख्य किताब किताब उल हिंद तहकीक ए हिंद में लिखा
किताब उल हिंद
- लेखक अल बिरूनी भाषा अरबी
- लेखन शैली
- किताब उल हिंद में 80 अध्याय हैं सभी अध्याय को सरल एवं स्पष्ट तरीके से लिखा गया है
- सभी अध्याय की शुरुआत एक प्रश्न के साथ होती है प्रश्न के बाद भारतीय व्यवस्था के आधार पर उसका उत्तर दिया जाता है एवं अंत में अन्य संस्कृतियों से भारतीय संस्कृति की तुलना की जाती है
- विषय सामग्री इस पुस्तक में भारतीय संस्कृति भाषा कला प्रथा मूर्तिकला त्योहारों आदि का वर्णन है
- इसी के साथ साथ इस पुस्तक में धर्म-दर्शन दंत कथाएं एवं चिकित्सा संबंधी जानकारियां भी है
किताब उल हिंद में वर्णित कुछ मुख्य बातें
जाति व्यवस्था
- अलबरूनी ने भारतीय जाति व्यवस्था की तुलना फारस की जाति व्यवस्था से की
भारतीय जाति व्यवस्था
- भारतीय जाति व्यवस्था ब्राह्मणों द्वारा बनाई गई वर्ण व्यवस्था थी जिसमें मुख्य रुप से चार वर्ण हुआ करते थे ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य एवं शूद्र
- एक व्यक्ति के वर्ण का निर्धारण उसके जन्म के आधार पर किया जाता था यानी अगर कोई व्यक्ति ब्राह्मण परिवार में पैदा हुआ है तो वह ब्राह्मण बनेगा एवं शुद्र परिवार में होने वाला व्यक्ति पूरे जीवन काल शूद्र ही माना जाएगा
- इस व्यवस्था में सबसे ऊपर ब्राह्मण हुआ करते थे ब्राह्मणों के बाद क्षत्रिय वैश्य एवं शुद्र हुआ करते थे
- यह व्यवस्था जन्म पर आधारित थी यानी कि
फारस की जाति व्यवस्था
- फारस की जाति व्यवस्था में भी मुख्य रूप से चार वर्ण थे
- घुड़सवार और शासक वर्ग भिक्षु और पुरोहित चिकित्सक वैज्ञानिक कृषक तथा शिल्पकार
- इस व्यवस्था में वर्ण का निर्धारण व्यक्ति द्वारा किए जा रहे काम के आधार पर होता था
अल बिरूनी के विचार
- अल बरूनी ने कहा कि जातिगत व्यवस्था हर जगह थी परंतु भारत में स्थित जातिगत व्यवस्था अत्यंत कठोर और भेदभाव पूर्ण थी
- ब्राह्मणवादी व्यवस्था में मौजूद अस्पृश्यता को अलबरूनी ने पूर्ण रूप से गलत बताया
- अल बिरूनी के अनुसार किसी भी व्यक्ति या वस्तु को जन्म के आधार पर अपवित्र नहीं माना जा सकता क्योंकि हर अपवित्र चीज पवित्र होने का प्रयास कर सकती है
इब्नबतूता (1304 ई.)
- जन्म स्थान इब्नबतूता का जन्म 1304 में दक्षिण अफ्रीका के मोरक्को नामक क्षेत्र के तेंजियर नामक स्थान पर हुआ
- इब्न बतूता के परिवार के सभी सदस्य अत्याधिक शिक्षित एवं सम्मानित इसी परंपरा के अनुसार इब्नबतूता ने भी कम उम्र में ही साहित्यिक एवं शास्त्रीय शिक्षा हासिल कर ली
- इब्नबतूता को एक हठीला यात्री कहा जाता था क्योंकि उन्हें यात्राएं करने का बहुत शौक था
- अपनी इसी रूचि के कारण इब्नबतूता ने अनेकों जगहों जैसे कि इराक, मक्का, सीरिया, यमन, ओमान आदि की यात्रा की
- 1332 में वह भारत की यात्रा के लिए निकले एवं 1333 में वह सिंध वर्तमान पाकिस्तान पहुंचे
- इसके बाद वह दिल्ली के सुल्तान मोहम्मद बिन तुगलक से मिलने के लिए दिल्ली आए
- मोहम्मद बिन तुगलक इब्नबतूता के ज्ञान से अत्यंत प्रभावित हुए और उन्हें अपने राज्य में काजी (न्यायधीश का पद) प्रदान किया
- भविष्य में राजा और इब्नबतूता के बीच कुछ गलतफहमी होने के कारण उन्हें कुछ समय के लिए जेल में बंदी बनाकर भी रखा गया परंतु भविष्य में गलतफहमी ठीक होने के कारण उन्हें जेल से बाहर निकाल दिया गया
- घूमने में रुचि होने के कारण दिल्ली के सुल्तान द्वारा इन्हें मंगोल के शासक (चीन) के पास राजदूत के रूप में भेजा गया
- इस दौरान उन्होंने एक पुस्तक की रचना की जिसका नाम रिहला है
- 1347 में इब्नबतूता ने घर वापस जाने का फैसला किया
रिह्ला
- इस पुस्तक का निर्माण इब्नबतूता द्वारा किया गया
- यह पुस्तक अरबी भाषा में लिखी गई है
- इब्नबतूता की पुस्तक रिह्ला में वर्णित मुख्य बातें
- भारतीय शहर
- कृषि
- नारियल
- पान
- दास प्रथा
- डाक व्यवस्था
भारतीय शहर
- इब्नबतूता के अनुसार भारतीय शहर घनी आबादी वाले थे यह क्षेत्र अवसरों से भरे हुए थे शहरों में रहने वाले अधिकांश लोग समृद्ध थे इन शहरों में बड़े बड़े भीड़भाड़ वाले बाजार हुआ करते थे यह बाजार चमक-दमक और वस्तुओं से भरे हुए होते थे
- इन बाजारों में मंदिर तथा मस्जिद सभी प्रकार के धर्म स्थल भी हुआ करते थे
- भारतीय कृषि भारतीय कृषि के बारे में बंधुता ने लिखा कि भारत में उपजाऊ मिट्टी होने के कारण वर्ष में दो बार कृषि की जा सकती थी
- पश्चिमी क्षेत्रों के मुकाबले भारत में कृषि की उपज ज्यादा थी
कपड़ा
- भारत में रेशम, जरी आदि कपड़ों की अत्याधिक मांग थी
- भारत में मलमल के कपड़े महंगे थे इसी वजह से केवल धनी व्यक्ति ही मलमल के कपड़े पहना करते थे
- सामान्य लोगों द्वारा सस्ते रेशों से बने कपड़ों का प्रयोग किया जाता था
भारत की डाक प्रणाली
- इब्नबतूता के अनुसार उस समय भारतीय डाक प्रणाली अत्यंत विकसित एवं अनूठी थी
- एक सामान्य व्यक्ति को सिंध से दिल्ली की यात्रा करने में लगभग 50 दिन लगते थे परंतु डाक व्यवस्था द्वारा खबर केवल 5 दिन में ही सिंध से दिल्ली पहुंचा दी जाती थी
- उस समय मुख्य रूप से दो प्रकार की डाक व्यवस्था ही प्रचलित थी
- अश्व डाक व्यवस्था उलूक पैदल डाक व्यवस्था दावा
- अश्व डाक व्यवस्था के अंतर्गत हर 4 मील की दूरी पर राजकीय घोड़े होते थे
- इन्हीं घोड़ों के द्वारा एक जगह से दूसरी जगह संदेश पहुंचाया जाता था
- पैदल डाक व्यवस्था के अंतर्गत संदेशवाहक एक हाथ में संदेश तथा दूसरे हाथ में एक छड़ी लेकर भागता था जिस पर कुछ घंटियां लगी होती थी
- यह संदेश वाहक 3 मील तक भागता था हर मील में उसके लिए तीन विश्राम घर होते थे और हर 3 मील बाद एक गांव होता था इस गांव में एक दूसरा संदेशवाहक खड़ा होता था पहला संदेशवाहक उसे संदेश एवं वह छड़ी पकड़ा कर रुक जाता था और दूसरा संदेशवाहक वहां से उस संदेश को आगे ले जाता था इसी प्रकार की व्यवस्था संदेश पहुंचने तक चलती रहती थी
नारियल
- भारत में आकर इब्नबतूता ने नारियल के वृक्ष देखें यह वृक्ष बिल्कुल खजूर के वृक्ष जैसे दिखते थे
- नारियल को देखकर इब्नबतूता बहुत आश्चर्यचकित हुए
- इब्नबतूता ने नारियल की तुलना मनुष्य के सिर से की
- उसने लिखा कि नारियल बिल्कुल मानव के सिर जैसा एक फल है इसका ऊपरी हिस्सा मानव की खोपड़ी की तरह कठोर होता है एवं अंदरूनी हिस्सा मानव मस्तिष्क की तरह नर्म होता है और इस पर लगे रेशे बालों की तरह दिखाई देते हैं
- उसने लिखा कि नारियल का अनेकों रूप से प्रयोग किया जाता है रेसो से रस्सी बनाई जाती है उसके अंदर स्थित पानी को पिया जाता है एवं अंदर के नर्म भाग को फल की तरह खाया भी जाता है
पान
- पान की बेल के बारे में निबंध इब्नबतूता ने लिखा की इस पर कोई फल नहीं होता इसे केवल पत्तियों के लिए उगाया जाता है
- इसके प्रयोग करने की विधि भी विचित्र है इसे खाने से पहले इस पर सुपारी रखी जाती है और छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ लिया जाता है फिर इस सुपारी और पत्तों को एक साथ मुंह में रखकर चबाया जाता है एवं कुछ समय बाद थूक दिया जाता है
दास प्रथा
- इब्नबतूता के अनुसार उस दौर में दास सामान्य वस्तुओं की तरह बाजार में बिका करते थे
- समाज में स्थित सभी वर्गों के लोग दास रखते थे
- इन दासों का उपयोग घरेलू कामकाज के लिए किया जाता था
- पुरुष दास मुख्य रूप से पालकी उठाने के लिए उपयोग किए जाते थे एवं महिला दास घरेलू कामकाज के लिए रखी जाती थी
- पुरुष दासों की कीमत महिला दासों से कम होती थी
- महिला दास संगीत एवं नृत्य कला में भी निपुण हुआ करती थी कुछ मुख्य अफसरों पर इनके द्वारा संगीत एवं नृत्य का प्रदर्शन भी किया जाता था
- कभी-कभी कुछ राजाओं द्वारा इन दोनों को गुप्त चरो के रूप में लोगों के घरों में निगरानी के लिए भी भेजा जाता था
- दासों के संबंध में इब्नबतूता ने अपने तीन अनुभव बताए हैं
- पहला मोहम्मद बिन तुगलक ने नसरुद्दीन नामक धर्म उपदेशक से खुश होकर उसे एक लाख मुद्राएं और 200 दास दिए थे
- जब इब्नबतूता सिद्ध पहुंचा तो उसने सुल्तान को घोड़े ऊंट तथा दास उपहार के रूप में दिए थे
- मुल्तान के गवर्नर को भी इब्नबतूता ने किशमिश एवं कुछ दास भेंट के रूप में दिए थे
फ्रांस्वा बर्नियर
- फ्रांस्वा बर्नियर का जन्म 1920 ईस्वी में फ्रांस में हुआ
- यह एक दार्शनिक, इतिहासकार, राजनीतिज्ञ और चिकित्सक थे
- अवसरों की तलाश में यह भारत आये थे और यहां शाहजहां के बड़े बेटे शिकोह के चिकित्सक के रूप में कई सालों तक रहे
- यह भारत में 1956 से 1968 (12 वर्षों) तक रहे
- इस दौर में इन्होंने अपनी एक पुस्तक ट्रैवल्स इन द मुगल एंपायर लिखी
ट्रैवल्स इन द मुगल एंपायर
- अपनी इस रचना में फ्रांस्वा बर्नियर ने भारतीय व्यवस्था की तुलना पश्चिमी देशों से की
- इस पुस्तक में उसने भारतीय व्यवस्था की आलोचना की एवं उसे दयनीय स्थिति में दर्शाया
ट्रैवल्स इन द मुगल एंपायर में वर्णित कुछ मुख्य बातें
भूमि स्वामित्व
- फ्रांस्वा बर्नियर के अनुसार उस समय भारत में निजी भूस्वामी त्व का अभाव था यानी किसी भी व्यक्ति की कोई निजी भूमि नहीं होती थी संपूर्ण भूमि राजा के अधीन होती थी
- कृषक को द्वारा उस भूमि पर खेती की जाती थी और राजा को कर दिया जाता था
- किसान उस भूमि पर कार्य कर सकते थे परंतु उसे अपनी आने वाली पीढ़ी को सौंप नहीं सकते थे
- इसी वजह से किसान गंभीरता से उत्पादन एवं भूमि की देखरेख नहीं किया करते थे
- इस व्यवस्था की वजह से कृषि का विनाश हुआ एवं किसानों को शोषण का सामना करना पड़ा
भारतीय समाज
- फ्रांस्वा बर्नियर के अनुसार उस समय भारतीय समाज में या तो बहुत गरीब लोग थे या बहुत अमीर
- मध्यमवर्ग का अभाव हुआ करता था
- राजा और उच्च वर्ग द्वारा तृषा को और निम्न वर्ग का शोषण किया जाता था
- नगरों में सेवाओं का अभाव था एवं शासन व्यवस्था खराब थी
सती प्रथा
- फ्रांस्वा बर्नियर ने भारत में प्रचलित सती प्रथा की आलोचना की
- इस प्रथा के अंतर्गत एक महिला को विधवा होने के पश्चात उसके पति की चिता के साथ जिंदा जला दिया जाता था
- उन्होंने इस व्यवस्था को अमानवीय एवं अत्याचार पूर्ण बताया
- अपने एक अनुभव को बताते हुए उन्होंने 12 साल की एक लड़की के बारे में लिखा जिसमें सफेद साड़ी पहनी हुई थी एवं चार ब्राह्मणों और एक बूढ़ी महिला द्वारा उसे खींचकर एक चिता की ओर ले जाया जा रहा था उस चिता पर उस लड़की के हाथ पैर बांध दिए गए ताकि वह भाग ना जाए और फिर उसे जला दिया गया
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