पाठ – 9
भारत के संदर्भ में नियोजन एवं सतत पोषणीय विकास
This post is about the detailed notes of class 12 Geography Chapter 9 bhaarat ke sandarbh mein niyojan evan satat poshaneey vikaas (Planning and Sustainable Development in Indian Context) in Hindi for CBSE Board. It has all the notes in simple language and point to point explanation for the students having Geography as a subject and studying in class 12th from CBSE Board in Hindi Medium. All the students who are going to appear in Class 12 CBSE Board exams of this year can better their preparations by studying these notes.
यह पोस्ट सीबीएसई बोर्ड के लिए हिंदी में कक्षा 12 भूगोल अध्याय 9 भारत के संदर्भ में नियोजन एवं सतत पोषणीय विकास के विस्तृत नोट्स के बारे में है। इसमें सभी नोट्स सरल भाषा में हैं और सीबीएसई बोर्ड से हिंदी माध्यम से 12वीं कक्षा में एक विषय के रूप में भूगोल पढ़ने वाले छात्रों के लिए उपयोगी है। वे सभी छात्र जो इस वर्ष की कक्षा 12 सीबीएसई बोर्ड परीक्षा में शामिल होने जा रहे हैं, इन नोट्स को पढ़कर अपनी तैयारी बेहतर कर सकते हैं।
Board | CBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Geography |
Chapter no. | Chapter 9 |
Chapter Name | भारत के संदर्भ में नियोजन एवं सतत पोषणीय विकास (Planning and Sustainable Development in Indian Context) |
Category | Class 12 Geography Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
नियोजन
- नियोजन वर्तमान में उपस्थित संसाधनों को ध्यान में रखते हुए भविष्य के लिए निर्धारित किए गए लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए योजना बनाना नियोजन कहलाता है।
नियोजन के उपागम
नियोजन के क्षेत्र के आधार पर नियोजन के मुख्य दो उपागम हैं: –
- खंडित नियोजन
- जब अर्थव्यवस्था के अलग-अलग क्षेत्र जैसे कि कृषि सिंचाई विनिर्माण ऊर्जा परिवहन आदि के विकास के लिए कार्यक्रम बनाए जाते हैं, वह उन्हें लागू किया जाता है तो इसे खंडित नियोजन कहते हैं।
- प्रादेशिक नियोजन
- एक विशेष क्षेत्र के विकास से संबंधित कार्यक्रमों को बनाना एवं लागू करना प्रादेशिक नियोजन कहलाता है।
खंडित नियोजन
- जब अर्थव्यवस्था के अलग-अलग क्षेत्र जैसे कि कृषि सिंचाई विनिर्माण ऊर्जा परिवहन आदि के विकास के लिए कार्यक्रम बनाए जाते हैं, वह उन्हें लागू किया जाता है तो इसे खंडी नियोजन कहते हैं।
प्रादेशिक नियोजन
- एक विशेष क्षेत्र के विकास से संबंधित कार्यक्रमों को बनाना एवं लागू करना प्रादेशिक नियोजन कहलाता है।
लक्ष्य क्षेत्र नियोजन एवं लक्ष्य समूह नियोजन
- क्षेत्रीय एवं सामाजिक विषमता को कम करने के लिए योजना आयोग ने 2 योजनाओं का गुणों को प्रस्तुत किया लक्ष्य क्षेत्र उपागम इसके अंतर्गत मुख्य रूप से एक विशेष क्षेत्र के लिए योजना बनाई एवं लागू की जाती थी।
- उदाहरण के लिए
- पर्वतीय क्षेत्र सूखा प्रभावित क्षेत्र आदि
लक्ष्य समूह नियोजन
- इसके अंतर्गत एक विशेष समूह के लिए योजना बनाई एवं लागू की जाती थी उदाहरण के लिए सीमांत किसान विकास संस्था, लघु कृषक विकास संस्था आदि।
पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम
- पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम इसे पांचवी पंचवर्षीय योजना में प्रारंभ किया गया इसका मुख्य उद्देश्य उत्तर प्रदेश के पर्वतीय जिलों असम के उत्तरी कछार की पहाड़ियों पश्चिम बंगाल का दार्जिलिंग जिला और तमिलनाडु के नीलगिरी जैसे 15 जिलों में सुविधाओं एवं उद्योगों का विकास करना था।
सूखा संभावित क्षेत्र विकास कार्यक्रम
- इस कार्यक्रम की शुरुआत चौथी पंचवर्षीय योजना में हुई इसका मुख्य उद्देश्य सूखा संभावित क्षेत्र में लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाना और सूखे के प्रभाव को कम करने के लिए उत्पादन के साधनों को विकसित करना था।
भरमौर क्षेत्र में समन्वित जनजातीय कार्यक्रम
- यह कार्यक्रम हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले के 2 तहसीलों प्रमोद और होली में चला गया था यहां पर मुख्य रूप से गद्दी जनजातीय समुदाय रहता है यहां की जलवायु अत्यंत कठोर है और संसाधनों की कमी है 2001 की जनगणना के अनुसार यहां की जनसंख्या 32246 थी जनसंख्या घनत्व 20 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर था और जनसंख्या मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर थी।
- क्षेत्र के विकास के लिए एक विकास कार्यक्रम चलाया गया इसकी शुरुआत 1970 के दशक से हुई इस दशक में गद्दी समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल किया गया 1974 इन्हें आईटीडीपी Integrated Tribal Development Programme का हिस्सा बनाया गया।
उद्देश्य
- क्षेत्र में आधारभूत संरचनाओं जैसे कि विद्यालय अस्पतालों सड़को आदि का निर्माण करना कृषि के नए एवं प्रभावी तरीकों को बढ़ावा देना पशुपालन के अंतर्गत वैज्ञानिक तरीकों को बढ़ावा देना स्वच्छ जल संचार तंत्र और बिजली की उपलब्धता बढ़ाना।
सतत पोषणीय विकास
- सतत पोषणीय विकास विकास काव्य प्रकार है जिसके अंतर्गत वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकता हो की पूर्ति इस प्रकार की जाती है जिससे भविष्य में आने वाली पीढ़ी के लिए संसाधनों की कमी ना हो।
- सतत पोषणीय विकास को बढ़ावा देना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि यदि वर्तमान पीढ़ी सभी संसाधनों का दोहन कर लेगी तो भविष्य में आने वाली पीढ़ी के लिए जीवन जीना अत्यधिक कठिन हो जाएगा।
- सतत पोषणीय विकास को बढ़ावा देने वाले उपाय
- इन उपायों द्वारा सतत पोषणीय विकास को बढ़ावा दिया जा सकता है
- जंगलों का संरक्षण करके
- क्षेत्रों का समान विकास करके
- उर्वरक रहित कृषि को प्रोत्साहित करके
- प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करके अधिक
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