पाठ – 4
बाजार एक सामाजिक संस्था के रूप में
This post is about the detailed notes of class 12 Sociology Chapter 4 Baajaar ek saamaajik sanstha ke roop mein (The Market as a Social Institution) in Hindi for CBSE Board. It has all the notes in simple language and point to point explanation for the students having Sociology as a subject and studying in class 12th from CBSE Board in Hindi Medium. All the students who are going to appear in Class 12 CBSE Board exams of this year can better their preparations by studying these notes.
यह पोस्ट सीबीएसई बोर्ड के लिए हिंदी में कक्षा 12 समाजशास्त्र अध्याय 4 बाजार एक सामाजिक संस्था के रूप में के विस्तृत नोट्स के बारे में है। इसमें सभी नोट्स सरल भाषा में हैं और सीबीएसई बोर्ड से हिंदी माध्यम से 12वीं कक्षा में एक विषय के रूप में समाजशास्त्र पढ़ने वाले छात्रों के लिए उपयोगी है। वे सभी छात्र जो इस वर्ष की कक्षा 12 सीबीएसई बोर्ड परीक्षा में शामिल होने जा रहे हैं, इन नोट्स को पढ़कर अपनी तैयारी बेहतर कर सकते हैं।
Board | CBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Sociology |
Chapter no. | Chapter 4 |
Chapter Name | बाजार एक सामाजिक संस्था के रूप में (The Market as a Social Institution) |
Category | Class 12 Sociology Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
बाजार
बाजार एक ऐसी जगह है जहां उपभोक्ता (जो वस्तु या सेवा खरीदना चाहता है) और उत्पादक (जो वस्तु या सेवा बेचना चाहता है) आकर मिलते हैं और व्यापार करते हैं
बाजार अर्थशास्त्र का विषय है तो इसका अध्ययन समाजशास्त्र में क्यों किया जाता है ?
- अर्थशास्त्र और बाजार
- समाजशास्त्र और बाजार
अर्थशास्त्र और बाजार
- 18 वीं शताब्दी की शुरुआत में उस समय के सबसे प्रसिद्ध राजनीतिक अर्थशास्त्रियों में से एक एडम स्मिथ ने अपनी किताब (द वेल्थ ऑफ नेशंस) में बाजार अर्थव्यवस्था को समझाया है
- उनके अनुसार बाज़ारी अर्थव्यवस्था व्यक्तियों में आदान-प्रदान का एक लंबा क्रम है
- यानी कि यह आदान-प्रदान की एक ऐसी व्यवस्था है जो एक लंबे समय से चली आ रही है
- इस व्यवस्था की स्थापना किसी भी व्यक्ति द्वारा जानबूझकर नहीं की जाती
- यह अपने आप ही स्थापित होती है
- इस व्यवस्था में हर व्यक्ति अपना लाभ बढ़ाने की कोशिश करता है जिस वजह से समाज में प्रत्येक व्यक्ति के लाभ में वृद्धि होती है और समाज का कल्याण होता है
- क्योंकि हर व्यक्ति समाज का एक हिस्सा है इसीलिए व्यक्ति को होने वाला लाभ अंत में जाकर समाज के लाभ में बदल जाता है
अदृशय हाथ
- क्योंकि यह व्यवस्था अपने आप इसी तरह से चलती रहती है इसीलिए ऐसा लगता है कि किसी अदृश्य शक्ति द्वारा इसे नियंत्रित किया जा रहा है
- इस अदृश्य शक्ति को ही एडम स्मिथ द्वारा अदृश्य हाथ कहा गया है
- बाजार में हर व्यक्ति लाभ के लिए काम करता है और अगर इस लाभ को समझदारी पूर्वक बनाए रखा जाए तो इससे व्यक्ति और समाज दोनों का कल्याण होता है
- इसी वजह से एडम स्मिथ ने खुले व्यापार का समर्थन किया है
- इस प्रकार के व्यापार में सरकार या अन्य संस्थाओं का कोई हस्तक्षेप नहीं होता और सब कुछ उत्पादक और उपभोक्ताओं द्वारा स्वयं नियंत्रित किया जाता है
- तो इस तरह अर्थशास्त्र में बाजार का अध्ययन लाभ और हानि के रूप में किया जाता है
समाजशास्त्र और बाजार
- अर्थशास्त्र में बाजार को केवल लाभ और हानि से जोड़कर देखा गया है
- जबकि समाजशास्त्र में बाजार की सामाजिक विशेषताओं को शामिल किया गया है
- समाज शास्त्रियों के अनुसार बाजार केवल वह जगह नहीं है जहां पर व्यक्ति जाकर अपनी जरूरतों के सामान खरीदता है या बेचता है
- बल्कि यह एक ऐसी जगह है जहां पर लोग आते हैं आपस में मेलजोल करते हैं दूसरी संस्कृतियों से मिलते हैं और इस बाजार की रचना भी समाज के आधार पर ही होती है
उदाहरण के लिए
- एक बाजार में समाज के मजबूत लोगों की दुकाने केंद्र में होती है जबकि सामाजिक रुप से कमजोर वर्गों की दुकानें उनके आसपास होती हैं
- इन बाजारों में अलग-अलग प्रकार की सेवाएं उपलब्ध होती हैं जो विभिन्न वर्गों से जुड़ी होती हैं
- इन बाजारों का नियंत्रण भी मुख्य रूप से समाज के ताकतवर वर्गों द्वारा किया जाता है
- इन सब वजहो से बाजार को एक सामाजिक संस्था के रूप में देखा जाता है
अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र और बाजार
अर्थशास्त्र और बाजार
- अर्थशास्त्र में बाजार को केवल लाभ और हानि से जोड़कर देखा गया है।
- अर्थशास्त्र बाजार में लाभ और हानि के कारणों को समझने की कोशिश करता है।
- अर्थशास्त्र में मांग, पूर्ति आदि विषयो का अध्ययन किया जाता है।
- उदाहरण लाभ, हानि के कारण, बाजार में स्थिरता आदि।
समाजशास्त्र और बाजार
- जबकि समाजशास्त्र में बाजार की सामाजिक विशेषताओं को शामिल किया गया है।
- समाजशास्त्र बाजार के समाज से सम्बंधित पहलुओं का अध्ययन करता है।
- समाजशास्त्र में बाजार में स्थित समाजिक वर्गों का अध्ययन किया जाता है।
- उदहारण समाज में वर्गो की बाजार में स्थिति, योगदान आदि।
एक साप्ताहिक आदिवासी बाजार
- साप्ताहिक बाजार :- वह बाजार होते हैं जो सप्ताह के एक निश्चित दिन लगते हैं
- इन बाजारों में आसपास के गांव के लोग अपनी खेती की उपज या सेवाएं बेचने के लिए आते हैं और साथ ही साथ इन्हीं आसपास के गांवों से लोग इन वस्तुओं और सेवाओं को खरीदने के लिए आते हैं
- ऐसे बाजार गांव एवं नगर दोनों में आयोजित किए जाते हैं
- ग्रामीण क्षेत्र में यह बाजार खरीदारी के अलावा आपसी मेलजोल का भी एक अच्छा साधन होते हैं
- स्थानीय लोग इस बाजार में आकर अपनी उपज व्यापारियों को बेचते हैं यह व्यापारी खरीदी गई उपज अन्य क्षेत्रों में जाकर बेचते हैं और स्थानीय लोग फसल बैच कर प्राप्त किये गए पैसों से बाजार में जरुरत के सामान की खरीदारी करते हैं
- अधिकांश लोगों का इस बाजार में जाने का मुख्य कारण रिश्तेदारों से मेलजोल बढ़ाना होता है क्योंकि ऐसे बाजारों में जाकर वह रिश्तेदारों से मिल सकते हैं बातें कर सकते हैं और अन्य कार्य कर सकते हैं
- इसीलिए इन बाजारों का एक सामाजिक रूप भी है
बाजार एक सामाजिक संस्था
- बाजार के सामाजिक स्वरुप का अध्ययन बस्तर के जिले के साप्ताहिक बाजार से किया जा सकता है
- इस जिले में मुख्य रुप से गोंड आदिवासी रहते हैं
- यहां पर लगने वाले साप्ताहिक बाजार में जनजातीय, गैर जनजाति है और बाहरी व्यापारी सभी शामिल होते हैं
- यहां पर मुख्य रूप से बनी बनाई वस्तुओं, खाद्य पदार्थों, खेतिहर उत्पादों और जंगल के उत्पादों का व्यापार होता है
- इनमें अधिकतर खरीददार आदिवासी होते हैं जबकि ज्यादातर विक्रेता (बेचने वाले) ऊंची जाति से संबंध रखने वाले हिंदू होते हैं
- अमीर और उच्च श्रेणी वाले राजपूत आभूषण निर्माता और मध्यम श्रेणी के हिंदू व्यापारी बाजार के बीच वाले क्षेत्रों में बैठते हैं
- स्थानीय आदिवासी जो सब्जियां और घरेलू सामान बेचते हैं बाजार के बाहरी हिस्सों में बैठते हैं
पूर्व औपनिवेशिक भारत के बाजार
- पूर्व औपनिवेशिक भारत से अभिप्राय उस समय से है जब भारत पर अंग्रेजों का शासन स्थापित नहीं हुआ था
- ऐसा माना जाता है कि उस समय बाजार और व्यापार स्वनिर्भर थे
- व्यापार में रूपए पैसे का चलन इतना प्रचलित नहीं था
- अंग्रेजी शासन से पहले भी गांव व्यापार के बड़े-बड़े तंत्रों से जुड़े हुए थे और व्यापार में साझेदार थे
- भारत का हथकरघा उद्योग सबसे प्रमुख था यहां से सूती और महंगे रेशम के कपड़ों का निर्यात भी किया जाता था
- देश में व्यापारी संगठन और बैंकिंग व्यवस्था उपलब्धि थी जिस वजह से भारत के अंदर और बाहर व्यापार किया जाता था
- विनिमय और कर्ज के लिए साधन हुंडी या विनिमय बिल का प्रयोग किया जाता था
- यह एक कर्ज पत्र की तरह होता था और इसे व्यापारियों द्वारा स्वीकार किया जाता था
औपनिवेशिक शासन के दौरान बाजार
- औपनिवेशिक शासन अंग्रेजों के शासन की वजह से इस व्यवस्था में परिवर्तन आया
- ग्रामीण क्षेत्रों पर अंग्रेजी शासन ने धीरे-धीरे अपनी पकड़ मजबूत की ताकि वहां पर उपस्थित प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर सकें
- सड़कों और रेल मार्गों का निर्माण करके क्षेत्र को बड़े छेत्रीय एवं राज्यों के बाजारों से जोड़ दिया गया
- इस वजह से क्षेत्र में व्यापारियों साहूकारों और आसपास के लोगों ने आना शुरू किया जिस वजह से जनजातीय समुदाय पिछड़ गया
- इन बाहरी लोगों ने आदिवासियों को दरिद्र कर दिया और इनकी जमीनों पर कब्जा कर लिया
- इस वजह से यह सभी आदिवासी केवल श्रमिक बनकर रह गए
- इन आदिवासियों को अब उन्हीं के क्षेत्र के बागानों में मजदूरों के तौर पर रखा जाने लगा
- औपनिवेशिक शासन के दौरान भारत में स्थित बाजारों का स्वरूप बदला
- मुद्राओं के चलन में वृद्धि आई क्योंकि अंग्रेजों ने मुद्रा विनिमय (मुद्रा में लेन देन) को प्रोत्साहित किया
- अंग्रेजों ने कर की वसूली मुद्रा के रूप में कि जिस वजह से मुद्रा के प्रचलन में वृद्धि हुई
- अंग्रेजों ने भारत में कृषि उत्पादों को प्रोत्साहन दिया ताकि वे यहां से कच्चा माल ले जाकर उसे ब्रिटेन में उत्पादित कर के अन्य क्षेत्रों में भेज सकें
- भारत के कपड़ा उद्योग पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ा
- ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि भारत से कच्चे माल को ब्रिटेन भेजा जाता था जहां से कपड़े बनाकर उन्हें वापस भारत में लाकर बेचा जाता था यह कपड़े सस्ते हुआ करते थे क्योंकि इन्हें मशीनों से बनाया जाता था इसी वजह से भारत में बनाए जाने वाले कपड़ों की मांग में कमी आई और हथकरघा उद्योग पर नकारात्मक प्रभाव पड़े
- इसी दौरान भारतीय समाज में कुछ वर्ग व्यापारियों के रूप में उभरे उदाहरण के लिए मारवाड़ी
- मारवाड़ी लोगों ने औपनिवेशिक शासन के दौरान व्यापारिक अवसरों का लाभ उठाया और स्वयं को व्यापारियों के रूप में स्थापित किया
भारत की नई आर्थिक नीति (1991)
- 1991 में भारत में नई आर्थिक नीति को अपनाया
- इन नीतियों के अंतर्गत भारतीय अर्थव्यवस्था का वैश्वीकरण, निजीकरण और उदारीकरण किया गया
- LPG (Liberalisation, Privatisation, Globalisation)
- उदारीकरण
- उदारीकरण का अर्थ होता है व्यापार करने की नीतियों को सरल बनाना अर्थात लाइसेंस एवं अन्य बाधाओं को समाप्त करना
- निजीकरण
- निजीकरण का अर्थ निजी क्षेत्र को बढ़ावा देने से अर्थात निजी क्षेत्र को विकसित होने का मौका देना और उस पर लगी बाध्यता को खत्म करना
- वैश्वीकरण
- एक देश से दूसरे देश के बीच व्यक्ति वस्तु पूंजी और विचार के निर्बाध प्रवाह को वैश्वीकरण कहा जाता है
- उदारीकरण
- इस नीति को अपनाने के बाद भारत के अंदर विकास की गति में वृद्धि आई एवं नियमों को सरल करने की वजह से व्यापार बढ़ा
वैश्वीकरण के परिणाम
राजनीतिक परिणाम
- सकारात्मक
- शासन व्यवस्था में सुधार
- शासन हेतु उच्च स्तरीय प्रौद्योगिकी
- शासन की कार्यप्रणाली में गुणात्मक वृद्धि
- पारदर्शिता
- शासन व्यवस्था का सरलीकरण
- नकारात्मक प्रभाव
- कल्याणकारी राज्य की समाप्ति
- कल्याणकारी राज्य उस राज्य को कहा जाता है जो लोगों के कल्याण के लिए कार्य करता है
- न्यूनतम हस्तक्षेपकारी कार्य राज्य का उदय
- न्यूनतम हस्तक्षेपकारी राज्य उस राज्य को कहा जाता है जो केवल शासन व्यवस्था तक सीमित होता है और लोगों के कल्याण पर ज्यादा ध्यान नहीं देता
- उद्योगों में सरकार का कम हस्तक्षेप
- सरकार की भूमिका में परिवर्तन
- कल्याणकारी राज्य की समाप्ति
आर्थिक परिणाम
- सकारात्मक
- विकास की गति में वृद्धि
- उच्च स्तरीय प्रौद्योगिकी
- संसाधनों का उच्च स्तरीय प्रयोग
- रोजगार में वृद्धि
- बाजार प्रतियोगिता के कारण उच्च गुणवत्ता
- नकारात्मक प्रभाव
- बहुराष्ट्रीय कंपनियों का उदय
- बहुराष्ट्रीय कंपनियां उन कंपनियों को कहा जाता है जो एक साथ बहुत सारे देशों में व्यापार करती हैं
- छोटे उद्योगों का पतन
- असमान विकास
- बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण व्यापार करना मुश्किल
- विकसित देशों की कठोर वीजा नीति
- बहुराष्ट्रीय कंपनियों का उदय
सांस्कृतिक प्रभाव
- सकारात्मक
- विचारों का खुलापन
- मिली-जुली संस्कृति का विकास
- महिलाओं की स्थिति में सुधार
- खानपान और रहन-सहन की आदतों में बदलाव
- नकारात्मक प्रभाव
- अमेरिकी संस्कृति का अत्यधिक प्रभाव
- छोटे देशों की संस्कृति का ह्रास
- एकपक्षीय संस्कृति का विकास
पूंजीवाद और वर्तमान समाज
- पूंजीवाद के कारण वर्तमान समाज में कई बदलाव आये है।
- उदहारण के लिए
- वस्तुकरण या पण्यीकरण
- उपभोग
वस्तुकरण या पण्यीकरण
- वस्तुकरण या पण्यीकरण का अभिप्राय उस स्थिति से है जब किसी ऐसी वस्तु को बाजार में बेचा या खरीदा जाता है जो पहले बेचे या खरीदे जाने के बेचे या खरीदे जाने के लायक नहीं थी
- उदाहरण के लिए
- श्रम या कौशल
- वर्तमान में श्रम या कौशल का वस्तुकरण या पण्यीकरण हो गया है क्योंकि अब इसे खुले बाजार में बेचा जाता है इससे लोगों का शोषण होता है क्योंकि पूंजीवादी एक व्यक्ति से अधिक श्रम करवाते हैं और उसे कम मात्रा में पूंजी देते हैं
- वर्तमान में बहुत सी ऐसी चीजें हैं जो पहले बाजार का हिस्सा नहीं थी परंतु अब आराम से बाजार में खरीदी या बेची जा सकती है
- उदाहरण के लिए
- पहले विवाह परिवार वालों द्वारा तय किए जाते थे जबकि अब इनका भी व्यवसायीकरण हो गया है और विवाह ब्यूरो या ऐसी वेबसाइट की भरमार है जो विवाह के लिए रिश्ते उपलब्ध करवाते हैं
उपभोग
- पूंजीवाद के कारण समाज में उपभोग का महत्व बढ़ा है
- अब व्यक्ति केवल अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उपभोग नहीं करता बल्कि वह ऐसी वस्तुएं खरीदता है जिनसे वह अपने मान सम्मान में वृद्धि कर सके
- विज्ञापन देने वाली कंपनियों द्वारा भी किसी विशेष समुदाय के लोगों को अपने विज्ञापन में शामिल किया जाता है ताकि वह उस समुदाय को प्रभावित कर सके
- पूंजीवाद की वजह से लोगों द्वारा उपभोग की जाने वाली वस्तु उसकी समाज में प्रतिष्ठा का प्रतीक बन गई है
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