पाठ – 6
लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट
This post is about the detailed notes of class 12 Political Science Chapter 6 LOktantrik vyavastha ka sankat (the crisis of Democratic order) in Hindi for CBSE Board. It has all the notes in simple language and point to point explanation for the students having Political Science as a subject and studying in class 12th from CBSE Board in Hindi Medium. All the students who are going to appear in Class 12 CBSE Board exams of this year can better their preparations by studying these notes.
यह पोस्ट सीबीएसई बोर्ड के लिए हिंदी में कक्षा 12 राजनितिक विज्ञान अध्याय 6 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट के विस्तृत नोट्स के बारे में है। इसमें सभी नोट्स सरल भाषा में हैं और सीबीएसई बोर्ड से हिंदी माध्यम से 12वीं कक्षा में एक विषय के रूप में राजनितिक विज्ञान पढ़ने वाले छात्रों के लिए उपयोगी है। वे सभी छात्र जो इस वर्ष की कक्षा 12 सीबीएसई बोर्ड परीक्षा में शामिल होने जा रहे हैं, इन नोट्स को पढ़कर अपनी तैयारी बेहतर कर सकते हैं।
Board | CBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Political Science |
Chapter no. | Chapter 6 |
Chapter Name | लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट (the crisis of Democratic order) |
Category | Class 12 Political Science Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
जैसा की हमने पिछले पाठ में पड़ा की 1971 के चुनावो में इंदिरा गाँधी की कांग्रेस ने ज़बरदस्त प्रदर्शन करते हुए वापसी की और कांग्रेस का पुनर्स्थापन हुआ पर आने वाला समय कांग्रेस और भारत दोनों के लिए समस्याओ से भरा हुआ रहा ।
आर्थिक स्तिथि
- बांग्लादेश युद्ध के कारण भारत की अर्थव्यवस्था पर ज़ोर पड़ा
- लगभग 80 लाख शरणार्थी भारत आ गए जिनका दवाब भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ा।
- अमेरिका ने भारत की मदद करना पूरी तरह से बंद कर दिया।
- विकास की गति धीमी हो गई
- अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में वृद्धि हुई जिस वजह से देश में महंगाई बड़ी।
- बेरोज़गारी में वृद्धि हुई
- खर्चे कम करने क लिए सरकार ने सरकारी कर्मचारियों का वेतन रोक लिया।
छात्र आंदोलन
- देश में आवश्यक वस्तुओ की बढ़ती हुई कीमतों और देश में बढ़ रहे भ्रष्टाचार को देखते हुए जनवरी 1974 में आंदोलन शुरू कर दिया।
- मार्च 1974 में बिहार में भी इन्ही सब वजहों से आंदोलन शुरू हो गया।
- आंदोलन का नेतृत्व करने क लिए जय प्रकाश नारायण (जे पी नारायण) को बुलाया गया उन्होंने आंदोलन का नेतृत्व के लिए दो शर्ते रखी
- आंदोलन पूरी तरह अहिंसक रहेगा
- आंदोलन सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि इसे पुरे देश में किया जाएगा।
- इस आंदोलन के द्वारा सच्चा लोकतंत्र स्थापित करने की बात कही गई।
नक्सलवादी आंदोलन
- इसी दौरान संसदीय राजनीती में विश्वास न रखने वाले कुछ मार्क्सवादी लोगो ने भी सामने आना शुरू कर दिया।
- ये लोग राजनीतिक प्रणाली और पूंजीवादी व्यवस्था को समाप्त करना चाहते थे।
- इस व्यवस्था को खत्म करने के लिए इन्होने हिंसा का रास्ता अपनाया और यह गुरिल्ला युद्ध( छिप कर हमला करना) किया करते थे
- इन लोगो को ही नक्सली कहा गया
- इन्होने धनी जमींदारों से बलपूर्वक ज़मीन छीन कर गरीब किसानो को देना शुरू कर दिया।
- देश में कई जगहों पर इन लोगो द्वारा हिंसा की गई।
रेल हड़ताल
- 1974 में जॉर्ज फर्नांडीज़ के नेतृत्व में बानी राष्ट्रीय समिति ने देश में रेल हड़ताल शुरू कर दी।
- यह हड़ताल सेवा तथा बोनस से जुड़े मुद्दों को लेकर की गई थी
- इस वजह से देश की यातायात व्यवस्था पूरी तरह से ठप्प पड़ गई।
- सरकार द्वारा इनकी माँगो को गलत बताया और माँगे स्वीकार करने से मना कर दिया।
- इस वजह से देश में असंतोष और भी ज़्यादा बढ़ गया
न्यायपालिका से संघर्ष
- इसी बीच सरकार और न्यायपालिका के बीच भी कई बार संघर्ष हुआ।
- सरकार ने संविधान में तीन बदलाव किये
- मौलिक अधिकार में कटौती की
- संपत्ति के अधिकार में थोड़ी सी फेर बदल की
- नीति निर्देशक सिद्धांतो को मौलिक अधिकारों से ज़्यादा शक्ति देने की कोशिश की
- पर न्यायालय द्वारा इन तीनो बदलावों को अस्वीकार कर दिया गया।
- इस वजह से 2 मुद्दे सामने आये
- क्या सरकार मौलिक अधिकारों में कटौती कर सकती है?
- क्या सरकार संपत्ति के अधिकार में फेर बदल कर सकती है?
- इसी बीच सर्वोच्च न्यायलय के मुख्य न्यायाधीश के चुनाव की बारी आई
- हमेशा से ही सबसे वरिष्ठ (Senior) जज को मुख्य न्यायधीश बनाया जाता था।
- इस बार सरकार ने तीन वरिष्ठ जजों (जे एम् शैलट, के एस हेगड़े और ऐ एन ग्रोवर) को नज़रअंदाज़ करके ए एन रे को सर्वोच्च न्यायालय का जज बना दिया
- जिन तीन जजों को नज़रअंदाज़ किया गया वे व वही जज थे जिन्होंने सरकार के विरुद्ध फैसला दिया था।
- इन्ही सब वजहों से सरकार और न्यायपालिका का संघर्ष और ज़्यादा बढ़ गया।
अन्य समस्याएँ
- इसी बीच समाजवादी नेता राजनारायण द्वारा इलाहाबाद उच्च न्यायालय में इंदिरा गाँधी के चुनाव के खिलाफ एक याचिका दायर की
- यह याचिका इंदिरा गाँधी के चुनाव से सम्बंधित थी
- याचिका पर 12 जून 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने अपना फैसला सुनाया
- इस फैसले में उन्होंने कहा की इंदिरा गाँधी का 1971 का चुनाव असंवैधानिक था क्योकि उन्होंने सरकारी ताक़त का गलत प्रयोग किया था।
- सर्वोच्च न्यायलय द्वारा इस फैसले पर रोक लगा दी गई और कहा गया की अपील पर फैसला आने तक इंदिरा गाँधी सांसद बनी रहेंगी पर वह मंत्रिमंडल की बैठकों में भाग नहीं ले सकती।
इस्तीफे की मांग
- इस पूरी घटना को देखते हुए 25 जून 1975 को जे पी नारायण ने इंदिरा गाँधी के इस्तीफे की मांग करनी शुरू कर दी।
- उन्होंने दिल्ली के रामलीला मैदान में राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह की मांग की
- उन्होंने सेना, पुलिस और सरकारी कर्मचारियों से कहा
आपातकाल की घोषणा
- इन सब समस्याओ को देखते हुए इंदिरा गाँधी ने 25 जून की आधीरात में राष्ट्रपति से संविधान के अनुच्छेद 352 (आपातकाल) को अंदरूनी गड़बड़ी होने की वजह से लागु करने की सिफारिश की।
आखिर आपातकाल है क्या ?
- देश में जब भी कोई बहुत बड़ी बाहरी, अंदरूनी या आर्थिक समस्या आने की संभावना होती है तो सरकार द्वारा संविधान के अनुच्छेद 352 को लागु किया जाता है।
- इस दौरान सभी शक्तिया केंद्र सरकार के हाथो में चली जाती है।
- हमारे संविधान में 3 तरह के आपातकाल के बारे में बताया गया है
राष्ट्रीय आपातकाल
- इस दौरान पुरे देश की सारी व्यवस्था केंद्र सरकार के हाथो में आ जाती है और यह तब लगाया जाता है जब देश को बाहरी
- देश में अंदरूनी गड़बड़ी हो
राष्ट्रपति शासन
- यह राज्य में स्तिथि
आर्थिक आपातकाल
- यह देश की आर्थिक स्तिथि खराब होने पर लगाया जाता है
- राष्ट्रपति द्वारा आपातकाल की घोषणा कर दी गई।
- इसी कदम के साथ देश की स्थिति पूरी तरह से पलट गई।
आपातकाल के दौरान
- विपक्षी नेताओ को जेल में डाल दिया गया।
- प्रेस पर सेंसरशिप लागु कर दी गई
सेंसरशिप:-
- राष्ट्र स्वयं सेवक संघ और जमात ए इस्लामी पर प्रतिबन्ध लगा दिया
- धरना, प्रदर्शन और हड़तालों पर रोक लगा दी गई।
- देश की जनता के मौलिक अधिकारों को छीन लिया गया
- निवारक नज़रबंदी कानून के तहत लोगो की गिरफ़्तारी की गई।
- निवारक नज़रबंदी कानून के तहत किसी भी व्यक्ति पर शक होने पर पुलिस उसे गिरफ्तार कर सकती है और वह व्यक्ति इस गिरफ्तारी का विरोध भी नहीं कर सकता।
- संवैधानिक संशोधन 42 (1976)
- आपातकाल के दौरान 1976 में संविधान में संशोधन किया गया और दो बड़े बदलाव किये गए।
- प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति के पद को न्यायालय ने चुनौती नहीं दी जा सकती।
- विधायिका के कार्य काल को 5 साल से बड़ा कर 6 साल का कर दिया गया।
- यह अब तक का सबसे विवादास्पद संशोधन था
आपातकाल पर राय
पक्ष (आपातकाल लगाना ज़रूरी था क्योकि)
- बार बार हो रहे धरना प्रदर्शन से सरकार को काम करने के दिक्कत होती है
- विरोधियो ने इंदिरा को हटाने के लिए गैर संसदीय रास्ता अपनाया
- धरनो की वजह से सरकार का ध्यान विकास के कार्यो से हट रहा था।
- देश को तोड़ने के लिए अंतर्राष्ट्रीय साज़िश
- CPI द्वारा आपातकाल का समर्थन किया गया।
विपक्ष(आपातकाल लगाना गलत था क्योकि)
- जनता के विरोध को दबाना गलत क्योकि लोकतंत्र में जनता को विरोध करने का अधिकार होता है।
- विरोध आंदोलनों में किसी भी प्रकार की कोई हिंसा नहीं हुई इसीलिए इस तरह से विरोध प्रदर्शनो को रोकना सही नहीं।
- गृह मंत्रालय (जो देश में कानून व्यवस्था को देखता है), ने क़ानून व्यवस्था खराब होने की बात नहीं कही। तो अंदरूनी गड़बड़ी बता कर आपातकाल लगाना गलत।
- आपातकाल का प्रयोग इंदिरा गाँधी द्वारा अपने फायदे के लिए किया गया।
आपातकाल के बाद
- 1977 में आपातकाल समाप्त हुआ और देश में चुनावो की घोषणा हुई
- विपक्षी पार्टियों ने जनता पार्टी बनाई और आपातकाल के समय हुई समस्याओ और अन्यायो को मुददा बना कर चुनाव लड़ा।
- जनता पार्टी में लगभग सभी विपक्षी पार्टिया शामिल हो गई और इसका नेता जय प्रकाश नारायण को बनाया गया।
- मार्च 1977 में देश में छठे आम चुनाव हुए
- देश की जनता आपातकाल की वजह से कांग्रेस के विरोध में थी और यह चुनावो के परिणामो ने साफ़ साफ़ दिख रहा था।
- आज़ादी के बाद पहली बार कांग्रेस लोकसभा का चुनाव हार गई और केंद्र में सरकार नहीं बना पाई
- कांग्रेस को सिर्फ 154 मिली
- वही दूसरी तरफ जनता पार्टी को अपने सहयोगियों के साथ 330 सीट मिली और अकेले जनता पार्टी को ही 295 सीट मिली
- क्योकि उत्तर भारत में आपातकाल का ज़्यादा प्रभाव था इसीलिए कांग्रेस को उत्तर भारत में लगभग न के बराबर सीटे मिली।
- कांग्रेस की हालत इतनी खराब हुई की इंदिरा गाँधी भी रायबरेली से चुनाव हार गई।
- इस तरह आज़ादी के बाद पहेली बार केंद्र में एक गैर कांग्रेसी सरकार बनी।
जनता पार्टी की सरकार
- 1977 में चुनाव जितने के बाद जनता पार्टी ने केंद्र में सरकार बनाई।
- मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने तथा चरण सिंह और जगजीवन राम को प्रधान मंत्री बनाया गया।
जनता पार्टी की सरकार के कार्य
शाह आयोग
- आपातकाल की जांच के लिए 1977 में चुनाव जितने के तुरंत बाद जनता पार्टी की सरकार से शाह आयोग का गठन किया
- अध्यक्ष
- जे सी शाह (सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश)
- कार्य
- आपातकाल के समय हुए कार्यो को अवलोकन करना
- शाह आयोग ने सभी घटनाओ की जांच की हज़ारो गवाहों के बयान लिए और एक रिपोर्ट पेश की
- अध्यक्ष
शाह आयोग द्वारा दी गई रिपोर्ट
- आपातकाल लगाए जाने का निर्णय केवल प्रधानमंत्री का था इसके लिए किसी से कोई सलाह नहीं ली गई और यह गलत था।
- आपातकाल लगाए जाने के तुरंत बाद समाचार पत्रों के कार्यालयों की बिजली काट दी गई जो की पूरी तरह से गलत था।
- विपक्षी नेताओ की गिरफ़्तारी प्रधानमंत्री के कहने पर की गई।
- मीसा का गलत प्रयोग किया गया।
- कुछ लोगो (संजय गाँधी) द्वारा किसी सरकारी पद न होते हुए भी सरकारी काम काज को प्रभावित किया गया।
मंडल आयोग
- 1977 के समय एक बड़ा मुद्दा था पिछड़े वर्ग के लोग का विकास इसे देखते हुए सरकार द्वारा मंडल आयोग का गठन किया गया।
- अध्यक्ष
- बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल
- कार्य
- पिछड़ी हुई जातियों की पहचान करने और उनका विकास करने (आरक्षण) के तरीके बताना
- अध्यक्ष
सरकार की स्तिथि
- अब सरकार तो बन गई पर विचारधाराएँ सामान न होने कारण समस्याएँ बनी रही और सरकार ठीक से काम नहीं कर सकी।
- 18 महीने तक शासन करने के बाद मोरार जी देसाई की सरकार गिर गई
- फिर कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनी और चरण सिंह प्रधानमंत्री बने
- पर 4 महीने बाद कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया और ये सरकार भी गिर गई
- और फिर हुए 1980 के चुनाव
- 1980 में देश में साँतवे आम चुनाव हुए।
- इस बार जनता पार्टी की सरकार बुरी तरह हार गई
- कांग्रेस 353 सीटों के साथ सत्ता में वापस आई
- और फिर से केंद्र में कांग्रेस ने सरकार बनाई और देश की इंदिरा गाँधी प्रधानमंत्री बनी।
आपातकाल के सबक
- देश में आपातकाल लागू किये जाने और सरकार द्वारा अपनी शक्तियों का गलत प्रयोग किये जाने बाद भी देश में लोकतंत्र बना रहा और चुनाव की व्यवस्था सामान्य रही। इससे एक बात साफ़ हो गई की भारत से लोकतंत्र हटना इतना आसान नहीं है।
- आपातकाल के दौरान न्यायपालिका लोगो के अधिकारों की रक्षा नहीं कर पाई। इस वजह से आपातकाल के बाद न्यायपालिका जनता के अधिकारों को लेकर और ज़्यादा गंभीर हो गई
- आपातकाल के दौरान लोगो से उनके कई ज़रूरी अधिकार छीन लिए गए इस वजह से आपातकाल के बाद लोगो को अपने अधिकारों की ज़रुरत का एहसास हुआ और देश में अधिकारों की रक्षा के लिए कई संघटन भी बने।
- संविधान में संशोधन करके आपातकाल के प्रावधान में आंतरिक अशांति शब्द को हटा कर सशस्त्र विद्रोह को जोड़ा गया।
- साथ ही साथ आपातकाल लगाने के लिए मंत्रिपरिषद द्वारा राष्ट्रपति को लिखित में देना ज़रूरी कर दिया गया। यानि की देश में अपपतकाल सिर्फ तब ही लगाया जा सकता है जब मंत्रिपरिषद सरकार को आपातकाल लगाने के लिए लिख कर दे।
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Very nice nots
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Sir hindi aur notes uploaded kar do term2 ke it’s important please 🙏🙏🙏🙏e-mail me
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