पाठ – 9
शासक और इतिवृत
This post is about the detailed notes of class 12 History Chapter 9 Shaasak aur itivrt (Kings and Chronicles) in Hindi for CBSE Board. It has all the notes in simple language and point to point explanation for the students having History as a subject and studying in class 12th from CBSE Board in Hindi Medium. All the students who are going to appear in Class 12 CBSE Board exams of this year can better their preparations by studying these notes.
यह पोस्ट सीबीएसई बोर्ड के लिए हिंदी में कक्षा 12 इतिहास अध्याय 9 शासक और इतिवृत के विस्तृत नोट्स के बारे में है। इसमें सभी नोट्स सरल भाषा में हैं और सीबीएसई बोर्ड से हिंदी माध्यम से 12वीं कक्षा में एक विषय के रूप में इतिहास पढ़ने वाले छात्रों के लिए उपयोगी है। वे सभी छात्र जो इस वर्ष की कक्षा 12 सीबीएसई बोर्ड परीक्षा में शामिल होने जा रहे हैं, इन नोट्स को पढ़कर अपनी तैयारी बेहतर कर सकते हैं।
Board | CBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | History |
Chapter no. | Chapter 9 |
Chapter Name | शासक और इतिवृत (Kings and Chronicles) |
Category | Class 12 History Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
शासक और इतिवृत्त
- इस पाठ में मुख्य रूप से हम मुगल शासन और उसके इतिहास के बारे में पड़ेंगे ।
- मुगल शासन की स्थापना बाबर द्वारा दिल्ली सल्तनत के आखिरी राजा इब्राहिम लोदी को हराकर की गई ।
- दिल्ली सल्तनत की तरह ही मुगल शासन भी एक मुस्लिम शासन था और इन शासकों ने भी लंबे समय तक भारत पर राज किया।
मुगल शासन
संस्थापक (बाबर)
- बाबर के पूर्वज मध्य एशिया मे स्थित फरगाना के शासक थे
- बाबर के पिता जी का नाम उमर शेख मिर्जा और माताजी का नाम कुतलूग निगार खानम था
- बाबर के पिता जी तैमूर वंश से संबंधित थे जबकि उनकी माता जी चंगेज खान के वंश से संबंधित थी
- बाबर खुद को मुगल बुलवाना पसंद नहीं करता था
- वह खुद को तैमूरी मानता था
- पूरे मुगल शासन के दौरान कहीं भी मुगल शब्द का प्रयोग नहीं किया गया
- इस शासन को मुग़ल नाम अंग्रेजों द्वारा 16वी शताब्दी के दौरान दिया गया था तभी से इस शासन को मुगल शासन कहा जाता है
मुग़ल शासन की स्थापना
- 16 वीं शताब्दी की शुरुआत में बाबर मध्य एशिया से दक्षिण की तरफ आया और उसने काबुल में अपना शासन स्थापित किया
- 1526 में बाबर ने भारत की ओर अपना रुख किया
- उस दौर में भारत पर दिल्ली सल्तनत का शासन था और लोदी वंश के इब्राहिम लोदी दिल्ली सल्तनत के सुल्तान थे
- बाबर और इब्राहिम लोदी के बीच 1526 में पानीपत में युद्ध हुआ इसे ही पानीपत का प्रथम युद्ध कहा जाता है
पानीपत का प्रथम युद्ध
- पानीपत के प्रथम युद्ध में बाबर ने गोला बारूद का प्रयोग किया जिस वजह से वह बड़े आराम से जीत गया
- इब्राहिम लोदी की युद्ध में हार हुई और दिल्ली सल्तनत पर बाबर का शासन स्थापित हुआ यहीं से मुगल साम्राज्य की शुरुआत हुई
मुग़ल शासक
बाबर (1526-1530)
- बाबर ने भारत पर 1526 से 1530 तक शासन किया
- इस दौर में उसने मुख्य चार लड़ाइयां लड़ी
पानीपत का प्रथम युद्ध – 1526
- इस युद्ध में इब्राहिम लोदी को हरा कर बाबर ने मुग़ल साम्राज्य की स्थापना की
- यह युद्ध राणा सांगा (राजपूत शासक) और बाबर के बीच हुआ
- राणा सांगा ने बहादुरी से बाबर का सामना किया पर बाबर के गोला बारूद के सामने राजपूती सेना टिक ना सकी
- राणा सांगा किसी तरह बचकर भागा ताकि वह बाबर का दोबारा सामना कर सके
- परंतु बाद में उसके ही कुछ सगे संबंधियों द्वारा विष देकर उसे मार दिया क्या
चंदेरी – 1528
- खानवा के युद्ध के बाद राजपूत शक्ति लगभग खत्म हो चुकी थी
- इसी को देखते हुए बाबर ने बाकी बचे हुए राजपूतों के खिलाफ चंदेरी युद्ध लड़ा इस युद्ध में मोदीनी राय ने राजपूतों का नेतृत्व किया
- परंतु राजपूत बाबर से ना जीत सके और इस युद्ध में भी बाबर की विजय हुई
घग्घर – 1529
- इब्राहिम लोदी के भाई महमूद लोदी ने अफगानो के साथ मिलकर बिहार पर अधिकार कर लिया
- अब वह बाबर का एकमात्र प्रतिद्वंदी रह गया था
- 1529 में बाबर ने बंगाल और बिहार की संयुक्त सेना को युद्ध में कुचल डाला और विजय प्राप्त की
- इसके बाद 1530 में बीमारी के कारण बाबर की मृत्यु हो गई
हुमायूं (1530-1540, 1555-1556)
- बाबर के बाद हुमायूं मुगल वंश का अगला शासक बना
- शासन में आने के 10 साल बाद तक हुमायूं ने शान से शासन किया
- परंतु 1540 में शेरशाह सूरी ने हुमायूं को हरा दिया और हुमायूं को बचकर भागना पड़ा
- हुमायूं बचकर इरान भाग गया
- शेरशाह सूरी की मृत्यु के बाद 1555 में हुमायूं वापस आया और शेरशाह सूरी के वंशजों को हराकर पुनः मुगल शासन की स्थापना की
- इस युद्ध के 1 वर्ष बाद हुमायूं की मृत्यु हो गई
अकबर (1556 से 1605)
- हुमायूं के बाद अकबर ने मुगल शासन संभाला
- अकबर को मुगल साम्राज्य के सबसे महान राजाओं में से एक माना जाता है
- इस दौर में मुगल साम्राज्य हिंदूकुश तक फैला
- अकबर ने अपने साम्राज्य में उपस्थित सभी प्रकार के धार्मिक भेदभावों की समाप्ति की
- किसानों के लिए कर व्यवस्था को आसान किया
- कई मुश्किल स्थितियों में कर माफ भी किया
- इन्हीं सब कार्यों की वजह से अकबर एक महान बादशाह बनकर उभरा अपने कार्यों द्वारा प्रजा का दिल जीता
- अकबर ने 1605 तक शासन किया उसकी मृत्यु के बाद जहांगीर अगला शासक बना
जहांगीर (1605 से 1627)
- जहाँगीर के दौर में नूरजहाँ (जहांगीर की पत्नी) का शासन पर गहरा प्रभाव था
शाहजहां (1628 से 1658)
औरंगजेब (1658 से 1707)
- 1707 के बाद
- 1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद भी कई शासक आए परंतु कोई भी अपने पूर्वजों जितना ताकतवर नहीं था
- धीरे धीरे मुगल शासन अपने पतन की ओर बढ़ने लगा और इसका एक मुख्य कारण अंग्रेजी शासन का बढ़ता हुआ प्रभाव था
- मुगल शासन का अंतिम शासक बहादुर शाह जफर द्वितीय था
मुगल साम्राज्य की राजधानियां
- मुगल शासन के दौर में राजधानियों का एक अलग महत्व था राजधानियों को सदैव ही विशेष रूप दिया जाता था
- यह मुगलों की शान को दर्शाता था
आगरा
- 1526 में इब्राहिम लोदी को हराने के बाद बाबर ने आगरा में अपनी राजधानी स्थापित की
- हुमायूं के दौर में भी राजधानी आगरा ही रही
- जब अकबर ने राजपाट संभाला उस समय भी राजधानी आगरा ही थी
- इसी दौर में अकबर द्वारा आगरा के किले का निर्माण करवाया गया
- आगरा के किले का निर्माण अकबर द्वारा 1560 में करवाया गया
- आगरा का किला मुगलों की सबसे महत्वपूर्ण इमारतों में से एक है
फतेहपुर सीकरी
- 1570 में अकबर ने राजधानी को आगरा से बदलकर फतेहपुर सीकरी बना दिया
- फतेहपुर सिकरी में अकबर ने बुलंद दरवाजा और जुम्मा मस्जिद के बगल में शैख़ सलीम चिश्ती के लिए सफ़ेद संगमरमर का एक मकबरा बनवाया
लाहौर
- इस दौर के बाद भारत के पश्चिमी क्षेत्र (वर्तमान पाकिस्तान) में विद्रोह और बाहरी आक्रमण में वृद्धि हुई जिस वजह से अकबर को अपनी सेना के साथ उस क्षेत्र में जाना पड़ा
- इसी वजह से अकबर ने एक बार पुनः राजधानी को बदला और लाहौर को अपनी नई राजधानी बनाया
- शाहजहां के दौर तक लाहौर ही राजधानी रहा
शाहजहानाबाद (वर्तमान दिल्ली)
- 1648 में शाहजहां ने शाहजहानाबाद नाम से एक नए शहर का निर्माण करवाया यह वर्तमान दिल्ली में स्थित था
- शाहजहानाबाद में अनेकों सुंदर बागों को चारबाग पद्धति के आधार पर बनवाया गया
- इसी दौरान दिल्ली में स्थित लाल किले का निर्माण भी करवाया गया
- इस तरह से शाहजहानाबाद (वर्तमान दिल्ली) मुगलों की आखिरी राजधानी बना
- सभी मुग़ल शासको ने सदैव अपनी राजधानियों में बड़ी बड़ी और सुन्दर इमारतों की रचना करवाई। यह दर्शाता है की मुग़ल शासक राजधानियों की अपने शासन का हृदयस्थल मानते थे।
इतिवृत्त (इतिहास का वृतांत)
- वह लेख जिनसे किसी क्षेत्र के इतिहास के बारे में पता चलता है इतिवृत्त कहलाते हैं
- मुग़ल साम्राज्य के सभी इतिवृत पांडुलिपियों के रूप में मिले है।
पांडुलिपियां
- वह सभी लेख जो हाथो से लिखे जाते है पांडुलिपियां कहलाते है।
- मुगल राजाओं द्वारा कई इतिवृत्त तैयार करवायें गए
- इन इतिवृत्तों की रचना मुगल राजाओं द्वारा इसीलिए करवाई गई ताकि आने वाली पीढ़ी को मुग़ल शासन के बारे में जानकारी मिल सके
- इन सभी इतिवृत्तों से मुगल साम्राज्य के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां मिलती हैं
मुख्य इतिवृत्त
- बाबरनामा
- अकबरनामा
- आलमगीरनामा
इतिवृत्तों की रचना
लेखक
- मुगल काल में इतिवृत्तों की रचना के लिए कुछ लेखकों को नियुक्त किया गया था
- इन लेखकों को दरबारी लेखक कहा जाता था
- इन सभी इतिवृत्तों की रचना इन्हीं दरबारी लेखकों द्वारा की गई
शैली
- मुगल इतिवृत्तों की रचना राजा को केंद्र में रखकर की जाती थी यानी कि इतिवृत्तों के अंदर लिखी सभी बातें राजा के इर्द-गिर्द घूमती थी
- इनमें राजा और उससे जुड़ी घटनाओं का वर्णन किया जाता था
- साथ ही साथ इनमें शाही परिवार, अभिजात वर्ग, युद्ध, प्रशासनिक व्यवस्था और दरबार आदि की जानकारी भी दी गई है
लेखन शैली (नास्तिलिक शैली)
- इन इतिवृत्तों की रचना नस्तलिक शैली में की जाती थी अकबर को यह शैली अत्यंत पसंद थी
- इस शैली में लिखने वाले व्यक्ति को सुलेखक कहा जाता था
- इस शैली में लंबे सपाट प्रवाही ढंग से लिखा जाता था
- लिखने के लिए 10 मिलीमीटर की नोक वाले सरकंडे का प्रयोग किया जाता था इसे कलम कहते थे
- इस कलम को स्याही में डुबो कर लिखा जाता था
- इसकी नोक के बीच में एक छोटा सा चीरा लगाया जाता था ताकि यह कलम आसानी से स्याही को सोख ले
भाषा
बाबर
- मुगल काल के शुरुआती दौर में बाबर ने तुर्की भाषा को महत्व दिया
- बाबर ने अपनी सारी कविताएं एवं संस्मरण तुर्की भाषा में लिखवाये
- बाबरनामा की रचना भी तुर्की भाषा में की गई
अकबर
- अकबर ने फारसी भाषा को दरबार की मुख्य भाषा बनाया
- वह सभी लोग जिनकी फारसी भाषा पर अच्छी पकड़ थी उन्हें दरबार में ऊंचे ऊंचे स्थान दिए गए
- पूरा शाही परिवार एवं दरबार के मुख्य सदस्य सभी फारसी भाषा का ही प्रयोग किया करते थे
- धीरे-धीरे राज्य की मुख्य भाषा फारसी बन गई एवं प्रशासनिक क्षेत्रों में भी इसका प्रयोग होने लगा
- अकबरनामा की रचना फारसी भाषा में ही की गई
- अकबर ने बाबरनामा का अनुवाद भी फारसी भाषा में करवाया
- मुगल बादशाहों ने संस्कृत ग्रंथों जैसे की महाभारत और रामायण का अनुवाद फारसी भाषा में करने के आदेश भी दिए
- महाभारत का फारसी में अनुवाद करके उसका नाम रज्मनामा (युद्धों की पुस्तक) रखा गया
- उस दौर में कुछ हिंदू भाषी लोग भी थे जब इन हिंदू भाषी लोगों और फारसी भाषी लोगों के बीच संवाद हुआ तो दोनों ने एक दूसरे के शब्दों को अपनाया जिससे एक नई भाषा उर्दू का उदय हुआ
रचना
- मुगल काल में सभी इतिवृत्तों की रचना हाथों से की जाती थी
- इनका निर्माण शाही किताब खानों में किया जाता था
- यहीं पर इन किताबों को संग्रहित करके रखा जाता था
- इन इतिवृत्तों की रचना अनेकों लोगों द्वारा मिलकर की जाती थी
- कागज बनाने वाला – पेज तैयार करने के लिए
- कोफ्त गार – पृष्ठ चमकाने के लिए
- चित्रकार – चित्रों की रचना के लिए
- जिल्द साज
- एक पांडुलिपि तैयार करने में कई वर्षों का समय एवं अनेकों लोगों की मेहनत लगती थी
- परंतु इस पांडुलिपि के निर्माण का श्रेय सिर्फ कुछ लोगों को ही दिया जाता था
उदाहरण के लिए
- चित्रकारों और सुलेखको को समाज में सम्मान एवं पुरस्कार मिलते थे
- जबकि कागज बनाने वाले एवं जिल्दसाज जैसे कारीगरों को कोई खास सम्मान नहीं मिलता था
चित्रकला
- मुगल काल के दौरान बने सभी इतिवृत्तों में सुंदर चित्रकला का प्रयोग किया गया है
- चित्रों का प्रयोग इतिवृत्तों की सुंदरता को बढ़ाने के लिए किया जाता था
- इतिवृत्तों की रचना करते समय जहां पर चित्र बनाने होते थे, सुलेखक वहां पर जगह खाली छोड़ दिया करता था और बाद में चित्रकार उन जगहों पर चित्रों का निर्माण करते थे
- अकबरनामा के रचनाकार अबुल फजल ने चित्रकारी को एक जादुई कला बताया है
- उन्होंने कहा कि चित्रकला की वजह से निर्जीव वस्तुओं में जान आ जाती हैं और वह सजीव प्रतीत होती हैं
अकबरनामा
- अकबरनामा की रचना अबुल फजल द्वारा की गई
- अबुल फजल अरबी, फारसी, यूनानी दर्शन और सूफीवाद का जानकार था
- वह एक स्वतंत्र चिंतक था और उसने सदैव ही दकियानूसी उलमा विचारों का विरोध किया
- अबुल फजल के विचारों और जानकारी से प्रभावित होकर अकबर ने उसे अपने सलाहकार के रूप में नियुक्त किया और अकबरनामा लिखने की जिम्मेदारी सौंपी
- अबुल फजल द्वारा अकबरनामा लिखने की शुरुआत 1589 में की गई और उसने 13 वर्षों तक इस पर काम किया
- अकबरनामा में अकबर के साम्राज्य की भौगोलिक प्रशासनिक सांस्कृतिक और सामाजिक विशेषताओं का वर्णन किया गया है
- इसमें प्रमुख राजनीतिक घटनाओं की जानकारी भी मिलती है
- अकबरनामा को तीन जिल्दोs भागों में बांटा गया है
पहली जिल्द (भाग)
- इसमें आदिमकाल से लेकर अकबर के शासन तक मानव इतिहास का वर्णन किया गया है
दूसरी जिल्द (भाग)
- इस भाग में अकबर के शासन की शुरुआत से लेकर उसके शासन के 46 वें वर्ष 1601 तक का वर्णन किया गया है
तीसरी जिल्द (भाग) – आईना अकबरी
- अकबरनामा के तीसरे भाग को आईना ए अकबरी कहा जाता है
- यह अकबरनामा के सबसे प्रमुख भाग में से एक है
- इसे अकबरनामा की आत्मा भी कहा जाता है
- इसमें अकबर के शासन के दौरान मुगल साम्राज्य के बारे में अनेकों जानकारियां मिलती हैं
- मुख्य रूप से इसमें उस दौर की कृषि व्यवस्था, किलेबंदी, दरबारी दृश्य इमारतों, लड़ाइयों आदि का वर्णन किया गया है
- इसमें मुगल साम्राज्य को एक मिश्रित संस्कृति वाला साम्राज्य दर्शाया गया है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति अपने धर्म का पालन कर सकता है
- यह मुगल काल के सबसे महत्वपूर्ण इतिवृत्तों में से एक है
बादशाहनामा
- इसकी रचना अब्दुल हमीद लाहौरी द्वारा की गई थी
- अब्दुल हमीद लाहौरी अबुल फजल के ही शिष्य थे
- शाहजहां द्वारा अब्दुल हमीद लाहौरी को अकबरनामा की शैली के अनुसार अपना इतिहास लिखने के लिए नियुक्त किया गया था
- बादशाह नामा को भी 3 दिन तो भागों में बांटा गया है
- प्रत्येक जिल्द (भाग) में 10 चंद्र वर्षों (Lunar Years) का वर्णन किया गया है
मुगल पांडुलिपियाँ और अंग्रेजी शासन
- अंग्रेजों ने भारत के इतिहास को और बेहतर ढंग से समझने के लिए भारतीय इतिहास से संबंधित पांडुलिपियों का अध्ययन किया
- इसी दौर में 1784 में विलियम जोंस ने एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ बंगाल की स्थापना की
- इस सोसाइटी ने कई भारतीय पांडुलिपियों का संपादन प्रकाशन और अनुवाद किया
- बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में हेनरी बेवरिज द्वारा अकबरनामा का अंग्रेजी में अनुवाद किया
मुगल साम्राज्य की धार्मिक स्थिति – सुलह ए कुल
- मुगल इतिवृत्तों के अनुसार मुगल साम्राज्य हिंदुओं, मुसलमानों और जैनो जैसे अनेक धार्मिक समुदायों में बटा हुआ था
- राज्य में बादशाह इन सभी धार्मिक संगठनों से ऊपर होता था
- कोई भी समस्या आने पर वह इन संगठनों के बीच मध्यस्थ के रूप में कार्य करता था ताकि न्याय एवं शांति बनी रहे
- राज्य के अंदर सभी को अपने धर्मों को मानने की स्वतंत्रता थी
जजिया कर
- इस दौर में जजिया नामक एक धार्मिक कर राज्य के निवासियों पर लगाया जाता था
- यह कर धर्म के आधार पर लगाया जाता था इसीलिए इसे धार्मिक कर कहते हैं
- इस कर के अंतर्गत सभी गैर मुसलमान लोग यानी वह सभी लोग जो मुसलमान नहीं है उन्हें राजा को कर देना पड़ता था इसे ही जजिया कर कहा जाता था
- यह कर केवल गैर मुसलमान लोगों पर ही लगाया जाता था
- 1564 में अकबर द्वारा जजिया कर को समाप्त कर दिया गया
- परन्तु औरंगजेब द्वारा जजिया कर को पुनः लागू कर दिया गया
मुगल दरबार
इतिवृत्तों द्वारा मुगल दरबार के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त होती है
बादशाह
- बादशाह मुगल शासन के केंद्र में होता था पूरा शासन उसी के नाम पर चलाया जाता था
- मुगल दरबार के अंदर बादशाह के प्रिय लोग शामिल हुआ करते थे यह बादशाह के सलाहकार, सेनापति या नीति निर्धारक हुआ करते थे
- किसी भी व्यक्ति के आसन की बादशाह के सिंहासन से दूरी के अनुसार उस व्यक्ति की हैसियत का निर्धारण होता था
- यानी कि जो व्यक्ति बादशाह के पास बैठता था वह बादशाह का अधिक प्रिय होता था एवं उसका कद ऊंचा होता था
दरबार में बोलने एवं बैठने के नियम निर्धारित थे
- कोई भी व्यक्ति बादशाह के सिंहासन पर बैठने के बाद अपनी जगह से जा नहीं सकता था
- अगर कोई भी इन नियमों का उल्लंघन करता था तो उसे दंड दिया जाता था
अभिवादन के तरीके
- मुगल काल में अभिवादन के तरीके के अनुसार व्यक्ति की हैसियत का पता चलता था
- उस समय मुख्य रूप से तीन प्रकार से अभिवादन किया जाता था
सजदा (दंडवत लेटना)
- इसमें व्यक्ति घुटनों पर बैठकर सिर को जमीन से छुआ कर प्रणाम करते थे
चार तस्लीम
- इसकी शुरुआत शाहजहां द्वारा की गई थी
- इसमें घुटनो के बल बैठ कर हाथ सामने की और करके अभिवादन किया जाता था।
जमीन बोसी
- इस अभिवादन के तरीके के अनुसार व्यक्ति घुटनों पर बैठकर जमीन को चुनते थे और सामने वाले व्यक्ति को नमन करते थे
बादशाह का दिन
- बादशाह अपने दिन की शुरुआत धार्मिक पूजा-अर्चना से करता था
झरोखा दर्शन
- इसके पश्चात वह छोटे से छज्जे पर जाकर खड़ा होता था छज्जे का मुख पूर्व की तरफ होता था
- इस छज्जे के नीचे लोगों की भीड़, राजा की एक झलक पाने के लिए खड़ी रहती थी
- इसे झरोखा दर्शन कहा जाता था इसकी प्रथा अकबर द्वारा शुरू की गई थी
- इसका मुख्य उद्देश्य प्रजा से मेल मिलाप करना एवं उनके मन में विश्वास पैदा करना होता था
- झरोखा दर्शन लगभग 1 घंटे तक चलता था इसके पश्चात राजा दीवान ए आम सार्वजनिक सभा में जाता था
दीवान ए आम (सार्वजनिक सभा)
बादशाह का दिन
- यहां पर सामान्य जनता की समस्याओं को सुनकर उनका हल किया जाता था
- राज्य के सभी अधिकारी अपनी कार्य संबंधी रिपोर्ट इसी सभा में प्रस्तुत किया करते थे
- यहां पर राजा लगभग 2 घंटे बिताता था
दीवाने खास
- दीवाने खास में राजा के प्रिय एवं मुख्य लोग हुआ करते थे
- यहां पर राजा गोपनीय मुद्दों पर विचार विमर्श किया करता था
त्योहार
- मुगल शासन में त्योहारों के समय दरबार को अत्यंत सुंदर तरीके से सजाया जाता था
- चारों तरफ सजावट की जाती थी
- मुगल साम्राज्य में मुख्य रूप से तीन त्यौहार मनाए जाते थे
- शासक का जन्मदिन
- शासक के जन्मदिन के अवसर पर शासक को विभिन्न कीमती वस्तुओं के साथ तोला जाता था
- तोलने के पश्चात यह सभी वस्तुएं सामान्य जनता में दान कर दी जाती थी
- वसंत आगमन
- नवरोज
- शासक का जन्मदिन
पदवियाँ
- मुगल साम्राज्य में व्यक्तियों को उनकी योग्यता के अनुसार अलग-अलग पदवियाँ दी जाती थी
- बाबर के दौर में मुख्य रूप से इरानी और तुर्की लोगों का अधिक महत्व था
- अकबर ने योग्यता के अनुसार व्यक्तियों का चयन किया
- अकबर के दौर में सभी धर्म के लोगों को अभिजात वर्ग (राज्य की नौकरशाही) में शामिल किया गया
उपहार
- मुगल शासन के दौरान बादशाह द्वारा अनेकों उपहार दिए जाते थे
- जब भी राजा किसी व्यक्ति से प्रभावित होता था तो उसे उपहार प्रदान कर वह उसकी प्रशंसा किया करता था
- मुख्य उपहार
जामा
- जामा पहनने का एक वस्त्र होता था इसे राजा द्वारा उपहार में दिया जाता था
- यह राजा द्वारा पहना गया होता था इसी वजह से इसे राजा का आशीर्वाद समझा जाता था
सरप्पा (सर से पांव तक)
- इस उपहार के तीन हिस्से हुआ करते थे
- जामा पगड़ी और पटका
- कभी-कभी राजा द्वारा रत्न जड़ित आभूषण भी उपहार में दिए जाते थे
- कुछ विशेष परिस्थितियों में बादशाह कमल की मंजरीओं वाला रत्न जड़ित हार भी उपहार के रूप में दे दिया करता था
शाही परिवार
- मुगल परिवार में बादशाह उसकी पत्नियां, उप पत्नियां, नजदीकी एवं दूर के रिश्तेदार और गुलामों को शामिल किया जाता था
विवाह
- मुगल शासन के दौर में विवाह राजनीतिक संबंध बनाने और मित्रता स्थापित करने का एक अच्छा तरीका होता था
- उस दौर में मुख्य रूप से बहुपत्नी प्रथा प्रचलित थी इसीलिए बादशाहों की अनेकों पत्नियां हुआ करती थी
- पत्नियों के मुख्य रूप से तीन प्रकार हुआ करते
बेगम
- शाही परिवार से आने वाली स्त्रियों को बेगम कहा जाता था इनका परिवार में एक विशेष स्थान होता था
अगहा
- वे स्त्रियां जो शाही परिवार से संबंधित नहीं हुआ करती थी अगहा कहलाती थी इनकी स्थिति बेगम से निम्न हुआ करती थी
अगाचा
- यह राजा की उप पत्नियां हुआ करती थी इनकी स्थिति सबसे निम्न हुआ करती थी राजा के साथ रहने के लिए इन्हें मासिक भत्ता एवं उपहार दिए जाते थे
दास/गुलाम
- मुगल परिवार में अनेकों दास एवं दासिया हुआ करते थे
- यह सभी प्रकार के कार्य में निपुण हुआ करते थे
- इनका मुख्य कार्य शाही परिवार के सदस्यों की सेवा करना होता था
महिलाओं की स्थिति
- मुगल दरबार में महिलाओं की स्थिति सशक्त थी
- मुगल परिवार की मुख्य महिलाएं
गुलबदन बेगम
- यह बाबर की बेटी एवं हुमायूं की बहन थी
- यह तुर्की एवं फारसी भाषाओं की ज्ञात थी
- इन्होंने ही हुमायूंनामा की रचना की थी
नूरजहां
- नूरजहां जहांगीर की पत्नी थी
- यह इरान से संबंधित थी और
- जहाँगीर के दौर में नूरजहाँ का शासन पर गहरा प्रभाव था
जहांआरा रोशनआरा
- शाहजहाँनाबाद (वर्तमान दिल्ली) में स्थित चांदनी चौक की रूपरेखा जहांआरा द्वारा बनाई गई थी
- इन्होंने कई महत्वपूर्ण इमारतों एवं बागों की रूपरेखा बनाई थी
- जहांआरा द्वारा सूरत बंदरगाह से व्यापार भी किया जाता था
शाही नौकरशाही (अभिजात वर्ग)
- मुगल साम्राज्य में शासक अपने शासन को चलाने के लिए नौकरशाहों पर निर्भर होता था
- इन सभी नौकरशाहों को अभिजात वर्ग कहा जाता था
- यह सभी नौकरशाह राजा के प्रति वफादार होते थे
- इसमें सभी वर्गों से बराबर भर्तियां की जाती थी
- 1560 में पहली बार राजपूत और भारतीय मुसलमानों को अभिजात वर्ग में शामिल किया गया इसमें शामिल होने वाला प्रथम व्यक्ति एक राजपूत मुखिया अंबेर का राजा भारमल कछवाहा था
- जहांगीर के दौर में ईरानियों को उच्च पद प्राप्त हुए क्योंकि उनकी प्रभावशाली रानी नूरजहां ईरानी थी
प्रांतीय शासन
- प्रांतों में भी केंद्र की तरह ही कार्यों का विभाजन किया गया
- प्रांतीय शासन का मुख्य गवर्नर या सूबेदार होता था यह सीधा बादशाह के प्रति उत्तरदाई होता था
- इस पूरी व्यवस्था में सभी जानकारी लिखित रूप में रखी जाती थी
- प्रशासन की मुख्य भाषा फारसी थी अर्थात सभी दस्तावेजों को फारसी में लिखा जाता था
- ग्रामीण स्तर पर कई दस्तावेजों को स्थानीय भाषाओं में भी लिखा जाता था
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