पाठ – 15
संविधान का निर्माण
This post is about the detailed notes of class 12 History Chapter 15 Sanvidhaan ka nirmaan (Framing and the Constitution) in Hindi for CBSE Board. It has all the notes in simple language and point to point explanation for the students having History as a subject and studying in class 12th from CBSE Board in Hindi Medium. All the students who are going to appear in Class 12 CBSE Board exams of this year can better their preparations by studying these notes.
यह पोस्ट सीबीएसई बोर्ड के लिए हिंदी में कक्षा 12 इतिहास अध्याय 15 संविधान का निर्माण के विस्तृत नोट्स के बारे में है। इसमें सभी नोट्स सरल भाषा में हैं और सीबीएसई बोर्ड से हिंदी माध्यम से 12वीं कक्षा में एक विषय के रूप में इतिहास पढ़ने वाले छात्रों के लिए उपयोगी है। वे सभी छात्र जो इस वर्ष की कक्षा 12 सीबीएसई बोर्ड परीक्षा में शामिल होने जा रहे हैं, इन नोट्स को पढ़कर अपनी तैयारी बेहतर कर सकते हैं।
Board | CBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | History |
Chapter no. | Chapter 15 |
Chapter Name | संविधान का निर्माण (Framing and the Constitution) |
Category | Class 12 History Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
भारतीय संविधान
- भारतीय संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है
- इसे बनाने की शुरुआत 1946 में की गई थी और 1949 के अंत में जाकर इसका कार्य पूरा हुआ
- भारतीय संविधान को बनाने में लगभग 2 साल 11 महीने और 18 दिन का समय लगा
- इसे बनाने में लगभग 64 लाख का खर्चा किया गया
- भारतीय संविधान में भारतीय शासन व्यवस्था, राज्य और केंद्र के संबंधों एवं राज्य के मुख्य अंगो के कार्यों का वर्णन किया गया है
- भारतीय संविधान का निर्माण देश निर्माण के सबसे महत्वपूर्ण कार्य में से एक था
- भारतीय संविधान का निर्माण जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जैसे बड़े-बड़े नेताओं द्वारा किया गया था
भारतीय संविधान सभा के सामने उपस्थित चुनौतियां
- भारतीय संविधान सभा के सामने भारत का संविधान बनाने की जिम्मेदारी थी
- इस संविधान के निर्माण के दौरान उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा
- अल्पसंख्यक वर्गों का विकास
- देश में स्थित विभिन्नता के साथ एकता कायम करना
- केंद्र एवं राज्य की सरकारों में शक्तियों का बंटवारा करना
- भारतीय शासन व्यवस्था में स्थित संगठनों एवं संस्थाओं में शक्तियों का बराबर बंटवारा करना
संविधान सभा का गठन
- भारतीय संविधान सभा का गठन कैबिनेट मिशन द्वारा दिए गए प्रस्ताव द्वारा हुआ
- इसके अंतर्गत संविधान सभा में कुल 389 सदस्यों को चुना गया इसमें से 296 सदस्य ब्रिटिश भारत से चुने गए एवं 93 सदस्य देसी रियासतों से चुने गए
- देश में हर प्रांत और रियासतों में सीटों का बंटवारा वहां की जनसंख्या के अनुपात के अनुसार किया गया
- चुनावों में कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया और वह लगभग सभी क्षेत्रों में बहुमत में रही
- मुस्लिम लीग ने संविधान सभा का बहिष्कार किया और अपने लिए अलग देश पाकिस्तान की मांग जारी रखी
- भारतीय संविधान सभा में लगभग 82% सदस्य कांग्रेस पार्टी के थे
चर्चाएं
- भारतीय संविधान सभा में हर विषय पर गंभीरता से चर्चा की गई
- वैसे तो संविधान सभा में कांग्रेस का बहुमत था परंतु कांग्रेस के अंदर ही अलग-अलग विचारधाराओं के नेता मौजूद थे जिस वजह से हर विषय पर गंभीरता से बहस हुई
- कांग्रेस में कई नेता ऐसे थे जो समाजवाद से प्रेरित थे
- कुछ नेताओं पर सांप्रदायिक दलों का प्रभाव था
- इसके विपरीत कुछ नेता पूर्ण रूप से धर्मनिरपेक्ष थे
- इस तरह कांग्रेस के अंदर भी अलग अलग विचारधारा को मानने वाले लोग थे जिस वजह से संविधान सभा में हर विषय पर गंभीर चर्चाएं हुई
- इन सभी चर्चाओं में देश की आम जनता का भी गहरा प्रभाव था क्योंकि संविधान सभा में हो रही हर चर्चा को अखबारों में प्रकाशित किया जाता था और प्रेस में इनकी आलोचना एवं समर्थन किया जाता था इस प्रकार सामान्य जनता का भी संविधान सभा के निर्णयों पर प्रभाव हुआ करता था
संविधान सभा के मुख्य नेता
- वैसे तो संविधान सभा में अनेकों नेता थे परंतु इसमें कुछ मुख्य नेता थे जिन्होंने संविधान के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
- राजेंद्र प्रसाद –
- संविधान सभा के अध्यक्ष
- वल्लभ भाई पटेल
- डॉ भीमराव अंबेडकर –
- संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्यक्ष
- के एम मुंशी
- अल्लादी कृष्णस्वामी
- एस एन मुखर्जी
- बी एन राव
- जवाहरलाल नेहरू आदि
- राजेंद्र प्रसाद –
संविधान सभा की बैठक
प्रथम बैठक
- संविधान सभा की प्रथम बैठक 9 दिसंबर 1946 में हुई
- मुस्लिम लीग ने इस बैठक का बहिष्कार किया क्योंकि वह अपने लिए एक अलग देश पाकिस्तान चाहते थे
- इस बैठक के दौरान डॉ सच्चिदानंद सिन्हा को संविधान सभा का अस्थाई अध्यक्ष चुना गया
दूसरी बैठक
- संविधान सभा की दूसरी बैठक 11 दिसंबर 1946 को हुई इसी बैठक के दौरान डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को संविधान सभा का स्थाई अध्यक्ष चुना गया
तीसरी बैठक (13 दिसंबर 1946)
- संविधान सभा की तीसरी बैठक 13 दिसंबर 1946 को हुई संविधान सभा की तीसरी बैठक में ही पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा संविधान सभा का उद्देश्य प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया था
उद्देश्य प्रस्ताव
- जवाहरलाल नेहरू द्वारा संविधान का उद्देश्य प्रस्ताव संविधान सभा की तीसरी बैठक में प्रस्तुत किया गया
- इस प्रस्ताव के अंतर्गत वह सभी बातें वर्णित थे जिनके आधार पर भारतीय संविधान का निर्माण किया जाना था
- इस प्रस्ताव के अंतर्गत भारत को एक स्वतंत्र एवं संप्रभु देश बनाने की घोषणा की गई
- जवाहरलाल नेहरु जी ने कहा कि भारतीय संविधान के द्वारा देश में सभी नागरिकों को न्याय, समानता एवं स्वतंत्रता प्रदान की जाएगी
- साथ ही साथ भारतीय संविधान देश के अल्पसंख्यक एवं पिछड़े वर्ग के विकास का भी ध्यान रखेगा
- इस संविधान का निर्माण देश में स्थित लोगों की जरूरतों और मांगों के आधार पर किया जाएगा
- यानी कि भारतीय संविधान, संविधान सभा के सदस्यों की मांगों और इच्छाओं की बजाय देश के लोगों की मांग और इच्छाओं के अनुसार बनाया जाएगा
संविधान सभा का विरोध
- सविधान सभा के कम्युनिस्ट सदस्य सोमनाथ लाहिड़ी द्वारा संविधान सभा का विरोध किया गया
- जिस दौर में संविधान सभा बनाई गई थी उस दौर में ब्रिटिश, भारत छोड़कर नहीं गए थे और देश में जवाहरलाल नेहरू की एक अंतरिम सरकार चल रही थी
- वह सरकार तो जवाहरलाल नेहरू की थी परंतु अपना सारा काम वायसराय और लंदन में बैठी ब्रिटिश सरकार की देखरेख में करती थी
- सोमनाथ लाहिड़ी जी ने कहा की अंग्रेजों द्वारा बनाई गई यह संविधान सभा अंग्रेजों से प्रभावित है
- इसी वजह से हमें इस संविधान सभा को छोड़कर संपूर्ण आजादी प्राप्त करनी चाहिए ताकि हम अपने संविधान को अपने अनुसार बना सके
- इस बात के जवाब में नेहरु जी ने कहा कि भले ही यह संविधान सभा अंग्रेजों की रूपरेखा द्वारा बनाई गई है और संविधान सभा में उपस्थित सभी सदस्य एक अलग प्रकार की संविधान सभा चाहते हैं
- फिर भी हम सभी संविधान सभा के सदस्यों की यह जिम्मेदारी है कि इस संविधान सभा के अंतर्गत हम एक ऐसे संविधान का निर्माण करें जो देश के आम लोगों की आकांक्षा और मांगों को पूरा करने में सक्षम हो
- भले ही इस संविधान सभा का निर्माण अंग्रेजी सरकार की रूपरेखा के अनुसार किया गया है परंतु इस संविधान सभा को ताकत, आजादी के संग्राम में शामिल हुए सभी लोगों एवं भारत के नागरिकों से मिलती हैं
पृथक निर्वाचन
- 27 अगस्त 1947 को मद्रास के बी. पोकर बहादुर द्वारा पृथक निर्वाचन क्षेत्र के पक्ष में एक भाषण दिया गया
- इस भाषण में उन्होंने कहा कि हमें एक ऐसी राजनीतिक व्यवस्था की जरूरत है जहां पर अल्पसंख्यक भी अन्य लोगों की तरह समाज में समान रूप से रह सके एवं राजनीति में उनका पूरा प्रतिनिधित्व हो सके उनकी आवाज सुनी जाए और उनके विचारों पर ध्यान दिया जाए
- इसीलिए उन्होंने पृथक निर्वाचन क्षेत्रों की मांग की ताकि देश में सभी अल्पसंख्यकों को राजनीति में उनकी हिस्सेदारी मिल सके परंतु संविधान सभा के कई सदस्यों द्वारा इसका विरोध किया गया
- सरदार वल्लभभाई पटेल ने कहा कि पृथक निर्वाचन क्षेत्र एक ऐसा विषय है जिसने देश में एक समुदाय को दूसरे समुदाय से लड़ने पर मजबूर कर दिया इसी वजह से देश के टुकड़े हुए और देश में इतने बड़े स्तर पर दंगे हुए अगर देश में शांति स्थापित करनी है तो इस विषय को यहीं छोड़ देना सही रहेगा
आदिवासी और उनके अधिकार
- मुख्य आदिवासी नेता जयपाल सिंह जी ने कहा कि आदिवासी संख्या के आधार पर अल्पसंख्यक नहीं है परंतु उन्हें संरक्षण की आवश्यकता है
- शुरू से ही उन्हें संसाधनों से वंचित रखा गया है
- उन्हें आदिम और पिछड़ा मानते हुए समाज ने उनकी उपेक्षा की है
- जिस वजह से वह पिछड़ा हुआ जीवन जीने के लिए मजबूर है ऐसे में उन्हें मुख्यधारा में शामिल करना और अधिकार उपलब्ध करवाना अत्यंत आवश्यक है
दलित
- संविधान सभा में दलितों के विषय पर लंबी बहस हुई
- राष्ट्रीय आंदोलनों के दौरान डॉ भीमराव अंबेडकर द्वारा दलित जातियों के लिए पृथक निर्वाचन क्षेत्रों की मांग की गई थी जिसका महात्मा गांधी ने विरोध किया था और कहा था कि ऐसा करने से दलित समुदाय बाकी समाज से पूरी तरह से कट जाएगा
- जै अंगप्पा ने कहा कि हरिजन अल्पसंख्यक नहीं है परंतु समाज के अन्य वर्गों द्वारा उन्हें हमेशा संसाधनों और राजनीतिक शक्ति से दूर रखा गया है जिस वजह से वह हमेशा पीड़ा का शिकार रहे हैं ना तो उन्हें शिक्षा के अवसर दिए गए ना ही शासन में साझेदारी दी गई
- इन सब तर्कों को सुनते हुए संविधान सभा में यह सुझाव दिया गया कि
- अस्पृश्यता का उन्मूलन किया जाएगा
- हिंदू मंदिरों को सभी जातियों के लिए खोल दिया जाएगा
- निचली जातियों के लोगों को विधायिका और सरकारी नौकरी में आरक्षण दिया जाएगा
राज्य की शक्तियां
- भारत में संसदीय शासन व्यवस्था को अपनाया गया जिस वजह से संविधान सभा में इस बात पर तीखी बहस हुई कि
- केंद्र और राज्य सरकार को कौन-कौन से अधिकार दिए जाने चाहिए
- संविधान सभा के कई नेता एवं जवाहरलाल नेहरू ताकतवर केंद्र के पक्ष में थे
- वह चाहते थे कि केंद्र सरकार को राज्य सरकार से ज्यादा शक्तियां दी जाए
- इसी को देखते हुए संविधान में तीन सूचियों का निर्माण किया गया
केंद्रीय सूची :-
- इसमें केंद्र सरकार के अधीन आने वाले सभी विषयों का वर्णन किया गया
राज्य सूची :-
- इसमें राज्य सरकार के अधीन आने वाले सभी विषयों का वर्णन किया गया
समवर्ती सूची :-
- इस सूची में ऐसे विषयों का वर्णन किया गया जो केंद्र और राज्य दोनों के अधिकार क्षेत्र में आते थे
- कई नेताओं द्वारा केंद्र को शक्तिशाली बनाए जाने का विरोध किया इसमें प्रमुख नेता के. संतनम थे
- उन्होंने कहा कि केंद्र को ज्यादा शक्तियां सौंपने से उसकी जिम्मेदारी बढ़ जाएगी जिस वजह से वह प्रभावी ढंग से काम नहीं कर पाएगा
- इन नेताओं ने पूरे प्रयास किए ताकि केंद्र एवं समवर्ती सूची में कम से कम विषय रखे जाएं
राष्ट्रीय भाषा
- आजाद भारत में अनेकों भाषाएं बोलने वाले लोग रहते थे इन सब की संस्कृति और मान्यताएं अलग थी
- ऐसे में एक बड़े राष्ट्र का निर्माण करना बहुत मुश्किल था क्योकि यह सभी लोग अलग मान्यताओं और अलग संस्कृतियों से जुड़े हुए थे और भाषाएं अलग होने के कारण एक दूसरे को ठीक प्रकार से समझ भी नहीं सकते थे
- संविधान सभा में इस बात पर तीखी बहस हुई कि आखिर किस भाषा को देश की राष्ट्रभाषा बनाया जाए
- शुरुआत में गांधीजी का मानना था कि एक ऐसी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाना उचित रहेगा जिसे देश का हर व्यक्ति आसानी से समझ सके
- इसी को देखते हुए गांधीजी हिंदी और उर्दू के मेल से बनी हिंदुस्तानी भाषा को देश की राष्ट्रभाषा बनाना चाहते थे क्योंकि भारतीय जनता के बहुत बड़े हिस्से द्वारा इस भाषा को बोला और समझा जाता था
- परंतु जैसे-जैसे व्यवस्था आगे बढ़ी तो देश में बढ़ रहे सांप्रदायिक टकराव के कारण हिंदी और उर्दू एक दूसरे से दूर होती गई एक तरफ जहां हिंदी को संस्कृत से जोड़ने के प्रयास किए गए वहीं दूसरी तरफ उर्दू में फारसी शब्द जुड़ते गए जिस वजह से हिंदुस्तानी भाषा के स्वभाव में परिवर्तन आया
हिंदी भाषा का समर्थन
- संयुक्त प्रांत से निर्वाचित कांग्रेस के सदस्य आर वी धूलेकर ने हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने का बढ़-चढ़कर समर्थन किया
- लगभग अगले 3 साल तक राष्ट्रभाषा का मसला संविधान सभा के लिए समस्या बना रहा
- कई बार इस मसले को लेकर संविधान सभा में हंगामा भी हुआ
- इसके बाद संविधान सभा की भाषा समिति ने अपनी रिपोर्ट पेश की
- इसके अंतर्गत समिति ने कहा कि हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए हमें धीरे-धीरे आगे बढ़ना होगा
- उन्होंने सुझाव दिया कि पहले 15 साल तक सभी सरकारी कामकाज अंग्रेजी भाषा में किया जाए
- सभी प्रांतों को अपने कामों के लिए कोई एक क्षेत्रीय भाषा चुनने का अधिकार दिया जाए
- इस तरह राष्ट्रभाषा के मुद्दे को सुलझाया गया
भारतीय संविधान
- भारतीय संविधान का निर्माण 26 नवंबर 1949 को पूरा हुआ
- इसे बनाने में लगभग 2 साल 11 महीने और 18 दिन का समय लगा और लगभग 64 लाख खर्च किए गए
- 26 जनवरी 1950 को इसे लागू किया गया
- इस तरह लंबी चर्चा और अनेकों समस्याओं के बाद भारत का संविधान बनकर तैयार हुआ
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Superb notes sir