बनारस (CH-4) Notes in Hindi || CBSE Board Class 12 Hindi Chapter 4 Notes in Hindi ||

 

पाठ – 4

बनारस

This post is about the detailed notes of class 12 Hindi Chapter 4 banaaras in Hindi for CBSE Board. It has all the notes in simple language and point to point explanation for the students having Hindi as a subject and studying in class 12th from CBSE Board in Hindi Medium. All the students who are going to appear in Class 12 CBSE Board exams of this year can better their preparations by studying these notes.

यह पोस्ट सीबीएसई बोर्ड के लिए हिंदी में कक्षा 12 हिंदी अध्याय 4 बनारस  के विस्तृत नोट्स के बारे में है। इसमें सभी नोट्स सरल भाषा में हैं और सीबीएसई बोर्ड से हिंदी माध्यम से 12वीं कक्षा में एक विषय के रूप में हिंदी पढ़ने वाले छात्रों के लिए उपयोगी है। वे सभी छात्र जो इस वर्ष की कक्षा 12 सीबीएसई बोर्ड परीक्षा में शामिल होने जा रहे हैं, इन नोट्स को पढ़कर अपनी तैयारी बेहतर कर सकते हैं।

केदारनाथ सिंह का जीवन परिचय

  • जनम
    • 1934 को उत्तर प्रदेश के चकिया गाँव में
  • शिक्षा
    • B.A बनारस के उदय प्रताप कॉलेज से की
    • M.A काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से की
  • उपाधि
    • PHD आधुनिक हिंदी कविता में बिम्ब विधान का विकास
  • रचनाएँ
    • काव्य संग्रह
      • अभी बिलकुल अभी,
      • यहाँ से देखो
      • अकाल में सारस, जमीन पक रही है

बनारस

कवि: – केदारनाथ सिंह

 

पाठ का परिचय

  • इस कविता में बनारस की सांस्कृतिक विशेषताओं का वर्णन किया गया है
  • गंगा, गंगा के घाट, मंदिरो और भिखारियों का भी इस कविता में वर्णन किया गया है

इस शहर में बसंत

अचानक आता है

और जब आता हे तो मैंने देखा हे

लहरतारा या मडुवाडीह की तरफ़ से

उठता है धूल का एक बवंडर!

और इस महान पुराने शहर की जीभ

किरकिराने लगती हे

  • कवि कहते हैं कि जब बनारस शहर में वसंत आती है तब लहरतारा और मडुवाडीह शहर से एक धूल का बवंडर उठता है जिसकी वजह से चारों और धूल उड़ने लगती है और इस प्राचीन शहर की सुंदरता और निखर जाती है 

जो है वह सुगबुगाता है

जो नहीं है वह फेंकने लगता है पचखियाँ

आदमी दशाश्वमेध पर जाता है

और पाता है घाट का आखिरी पत्थर

कुछ और मुलायम हो गया हे

  • वसंत के आने से पेड़ों पर नए पत्ते आ जाते हैं और पेड़ों पर कोयल गीत गाने लगती है, बसंत के आने पर दशाश्वमेध घाट पर और भी ज्यादा चहल-पहल हो जाती हैं
  • कवि कहते हैं कि घाट का आखरी पत्थर भी मुलायम हो जाता है इसका मतलब यह है कि कठोर हृदय वाला मनुष्य भी यहां पर रहकर कोमल हृदय का हो जाता है

सीढ़ियों पर बैठे बंदरों की आँखों में

एक अजीब सी नमी है

और एक अजीब सी चमक से भर उठा है

भिखारियों के कटोरों का निचाट खालीपन

तुमने कभी देखा हे

खाली कटोरों में बसंत का उतरना!

यह शहर इसी तरह खुलता है

इसी तरह भरता

और खाली होता है यह शहर

  • सीढ़ियों पर बैठे बंदरों को किसी भी प्रकार का डर नहीं है इस बात से यह ज्ञात होता है कि वहां के लोगों में ना केवल मनुष्य के लिए बल्कि जानवरों के लिए भी प्यार है
  • उनका कहना है कि वसंत के आते ही भिखारियों के कटोरे भी भर जाते हैं लोग बनारस आते हैं और उनके कटोरो में सिक्के डालते हैं

इसी तरह रोज़-रोज़ एक अनंत शव

ले जाते हैं कंधे

अँधेरी गली से

चमकती हुई गंगा की तरफ़

  • लोगों का मानना है कि अगर बनारस शहर की गंगा नदी में मनुष्यों की अस्थियों को बहाया जाता है तो उन सभी मनुष्य को मोक्ष प्राप्त हो जाती है इसलिए अनेकों लोग इस शहर में अनेकों शवों को गंगा नदी में बहाते हैं ताकि उनको मोक्ष प्राप्त हो सके

इस शहर में धूल

धीरे-धीरे उड़ती हे

धीरे-धीरे चलते हैं लोग

धीरे-धीरे बजते हैं घंटे

शाम धीरे-धीरे होती हे

  • बनारस एक प्राचीन अर्थात शांत शहर है जहां हर काम शांति पूर्वक किया जाता है ना की भागदौड़ के साथ
  • बनारस में रहने वाले निवासियों का व्यक्तित्व शांत और स्वभाव पुराने विचारों वाला है

यह धीरे-धीरे होना

धीरे-धीरे होने की सामूहिक लय

दृढ़ता से बाँधे है समूचे शहर को

इस तरह कि कुछ भी गिरता नहीं -हे

कि हिलता नहीं है कुछ भी

कि जो चीज़ जहाँ थी

वहीं पर रखी है

कि गंगा वहीं हे

कि वहीं पर बँधी हैं-नाव

कि वहीं पर रखी है तुलसीदास की खड़ाऊँ

सैकड़ों बरस॑ से

  • धीरे-धीरे कार्य करने की विधि के कारण उन्होंने सभी को एकता के सूत्र में बांध रखा है
  • घाट पर बनी नाव हो या फिर तुलसीदास की पादुकाएं हो वह सैकड़ों वर्षो से गंगा के समान वही की वही है
  • इन सब बातों के माध्यम से कवि यह बताना चाहता है कि यहां की परंपरा सैकड़ों वर्षो से वैसी ही है जैसी वह पहले थी कितनी भी आधुनिक चीजें बनारस में आई हो पर बनारस ने अपनी परंपराओं को छोड़ा नहीं

कभी सई-साँझ

बिना किसी सूचना के

घुस जाओ इस शहर में

कभी आरती के आलोक में 

इसे अचानक देखो

अद्भुत है इसकी बनावट

यह आधा जल में हे

आधा मंत्र में

आधा फूल में है

आधा शव में

आधा नींद में है

आधा शंख में

अगर ध्यान से देखो

तो यह आधा है

और आधा नहीं है

  • इन पंक्तियों के माध्यम से कवि बनारस की शाम की सुंदरता का वर्णन करता है
  • वह कहते हैं अगर ध्यान से शाम के समय बनारस शहर को देखा जाए तो घाटों और मंदिरों पर आरतियां होती हैं जिसके कारण वह चारों तरफ प्रकाश में फैलाती है
  • जादू, मंत्र और फूल भगवान की आरती करते हुए श्रद्धा से गंगा नदी में डूबे हुए लगते हैं 

जो है वह – खड़ा है

बिना किसी स्तंभ-के

जो नहीं है उसे थामे है

राख और रोशनी के ऊँचे-ऊँचे स्तंभ

आग के स्तंभ

और पानी के स्तंभ

धुएँ के

खुशबू के

आदमी के उठे हुए हाथों के स्तंभ

  • इन पंक्ति में केदारनाथ ने बनारस के विश्वास और आस्था का वर्णन किया है
  • बनारस शहर बिना किसी खंभे के सहारे से सदियों से खड़ा है
    • आग के स्तंभ: – यज्ञ पूजा
    • पानी के स्तंभ: – गंगा
    • खुशबू के स्तंभ: – अगरबत्ती
    • दोहे के स्तंभ: – आरती
    • मनुष्य के उठे हाथों के स्तंभ: – भक्त
  • इन स्तंभों के कारण बनारस शहर सदियों से टिका हुआ है

किसी अलक्षित सूर्य को

देता हुआ अर्घ्य

शताब्दियों से इसी तरह

गंगा के जल में

अपनी एक टाँग पर खड़ा है यह शहर

अपनी दूसरी टाँग से

बिलकुल बेखबर!

  • बनारस के लोग सैकड़ों सालों से धर्म और कर्म कर रहे हैं 
  • बनारस के निवासियों को आधुनिक जीवन से कोई मोह नहीं है ना ही कोई बैर है

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