पाठ – 2
सरोज स्मृति
This post is about the detailed notes of class 12 Hindi Chapter 2 saroj smrti in Hindi for CBSE Board. It has all the notes in simple language and point to point explanation for the students having Hindi as a subject and studying in class 12th from CBSE Board in Hindi Medium. All the students who are going to appear in Class 12 CBSE Board exams of this year can better their preparations by studying these notes.
यह पोस्ट सीबीएसई बोर्ड के लिए हिंदी में कक्षा 12 हिंदी अध्याय 2 सरोज स्मृति के विस्तृत नोट्स के बारे में है। इसमें सभी नोट्स सरल भाषा में हैं और सीबीएसई बोर्ड से हिंदी माध्यम से 12वीं कक्षा में एक विषय के रूप में हिंदी पढ़ने वाले छात्रों के लिए उपयोगी है। वे सभी छात्र जो इस वर्ष की कक्षा 12 सीबीएसई बोर्ड परीक्षा में शामिल होने जा रहे हैं, इन नोट्स को पढ़कर अपनी तैयारी बेहतर कर सकते हैं।
सरोज स्मृति
कवि: – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
पाठ का परिचय
- सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की बेटी का नाम सरोज था अपनी बेटी की याद में उसकी मृत्यु के बाद सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने यह कविता लिखी है
- यह कविता सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने अपनी बेटी की मृत्यु के बाद उसकी याद में लिखी इस कविता में उन्होंने अपनी बेटी के जीवन का वर्णन किया है
- यह कविता हिंदी का सबसे लंबा शोक गीत है
देखा विवाह आमूल नवल,
तुझ पर शुभ पड़ा कलश का जल।
- कवि कहता है कि पुत्री तुम्हारा विवाह एक नई पद्धति से हुआ था
- सरोज के विवाह के समय उसकेमाता पिता के कर्तव्य को संपूर्ण तरीके से सूर्यकांत ने निभाया था
- सरोज के विवाह से पहले उसकी माता का देहांत हो गया था इसलिए जो कार्य माता को करना था वह कार्य भी सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी ने कियाथा
- उदाहरण
- पवित्र कलश के पानी से नहलाने का कार्य
- उदाहरण
देखती मुझे तू हँसी मंद,
होठों में बिजली फँसी स्पंद
- कवि कहते हैं की जब मैं सरोज पर पवित्र जल डाल रहा था तो वह मुझे हल्की मुस्कान के साथ देख रही थी और सरोज की मुस्कान को देखकर ऐसा लगता था कि मानो आसमान में बिजली चमक रही हो
उर में भर झूली छबि सुंदर
प्रिय की अशब्द श्रृंगार-मुखर
- कवि बताते हैं कि स्मृति की आंखों में उसके पति की एक सुंदर छवि दिख रही थी और यह बात साफ-साफ तुम्हारे किए गए श्रृंगार द्वारा पता चल रही थी
- स्मृति की हल्की हल्की मुस्कुराहट देखकर उन्हें अपनी पत्नी मनोहरा देवी की याद आ जाती है और अपनी बेटी समृति के श्रृंगार में उन्हें अपनी पत्नी का रूप दिखाई देता है
तू खुली एक-उच्छवास-संग,
विश्वास-स्तब्ध बँध अंग-अंग
- सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का कहना था कि जिस तरह हल्की-हल्की सांस लेने से वह पूरे शरीर में फैलती है उसी प्रकार सरोज का सौंदर्य उसके अंग अंग में फैल रहा था
नत नयनों से आलोक उतर
काँपा अधरों पर थर-थर-थर।
- स्मृति अपने विवाह के दिन शर्मा रही थी और वह शर्म उसकी आंखों में चमक रही थी और उसी चमक के कारण स्मृति के होठों पर एक हल्की सी मुस्कान झलक रही थी
देखा मैंने, वह मूर्ति-धीति
मेरे बसंत की. प्रथम -गीति-
- कवि सरोज की तुलना एक मूर्ति से करते हैं
- स्मृति को देखकर सूर्यकांत त्रिपाठी निराला को अपने पहले बसंत गीत की याद आ जाती है
- जिस गीत की सूर्यकांत त्रिपाठी निराला को याद आती है वह गीत उन्होंने सबसे पहले मनोहरा देवी के साथ गाया था इसी वजह से सरोज को देखकर उन्हें मनोहरा देवी की याद आ जाती है
श्रृंगार, रहा जो निराकार,
रस कविता में उच्छवसित-धार
- उन्हों का कहना था कि उन्होंने अपनी कविताओं में संपूर्ण विश्व की सुंदरता को दर्शाया था और जो भावना उन्होंने अपने गीतों में लिखी थी वही भावना आज रस बनकर सरोज के विवाह के दिन सूर्यकांत त्रिपाठी निराला को दिख रही थी
गाया स्वर्गीया-प्रिया-संग-
भरता प्राणों में राग-रंग,
- वह कहते हैं कि पुत्री सरोज का श्रृंगार ऐसा लगता है कि जैसे वह “श्रंगार” गीत हो जो उन्होंने अपनी स्वर्गीय पत्नी मनोहरा देवी के साथ गाया था और जो गीत उन्होंने अपनी स्वर्गीय पत्नी मनोहरा देवी के साथ गाया था वह गीत उनके मन मन में रंग का उत्साह भर देता है
रति-रूप प्राप्त कर रहा वही,
आकाश बदल कर बना मही।
- कवि कहते हैं कि सरोज का श्रृंगार रति के समान लग रहा था (रति कामदेव की पत्नी थी) और कवि को ऐसा लगता था कि उनकी पत्नी की सुंदरता आकाश से उतरकर सरोज में समा गई हो
हो गया ब्याह, आत्मीय स्वजन,
कोई थे नहीं, न आमंत्रण
था भेजा गया, विवाह-राग
भर रहा न घर निशि-दिवस जाग;
प्रिय मौन एक संगीत भरा
नव जीवन के स्वर पर उतरा।
- हो गई शादी, सरोज की शादी में किसी भी रिश्तेदार को नहीं बुलाया गया था
- विवाह के समय कोई भी प्रथा नहीं निभाई गई, ना तो गीत गाए गए, ना ही विवाह में कोई चहल-पहल थी, बस चारों तरफ मन की खुशी थी
माँ की कुल शिक्षा मैंने दी,
पुष्प-सेज तेरी स्वयं रची,
- कवि अपनी स्वर्गीय पुत्री सरोज को संबोधित करते हुए कहते हैं कि पुत्री के विवाह के समय जो एक शिक्षा मां देती है अपनी पुत्री को वह शिक्षा भी मैंने ही दी
सोचा मन में, “वह शकुंतला,
पर पाठ अन्य यह, अन्य कला।”
- “शकुंतला” महाकवि “कालिदास” के नाटक “अभिज्ञान शकुंतला” की नायिका थी
- सरोज के विवाह के समय कवि को शकुंतला की याद आई क्योंकि महर्षिकर्ण ने शकुंतला के विवाह के समय उनको शिक्षा दी थी उसी प्रकार निराला जी ने भी सरोज के विवाह के समय उनको शिक्षा दी थी
- शकुंतला की मां ने उन्हें अपनी इच्छा अनुसार छोड़ा था परंतु सरोज की मां की मृत्यु हुई थी
कुछ दिन रह गृह तू फिर समोद,
बैठी नानी की स्तेह-गोद।
- विवाह के बाद कुछ दिन घर में रहकर सरोज अपने नाना नानी के घर चली गई उस घर में स्मृति को नाना नानी का साथ ही साथ मामा मामी का भी प्यार मिला
मामा-मामी का रहा प्यार,
भर जलद धरा को ज्यों अपार;
वे ही सुख-दुख में रहे न्यस्त,
तेरे हित सदा समस्त, व्यस्त;
- मामा मामी स्मृति पर प्यार की वर्षा इस तरह करते थे जिस तरह आकाश धरती जल की वर्षा करता है
- ननिहाल में भी सरोज के सुख-दुख का ध्यान रखा जाता था
वह लता वहीं की, जहाँ कली
तू खिली, स्नेह से हिली, पली,
अंत भी उसी गोद में शरण
ली, मूँदे दृग वर महामरण!
- कवि कहते हैं कि सरोज जिस लता की कली थी उस लता का पालन पोषण भी उसकी मां ने ननिहाल में ही किया,सरोज अपने ननिहाल में ही बढ़ी हुई और अपने ननिहाल में ही उसकी मृत्यु हो गई
मुझ भाग्यहीन की तू संबल
युग वर्ष बाद जब हुई विकल,
दुख ही जीवन को कथा रही
क्या कहूँ आज, जो नहीं कही!
- सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का कहना है कि मैं तो हमेशा से ही भाग्यहीन था उनकी पत्नी ही उनका एकमात्र सहारा थी परंतु उनकी मृत्यु के बाद उनका जीवन दुखों की एक कथा बन चुका था
हो इसी कर्म पर वज्रपात
यदि धर्म, रहे नत सदा माथ
इस पथ पर, मेरे कार्य सकल
हों भ्रष्ट शीत के-से शतदल!
- कवि का जीवन बहुत ही दुंखो से भरा था इसलिए वह अपनी पुत्री के विवाह के समय वह सब नहीं कर पाए जो वह करना चाहते थे
- कवि कहते हैं कि अपना कर्तव्य निभाते समय अगर मेरे द्वारा किए गए सभी अच्छे कार्य नष्ट हो जाते हैं तो भी मुझे उसका अफसोस नहीं होगा
कन्ये, गत कर्मों का अर्पण
कर, करता मैं तेरा तर्पण!
- सूर्यकांत कहते हैं कि “हे पुत्री मेरे द्वारा किए गए सभी अच्छे कार्यों का फल” जो मैंने पाया है उन सभी को मैं तुझे अर्पित कर तेरा श्राद्ध कर रहा हूं और यही मेरी तेरे प्रति श्रद्धांजलि है
विशेष
- इस काव्यांश में कवि अपनी पुत्री सरोज स्मृति के जीवन से लेकर मृत्यु तक के जीवन का वर्णन करते हैं
- यह कविता सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने अपनी स्वर्गीय पुत्री सरोज स्मृति की याद में लिखी थी
- यह छंद मुक्त कविता है
- इस कविता में खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है
- मामा मामी में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया गया है
- यह छायावादी कविता है
- यह कविता संगीतात्मक है
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बहुत अच्छे नोट्स है