पाठ – 4
ग्रामीण समाज में विकास एवं परिवर्तन
This post is about the detailed notes of class 12 Sociology Chapter 4 gramin samaj mein vikas evam parivartan (Change and Development in Rural Society) in Hindi for CBSE Board. It has all the notes in simple language and point to point explanation for the students having Sociology as a subject and studying in class 12th from CBSE Board in Hindi Medium. All the students who are going to appear in Class 12 CBSE Board exams of this year can better their preparations by studying these notes.
यह पोस्ट सीबीएसई बोर्ड के लिए हिंदी में कक्षा 12 समाजशास्त्र अध्याय 4 ग्रामीण समाज में विकास एवं परिवर्तन के विस्तृत नोट्स के बारे में है। इसमें सभी नोट्स सरल भाषा में हैं और सीबीएसई बोर्ड से हिंदी माध्यम से 12वीं कक्षा में एक विषय के रूप में समाजशास्त्र पढ़ने वाले छात्रों के लिए उपयोगी है। वे सभी छात्र जो इस वर्ष की कक्षा 12 सीबीएसई बोर्ड परीक्षा में शामिल होने जा रहे हैं, इन नोट्स को पढ़कर अपनी तैयारी बेहतर कर सकते हैं।
Board | CBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Sociology |
Chapter no. | Chapter 4 |
Chapter Name | ग्रामीण समाज में विकास एवं परिवर्तन (Change and Development in Rural Society) |
Category | Class 12 Sociology Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
ग्रामीण समाज में विकास एवं परिवर्तन
- भारत शुरू से ही एक ग्रामीण देश रहा है वर्तमान में भी भारतीय जनसंख्या का एक बड़ा भाग ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करता है 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या का लगभग 67% हिस्सा ग्रामीण क्षेत्र में निवास करता है
- क्योंकि ग्रामीण क्षेत्र में जनसंख्या का एक बड़ा भाग कृषि पर आधारित होता है इसलिए भारतीय अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा भी कृषि पर आधारित है इसी वजह से भारत को एक कृषि प्रधान देश भी कहा जाता है
- भारत में कृषि सिर्फ एक रोजगार नहीं है बल्कि जीवन जीने का एक तरीका है
- इसी वजह से भारत के कई क्षेत्रों में कृषि संबंधित कई त्योहार भी मनाए जाते हैं उदाहरण के लिए पोंगल मकर संक्रांति बैसाखी आदि
- भारतीय संस्कृति और कृषि में गहरा संबंध देखने को मिलता है
कृषिक संरचना
- कृषक संरचना देश में भूमि के बंटवारे से संबंधित है
- हमारे देश में विभिन्न लोगों में भूमि का बंटवारा असमान है कुछ लोगों के पास अत्याधिक भूमि है जबकि कई क्षेत्रों में लोगों के पास लगभग ना के बराबर भूमि हैं
- भूमि की मात्रा के आधार पर कृषकों को मुख्य रूप से पांच भागों में बांटा जाता है
बड़े भूस्वामी
- बड़े भूस्वामी वह भूस्वामी है जिनके पास अत्याधिक मात्रा में भूमि होती है पहले इन्हें जमींदार भी कहा जाता था
- यह अपनी भूमि से अच्छा खासा लाभ कमा लेते हैं
मध्यम भूस्वामी
- इनके पास मध्यम मात्रा में भूमि होती है जिससे यह अपना जीवनयापन करते हैं और कुछ लाभ कमा लेते हैं
सीमांत भूस्वामी
- यह वह भूस्वामी है जिनके पास काफी कम जमीन होती है इस जमीन पर खेती करके वह अपनी आवश्यकता पूरी कर लेते हैं परंतु बाजार में बेचने के लिए फसल नहीं उगा पाते
भूमिहीन मजदूर
- यह वह लोग हैं जिनके पास अपनी जमीन नहीं है यह दूसरों के खेतों में काम करके मजदूरी कमाते हैं और अपना जीवन यापन करते हैं
- इनका रोजगार असुरक्षित होता है
- ज्यादातर भूमिहीन मजदूर रोजाना काम करने वाले होते हैं और इन्हें दैनिक आधार पर मजदूरी मिलती है
काश्तकार या पट्टेदार
- यह वह कृषक है जो भूस्वामी से जमीन उधार पर लेकर उस पर कृषि करते हैं
- इनकी आमदनी भू स्वामियों से कम होती है क्योंकि इन्हें अपनी आमदनी का 50% से 70% हिस्सा भू स्वामियों को किराए के रूप में देना पड़ता है
महिलाओं की स्थिति
भूमि पर अधिकार के आधार पर महिलाओं की स्थिति शुरू से ही खराब रही है क्योंकि पितृवंशिक समाज होने के कारण महिलाओं को कभी भी भूमि पर अधिकार नहीं मिला
ग्रामीण समाज में जाति और वर्ग
- भारतीय ग्रामीण समाज में जाति व्यवस्था का प्रभाव शुरू से रहा है वर्तमान की आधुनिक व्यवस्थाएं भी इस प्रभाव को कम नहीं कर पाई हैं
- भारत में कृषि की संरचना को देखते हुए यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि भारत में प्रबल जातियों के पास अधिक भूमि है
- प्रबल जातियां उन जातियों या समूहों को कहा जाता है जो आर्थिक और राजनीतिक रूप से अन्य जातियों के मुकाबले ज्यादा शक्तिशाली होती हैं
- उदाहरण के लिए
- कर्नाटक में लिंगायत
- आंध्र प्रदेश में कम्मास और रेड्डी
- पंजाब के जाट
- उत्तर प्रदेश में जाट और राजपूत आदि
- देश के अधिकतर क्षेत्रों में सभी प्रकार के संसाधनों का स्वामित्व कुछ व्यक्तियों के पास होता है और क्षेत्र के अन्य लोग मजदूर के रूप में उन व्यक्तियों के पास कार्य करते हैं
औपनिवेशिक भारत एवं ग्रामीण समाज
भारतीय ग्रामीण समाज की अर्थव्यवस्था शुरू से ही कृषि पर निर्भर रही है औपनिवेशिक काल के दौरान अंग्रेजों द्वारा कृषि संबंधी कई नई कर व्यवस्थाएं लागू की गई जिसका भारतीय कृषि पर गहरा प्रभाव पड़ा
- अंग्रेजों के दौर में मुख्य रूप से तीन प्रकार की कर व्यवस्था प्रचलित थी।
- इस्तमरारी बंदोबस्त (जमींदारी व्यवस्था, स्थाई बंदोबस्त)
- रैयतवाड़ी व्यवस्था
- महालवाड़ी व्यवस्था
इस्तमरारी बंदोबस्त
- इस्तमरारी बंदोबस्त को जमींदारी बंदोबस्त या स्थाई बंदोबस्त भी कहा जाता है।
- इस व्यवस्था को 1793 में चार्ल्स कार्नवालिस द्वारा लागू किया गया।
- उस समय बंगाल में वर्तमान का बिहार, बंगाल और उड़ीसा वाला क्षेत्र शामिल था। इसी क्षेत्र में इस्तमरारी बंदोबस्त की व्यवस्था को लागू किया गया।
- इस व्यवस्था के अंतर्गत जमींदारों को नियुक्त किया गया।
- वह सभी लोग जो अंग्रेजी शासन से पहले शक्तिशाली थे (नवाब, पुराने राजा, साहूकार आदि), अंग्रेजों द्वारा इन्हें जमींदार बना दिया गया।
- हर जमींदार को कुछ गांव दिए गए जहां से वह कर इकट्ठा कर सकता था।
- ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा हर जमींदार से एक निश्चित रकम कर के रूप में ली जाती थी।
- जमींदार किसानों से अपनी इच्छा अनुसार कितना भी कर वसूल सकते थे
- इस व्यवस्था को स्थाई बंदोबस्त कहा गया क्योंकि इसमें जमींदारों को एक स्थाई रकम ईस्ट इंडिया कंपनी को देनी होती थी।
- इसे जमींदारी व्यवस्था कहा गया क्योंकि इस व्यवस्था में जमींदार महत्वपूर्ण थे
रैयतवाड़ी व्यवस्था
- इस व्यवस्था को 1820 में टॉमस मुनरो द्वारा लागू किया गया।
- यह व्यवस्था भारत के दक्कन क्षेत्र में लागू की गई थी।
- इस व्यवस्था में किसान स्वयं जाकर अपना कर जमा करवाता था।
- इस व्यवस्था को रैयतवाड़ी व्यवस्था कहा गया क्योंकि रैयत का अर्थ किसान होता है।
महालवाड़ी व्यवस्था
- इस व्यवस्था को अंग्रेजों द्वारा 1833 में लागू किया गया।
- इस व्यवस्था में एक व्यक्ति द्वारा पूरे गांव का कर इकट्ठा किया जाता था और फिर उसे अंग्रेजी शासन को जमा करवाया जाता था।
- इसे भारत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में लागू किया गया।
- इस व्यवस्था को महालवाड़ी कहा गया क्योंकि महाल का अर्थ गांव होता है।
स्वतंत्र भारत में भूमि सुधार
जमींदारी प्रथा की समाप्ति ।
- भूमि सुधारों के अंतर्गत जमीदारी व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया जिससे किसानों के शोषण में कमी आई और कृषि की उत्पादकता में बढ़ोतरी हुई
सिंचाई के लिए बांधो का निर्माण ।
- सिंचाई व्यवस्था को सुधारने के लिए बड़े-बड़े बांधों का निर्माण किया गया और सिंचाई के लिए नैहरे भी बनाई गई
वर्षा पर निर्भरता कम करने के प्रयास
- कृषि की वर्षा पर निर्भरता को कम करने के लिए सिंचाई व्यवस्था को सुधारा गया ताकि किसान अपनी जरूरत अनुसार फसल की सिंचाई कर सके
उत्पादकता बढ़ाने के प्रयास
- कृषि में उत्पादकता बढ़ाने के लिए अच्छी किस्म के बीज और उर्वरक उपलब्ध करवाए गए इस वजह से किसानों की पैदावार में वृद्धि हुई
खंडित जोतो को समाप्त किया गया ।
- छोटे-छोटे टुकड़ों में बटे खेतों को समाप्त किया गया और सभी को एक साथ शामिल करके विशाल खेतों का निर्माण किया गया
हरित क्रांति क्या है?
- दूसरी पंचवर्षीय योजना में उद्योगों पर ज्यादा ध्यान देने की वजह से कृषि को नुकसान हुआ
- देश में खाद्यान्न की कमी होने लगी
- 1962 में हुए चीन युद्ध के कारण भारतीय कृषि को भारी नुकसान पहुंचा क्योंकि सरकार कृषको का समर्थन नहीं कर पाई
- खाद्यान्न की कमी होने की वजह से भारत को अमेरिका से खाद्यान्न का आयात करना पड़ा जिस वजह से अमेरिका भारत पर दबाव बनाने लगा
- इन्हीं सब समस्याओं के कारण भारतीय नेताओं ने देश में खाद्यान्न की पैदावार को बढ़ाने का निश्चय लिया और यहीं से हरित क्रांति की शुरुआत हुई
- हरित क्रांति उस दौर को कहा जाता है जब भारत में खाद्यान्न उत्पादन में एक दम से अत्यधिक वृद्धि हुई । यह दौर था 1964 – 67 का ।
हरित क्रांति कैसे आई?
देश में खाद्यान की बढ़ती समस्या को देखते हुए सरकार ने खाद्यान उत्पादन की वृद्धि पर ध्यान दिया। इसके लिए सरकार ने
अच्छी किस्म के बीज उपलब्ध करवाए
- सरकार द्वारा किसानों को अच्छी गुणवत्ता के बीज उपलब्ध कराए गए ताकि किसानों की पैदावार में वृद्धि हो सके
भूमि अनुसार उत्पादन
- किसानों को भूमि के अनुसार फसल उगाने की सलाह दी गई ताकि भूमि के पोषक तत्व का भरपूर प्रयोग हो सके
अधिक सहायता उपलब्ध करवाई ।
- सरकार द्वारा किसानों को और अधिक मदद उपलब्ध करवाई गई और उत्पादन बढ़ाने में किसानों की सहायता की गई
हरित क्रांति के सकारात्मक प्रभाव (परिणाम)
खाद्यान उत्पादन में वृद्धि ।
- सरकार के प्रयासों और किसानों की मेहनत के कारण देश में खाद्यान्न उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई
खाद्यान उत्पादन में आत्मनिर्भरता
- खाद्यान्न उत्पादन में भारत आत्मनिर्भर बना
- इतनी अधिक मात्रा में उत्पादन हुआ कि वह भारत जो पहले तक खाद्यान्न का आयात कर रहा था अब निर्यात करने लगा
नयी तकनीक
- सरकार के प्रोत्साहन के कारण कृषि में नई तकनीक का प्रयोग होना शुरू हुआ जिससे कृषि की उत्पादकता में वृद्धि हुई
मध्यम कृषक वर्ग का उदय हुआ ।
- देश में एक मध्यम कृषक वर्ग का उदय हुआ जिसे हरित क्रांति से लाभ हुआ था
कृषि में व्यापारीकरण
- पहले सभी किसान अपनी जरूरतों के लिए फसल उगा करते थे परन्तु सरकार के प्रोत्साहन और मदद के बाद कृषि में व्यापारीकरण की शुरुआत हुई यानी अब किसान ऐसी फसलों का उत्पादन करने लगे जिन्हें वह बाजार में जाकर बेच सकते थे
हरित क्रांति के नकारात्मक प्रभाव।
- केवल कुछ किस्म की फसलों जैसे की चावल, गेहूं आदि के उत्पादन में वृद्धि हुई ।
- हरित क्रांति का प्रभाव कुछ क्षेत्रों जैसे की उत्तर प्रदेश, पंजाब आदि तक सीमित रहा ।
- अमीर और गरीब किसानो के बीच का अंतर और बढ़ गया ।
- हरित क्रांति का फ़ायदा सम्पूर्ण भारत को नहीं हुआ ।
वैश्वीकरण, उदारीकरण, निजीकरण और ग्रामीण समाज
- नरसिम्हा राव की सरकार द्वारा 1991 में नई आर्थिक नीति को अपनाया गया
- उस दौर में भारत के वित्त मंत्री डॉ मनमोहन सिंह थे जो आगे जाकर देश के प्रधानमंत्री भी बने
- इस नई आर्थिक नीति को LPG कहा गया
- नई आर्थिक नीति के मुख्य तीन पहलू थे
- उदारीकरण (Liberalisation),
- निजीकरण (Privatisation),
- वैश्वीकरण (Globalisation)
- उदारीकरण
- उदारीकरण के द्वारा सरकार व्यापार करने की नीतियों को सरल बनाना चाहती थी जिससे देश के अंदर व्यापार बड़े और विकास की गति में तेजी आए
- निजीकरण
- निजीकरण का अर्थ – सरकारी कंपनियों को धीरे-धीरे निजी हाथों में सौंपना है ताकि उनकी उत्पादकता और कार्यक्षमता को बढ़ाया जा सके
- वैश्वीकरण
- वैश्वीकरण के द्वारा सरकार ने भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व की अर्थव्यवस्था से जोड़ने के प्रयास किए जिस वजह से देश में वस्तुओं और सेवाओं के प्रवाह में वृद्धि हुई और विकास की गति में तेजी आई
संविदा खेती
- वैश्वीकरण और उदारीकरण के कारण संविदा कृषि का प्रभाव बड़ा
- संविदा कृषि, कृषि का एक प्रकार है जिसके अंतर्गत बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा कृषकों के साथ एक निश्चित फसल उगाने का समझौता किया जाता है और फसल उगाने के लिए आवश्यक जानकारियाँ और सुविधाएं प्रदान की जाती हैं
संविदा कृषि के फायदे
- किसानों को आर्थिक सहायता मिलती है
- बहुराष्ट्रीय कंपनियों से आवश्यक जानकारी एवं मार्गदर्शन की प्राप्ति होती
- अच्छी गुणवत्ता के बीच उपलब्ध होने के कारण पैदावार में वृद्धि होती है
- फसल की कीमत पहले ही निर्धारित कर ली जाती है जिससे बाजार में होने वाली कीमत वृद्धि या कमी का प्रभाव नहीं पड़ता
संविदा कृषि की कमियां
- किसान बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर निर्भर हो जाते हैं
- अत्यधिक कीटनाशकों के प्रयोग के कारण पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है
- सरकार द्वारा कृषि रियायतों में कमी की जाती है जिस वजह से कृषको को नुक्सान होता है
- कृषकों के मुद्दे राजनीति में जगह नहीं बना पाते
भारत में किसानों की आत्महत्या के मुख्य कारण
- कृषि रियायतों में कमी होना
- सीमांत किसानों के पास पर्याप्त भूमि का ना होना
- अत्याधिक कर्ज की समस्या
- फसलों की सही कीमत न मिल पाना
- प्राकृतिक आपदाओं के कारण फसलों का नुकसान होना
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