पाठ – 2
सांस्कृतिक परिवर्तन
This post is about the detailed notes of class 12 Sociology Chapter 2 Sanskritik parivartan (The Challenges of Cultural Diversity) in Hindi for CBSE Board. It has all the notes in simple language and point to point explanation for the students having Sociology as a subject and studying in class 12th from CBSE Board in Hindi Medium. All the students who are going to appear in Class 12 CBSE Board exams of this year can better their preparations by studying these notes.
यह पोस्ट सीबीएसई बोर्ड के लिए हिंदी में कक्षा 12 समाजशास्त्र अध्याय 2 सांस्कृतिक परिवर्तन के विस्तृत नोट्स के बारे में है। इसमें सभी नोट्स सरल भाषा में हैं और सीबीएसई बोर्ड से हिंदी माध्यम से 12वीं कक्षा में एक विषय के रूप में समाजशास्त्र पढ़ने वाले छात्रों के लिए उपयोगी है। वे सभी छात्र जो इस वर्ष की कक्षा 12 सीबीएसई बोर्ड परीक्षा में शामिल होने जा रहे हैं, इन नोट्स को पढ़कर अपनी तैयारी बेहतर कर सकते हैं।
Board | CBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Sociology |
Chapter no. | Chapter 2 |
Chapter Name | सरचनात्मक परिवर्तन (The Challenges of Cultural Diversity) |
Category | Class 12 Sociology Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
सांस्कृतिक परिवर्तन
- एक देश की संस्कृति यानी लोगों की सोच, विश्वास, मान्यताओं और आदर्शों में होने वाले परिवर्तन, को सांस्कृतिक परिवर्तन कहा जाता है
- सांस्कृतिक परिवर्तन को चार प्रक्रियाओं द्वारा समझा जा सकता है: –
- संस्कृतिकरण
- पश्चिमीकरण
- धर्मनिरपेक्षता
- आधुनिकीकरण
संस्कृतिकरण
- संस्कृतिकरण शब्द का उपयोग सबसे पहले एम. एन. श्रीनिवास द्वारा किया गया था
- संस्कृतिकरण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें नीची जाति, जनजाति या अन्य समूहों के लोग कुछ जाति के लोगों की जीवन पद्धति आदर्शों और विचारधाराओं की नकल करने की कोशिश करते हैं
- सांस्कृतिकरण का निम्न जातियों पर प्रभाव
- सामाजिक स्तिथि में सुधार
- धार्मिक जीवन पर सकारात्मक प्रभाव
- आर्थिक विकास की संभावनाएं बड़ी
- सामाजिक विकास
- व्यावसायिक क्षेत्र में परिवर्तन
- सांस्कृतिकरण का निम्न जातियों पर प्रभाव
संस्कृतिकरण की विशेषताएं
- ब्राह्मणीकरण नहीं
- प्राचीन समय में भारतीय समाज चार वर्णों यानी ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र में बटा हुआ था संस्कृतिकरण की प्रक्रिया के दौरान निम्न जातियों ने केवल ब्राह्मणों की जीवन शैली की नकल करने का प्रयास नहीं किया उन्होंने अन्य वर्णो यानी कि क्षत्रिय और वैश्य की जीवन शैली की नकल करने के भी प्रयत्न किए
- अनेकों प्रतिरूप
- संस्कृतिकरण की प्रक्रिया के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग प्रतिरूप पाए गए हैं
- उच्च जातियों की जीवन शैली की नकल
- संस्कृतिकरण की प्रक्रिया में निम्न जातियों द्वारा उच्च जातियों की जीवन शैली की नकल की जाती है
संस्कृतिकरण की आलोचना
- स प्रक्रिया में उच्च जाति की जीवन शैली को अच्छा जबकि निम्न जाति की जीवन शैली को हीन दिखाने का प्रयास किया गया है
- नीची जातियों द्वारा ऊंची जाति की जीवन शैली को अपनाने के बावजूद भी उन्हें समाज में सम्मान प्राप्त नहीं हो पाता
- नीची जातियों के साथ भेदभाव करना उच्च जातियाँ अपना अधिकार समझती है जिस वजह से संस्कृतिकरण के पश्चात भी भेदभाव में कमी नहीं आई
- इस प्रक्रिया में असमानता और शोषण बना रहता है
- संस्कृतिकरण की प्रक्रिया का लड़कियों को विशेष लाभ नहीं हुआ
पश्चिमीकरण
- पश्चिमी देशों की संस्कृति के बढ़ते प्रभाव को पश्चिमीकरण कहा जाता है
- दूसरे शब्दों में समझे तो जब एक देश में पश्चिमी देशों की जीवन शैली, तौर-तरीकों और आदर्शों का प्रभाव बढ़ता है तो इस प्रक्रिया को पश्चिमीकरण कहा जाता है
- उदाहरण के लिए: –
- भारत में अंग्रेजी शासन के दौरान औद्योगीकरण और विचारधारात्मक परिवर्तन
- उदाहरण के लिए: –
पश्चिमीकरण की विशेषताएं
- पश्चिमीकरण आधुनिकीकरण से भिन्न है पश्चिमीकरण जीवन शैली से संबंधित है जबकि आधुनिकीकरण उत्पादन की प्रक्रिया से संबंधित है
- पश्चिमीकरण की प्रक्रिया भारत की स्वतंत्रता के पश्चात भी जारी है वर्तमान समय में भी भारत में पश्चिमी देशों की जीवन शैली के बढ़ते प्रभाव को देखा जा सकता है
- पश्चिमीकरण एक जटिल प्रक्रिया है इसका प्रभाव समाज के प्रत्येक हिस्से पर पड़ता है
- पश्चिमीकरण की प्रक्रिया केवल शहरों तक सीमित नहीं है इसका प्रभाव संपूर्ण देश में देखा जा सकता है
पश्चिमीकरण और भारतीय समाज
- औपनिवेशिक काल से लेकर अब तक पश्चिमी विचारों ने भारतीय समाज को बड़े स्तर पर प्रभावित किया है भारत में पश्चिमीकरण का प्रभाव निम्नलिखित रूपों में देखा जा सकता है
- परिवार पर प्रभाव
- विवाह नियमों पर प्रभाव
- अस्पृश्यता का उन्मूलन
- भारतीयों के धार्मिक जीवन पर प्रभाव
- भारत में मौजूद जाति व्यवस्था पर प्रभाव
- धर्मनिरपेक्षता की विचारधारा
- औपनिवेशिक काल से लेकर अब तक पश्चिमी विचारों ने भारतीय समाज को बड़े स्तर पर प्रभावित किया है भारत में पश्चिमीकरण का प्रभाव निम्नलिखित रूपों में देखा जा सकता है
धर्मनिरपेक्षता
- धर्मनिरपेक्षता एक ऐसी स्थिति है जिसमें सभी धर्मों, विश्वासों और मान्यताओं को समान समझा जाता है एवं समान अधिकार प्रदान किए जाते हैं
- भारत और धर्मनिरपेक्षता
- भारतीय संविधान भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित करता है
- भारत में इस धर्मनिरपेक्षता की विचारधारा के प्रबल होने के निम्नलिखित कारण है
- भारतीय संस्कृति
- विकसित यातायात एवं संचार व्यवस्था
- आधुनिक शिक्षा प्रणाली
- नगरीकरण
- पश्चिमीकरण
- भारत और धर्मनिरपेक्षता
आधुनिकीकरण
- आधुनिकीकरण का सामान्य अर्थ उत्पादन की प्रक्रिया में होने वाला विकास होता है परंतु समय के साथ-साथ इस अर्थ में परिवर्तन हुआ है और वर्तमान दौर में आधुनिकीकरण का अर्थ पश्चिमी देशों के अनुरूप विकास करने को समझा जाता है
समाज सुधार आंदोलन
- एच आंदोलन जिनके द्वारा समाज में फैली धार्मिक और सामाजिक कुरीतियों को खत्म करने के प्रयास किए जाते हैं समाज सुधार आंदोलन चलाते हैं
- 19वीं से 20वीं शताब्दी के दौरान भारत में बड़े स्तर पर समाज सुधार आंदोलन चलाए गए
- 19वीं से 20वीं शताब्दी के दौरान भारत में समाज सुधार आंदोलनों के बढ़ने के मुख्य कारण निम्नलिखित थे
- भारतीय समाज में बड़े स्तर पर फैली कुरीतियां
- समाज में शिक्षित वर्ग का उदय होना
- लोगों के मन में समानता के प्रति जागरूकता ना
- स्त्रियों की दशा
- जागरूकता फैलाने की आवश्यकता
- इस दौर में मुख्य रूप से निम्नलिखित प्रथाओं के विरोध में समाज सुधार आंदोलन चलाए गए
सती प्रथा
- यह प्रथा ब्राह्मणों द्वारा शुरू की गई थी इसके अंतर्गत पति की मृत्यु के बाद पत्नी को उसी की चिता के साथ जीवित जला दिया जाता था यह प्रथा अत्यंत अत्याचार पूर्ण और गलत थी अंग्रेजों द्वारा इस प्रथा का विरोध किया गया राजा राममोहन राय ने सती प्रथा का बढ़-चढ़कर विरोध किया और 1829 में अंग्रेजी सरकार द्वारा सती प्रथा अधिनियम पारित करके इसे अवैध घोषित कर दिया गया
बाल विवाह
- बाल विवाह उस दौर में 4 से 5 साल की उम्र में बच्चों का विवाह कर दिया जाता था विवाह के लिए यह उम्र अत्यंत कम थी क्योंकि इस उम्र में बच्चे को विवाह और उससे संबंधित जिम्मेदारियों का ज्ञान नहीं होता था ब्रिटिश सरकार द्वारा 1860 में कानून पारित कर विवाह की न्यूनतम आयु को 10 वर्ष किया गया
विधवा पुनर्विवाह
- उस दौर में भारतीय समाज में विधवाओं के पुनर्विवाह पर रूकती यानी की विधवा स्त्रियां दोबारा शादी नहीं कर सकती थी पति की मृत्यु के पश्चात पुनर्विवाह ना कर पाने के कारण है कि स्त्री के लिए शहद और खुशहाल जीवन जीना अत्यंत कठिन होता था इसी वजह से 18 से 56 में ब्रिटिश सरकार द्वारा विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पारित करके विधवा महिलाओं को पुनर्विवाह करने का अधिकार प्रदान किया गया
पर्दा प्रथा
- पर्दा प्रथा उस दौर में मुस्लिम समाज में पर्दा प्रथा प्रचलित थी जिसके अनुसार महिलाओं को बाहर जाते समय अपना चेहरा पर्दे से ढकना पड़ता था कई समाज सुधारकों ने इसका विरोध किया और इनमें मुख्य थे सर सैयद अहमद खान इन्होंने इसका बढ़-चढ़कर विरोध किया और समय के साथ इस प्रथा में थोड़ा लचीलापन आया
दहेज प्रथा
- उस दौर में भारतीय समाज में दहेज प्रथा बड़े स्तर पर प्रचलित थी जिस वजह से कन्या के माता-पिता पर अतिरिक्त दबाव आता था और कन्या को बोझ के रूप में देखा जाता था जिस वजह से देश में स्त्री और पुरुषों की संख्या में एक बड़ा अंतर था इस वजह से इसके खिलाफ कई आंदोलन हुए और 18 सो 61 में भारत सरकार द्वारा अधिनियम पारित कर दहेज प्रथा को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया
- अस्पृश्यता
- जाति प्रथा
- उस दौर में भारतीय समाज में दहेज प्रथा बड़े स्तर पर प्रचलित थी जिस वजह से कन्या के माता-पिता पर अतिरिक्त दबाव आता था और कन्या को बोझ के रूप में देखा जाता था जिस वजह से देश में स्त्री और पुरुषों की संख्या में एक बड़ा अंतर था इस वजह से इसके खिलाफ कई आंदोलन हुए और 18 सो 61 में भारत सरकार द्वारा अधिनियम पारित कर दहेज प्रथा को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया
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