पाठ – 3
भूमंडलीकृत विश्व का बनना
This post is about the detailed notes of class 10 Social Science Chapter 3 bhoomandaleekrt vishv ka banana (The Making of a Global World) in Hindi for CBSE Board. It has all the notes in simple language and point to point explanation for the students having Social Science as a subject and studying in class 10th from CBSE Board in Hindi Medium. All the students who are going to appear in Class 10 CBSE Board exams of this year can better their preparations by studying these notes.
यह पोस्ट सीबीएसई बोर्ड के लिए हिंदी में कक्षा 10 सामाजिक विज्ञान अध्याय 3 भूमंडलीकृत विश्व का बनना के विस्तृत नोट्स के बारे में है। इसमें सभी नोट्स सरल भाषा में हैं और सीबीएसई बोर्ड से हिंदी माध्यम से 10वीं कक्षा में एक विषय के रूप में सामाजिक विज्ञान पढ़ने वाले छात्रों के लिए उपयोगी है। वे सभी छात्र जो इस वर्ष की कक्षा 10 सीबीएसई बोर्ड परीक्षा में शामिल होने जा रहे हैं, इन नोट्स को पढ़कर अपनी तैयारी बेहतर कर सकते हैं।
Board | CBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 10 |
Subject | Social Science |
Chapter no. | Chapter 3 |
Chapter Name | भूमंडलीकृत विश्व का बनना (The Making of a Global World) |
Category | Class 10 Social Science Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
भूमंडलीकृत विश्व का बनना
- इस अध्याय को समझने के लिए वैश्वीकरण को समझना बहुत ही ज्यादा जरूरी है
- वैश्वीकरण क्या है?
- व्यक्तियों सामानों और नौकरियों का एक देश से दूसरे देश तक स्थानांतरण को वैश्वीकरण कहते हैं
- जैसा कि भारत की खोज वास्कोडिगामा ने की थी और अमेरिका की खोज कोलंबस ने
- वैश्वीकरण और औद्योगीकरण दोनों ने ही मिलकर दैनिक जीवन को बदल कर रख दिया
- 18वीं शताब्दी के बाद तक भारत और चीन दुनिया के सबसे अमीर व धनी देश हुआ करते थे, एशियाई व्यापार में इन्हीं का दबदबा था
- इसको जानने के लिए हमारे को पता करना होगा कि यूरोपीय विश्व व्यापार का सबसे बड़ा केंद्र कैसे बन गया
आधुनिक युग से पहले
रेशम मार्ग अथवा सिल्क रूट
- रेशम मार्ग बहुत ही प्राचीन मार्ग था, जो एक देश को दूसरे देश से जोड़ता था और महादेश से महादेश को जोड़ता था
- यह मार्ग ईसा पूर्व से भी पहले ही शुरू हो चुका था
- 15वी शताब्दी तक भी इसका प्रयोग किया गया जिसने बहुत सारे महादेशों को भी जोड़ा
- जिसमें से प्रमुख थे: – अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका और यूरोप को एशिया से जोड़ता था
इसे हम रेशम मार्ग से ही क्यों जानते हैं
- वह इसलिए क्योंकि सबसे पहले इस रास्ते का प्रयोग चाइनीस लोग रेशम का व्यापार किया करते थे, जिसे चाइनीस रेशम भी कहा जाता था
- फिर भारतीय लोगों ने मसाले, भारतीय सामान, चांदी, सोना और ढेर सारी वस्तुओं का आवागमन शुरू कर दिया
- सामानों के साथ साथ व्यापार और संस्कृति का भी आदान-प्रदान शुरू हुआ
भोजन की यात्रा
- जैसे व्यापारी और यात्री एक देश से दूसरे देश जाते थे उसी तरह खाने के सामान भी चलते चले गए उदाहरण के लिए
- नूडल चाइना से आया पास्ता अरब देश से आया
बदलाव
- कई बार नई फसलों के आने के बाद जीवन में बहुत ज्यादा बदलाव आ जाता था
- साधारण से आलू का प्रयोग करने से यूरोप की गरीब की जिंदगी बदल गई उनका भोजन बेहतर हो गया और उनकी औसत उम्र बढ़ने लगी
- इसी तरह आयरलैंड पूरी तरह से आलू पर निर्भर हो चुके थे
- 1840 के दशक के मध्य में किसी बीमारी के कारण आलू की फसल बर्बाद हो गई तो लोग भूखे मर गए
विजय, बीमारी और व्यापार
- 15वी से 16वी शताब्दी तक यूरोप ने समुद्री रास्ते के जरिए विश्व का प्रसार करना शुरू कर दिया क्योंकि वह अपने व्यापारिक साथी ढूंढ रहे थे
- उसी समय दो सबसे महत्वपूर्ण शक्तिशाली देश थे पुर्तगाल और स्पेन
- जैसा कि वास्कोडिगामा ने भारत की खोज की वैसे ही कोलंबस ने अमेरिका की खोज की
- पुर्तगाली और स्पेन ने अमेरिका को उपनिवेश बनाना शुरू कर दिया
- यूरोपीय लोग सिर्फ अपनी सेना की ताकत से ही नहीं बल्कि कीटाणुओं की मदद से भी जीत हासिल करते थे
- क्योंकि अफसर अपने साथ चेचक जैसे कीटाणुओं को लेकर जाते थे
- लाखों सालों से दुनिया से अलग रहने के कारण अमेरिकी लोग के शरीर में यूरोपीय लोगो से होने वाली इन बीमारियों से बचने की रोग प्रतिरोधक क्षमता नहीं थी।
19वीं शताब्दी
- 19वीं शताब्दी के बाद दुनिया बहुत ही तेजी से बदलने लगी थी
- इसमें आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और तकनीकी कार्य ने पूरे समाज की कायापलट कर दिया था
- विदेशी संबंध और भी ज्यादा बढ़ने लगे
- विशेष रूप से इन सालों में तीन प्रवाह बहुत ही महत्वपूर्ण थी
व्यापार का प्रवाह
- जिसमें मुख्य रूप से 19वीं सदी में वस्तुओं (जैसे कपड़े या गेहूं) आदि के व्यापार तक ही सीमित था
श्रम का प्रवाह
- इसमें लोग काम की तलाश में एक जगह से दूसरी जगह जाते हैं
- इसी कारण यूरोप के लगभग 5 करोड़ लोगों ने बेरोजगारी के कारण यूरोप छोड़ दिया और ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका में जाकर बस गए
पूंजी का प्रवाह
- जिसमे कुछ समय के लिए पूंजी को दूरदराज के इलाकों में निवेश कर दिया जाता है।
- इसमें अमेरिका के लोग सबसे आगे थे क्योंकि उनके पास अधिक पैसे थे निवेश के लिए
- इसलिये उन्होंने अपनी पूंजी को दूसरे देशों में निवेश करना शुरू कर दिया।
विश्व अर्थव्यवस्था का उदय
- इसको समझने के लिए हमें हमें ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था पर नजर डालनी होगी
- 18वी शताब्दी तक ब्रिटेन में ‘कॉर्न लॉ’ लागू था
- इस कानून के तहत ब्रिटेन किसी भी देश से भोज्य पदार्थ का आयात नहीं कर सकता था
- कुछ दिन बाद ब्रिटेन में जनसंख्या बहुत ही ज्यादा बढ़ गई और भोजन की मांग में वृद्धि हो गई
- अब जब भोजन की मांग में वृद्धि हुई तो कृषि आधारित सामानों की मांग में भी वृद्धि होनी शुरू हो गई
- भुखमरी से पहले ही सरकार ने कॉर्न लॉ समाप्त कर दिया
- जिसकी वजह से ब्रिटेन ने अब अलग अलग देशों के व्यापारियों से भोज्य सामग्री का आयात किया शुरू कर दिया जिससे देश में भोजन की कमी में बदलाव आया और देश में विकास होने लगा
कॉर्न लॉ के समय
- भोजन की मांग बढ़ी
- जनसंख्या बढ़ी
- भोजन के दाम बढ़े
कॉर्न लॉ हटाने के बाद
- व्यापार में वृद्धि
- भोजन का अधिक भंडार
- विकास का तेज होना
- व्यापार ही किसी देश का विकास में मदद करता है
व्यापार में वृद्धि किस प्रकार हुई
- नए जहाज बनाए गए
- रेलवे का निर्माण किया गया
- जिसमें रेलवे स्टेशन
- इसके लिए मजदूरों की जरूरत पड़ी मजदूरों को पैसे देने पड़े जिससे पूंजी का प्रवाह हुआ
- जैसे-जैसे सामान का निर्माण हुआ भोजन का स्थानांतरण भी होने लगा
- यानी सब एक दूसरे से जोड़ता हुआ चला गया जिसे हम वैश्वीकरण कहते हैं
- वैश्वीकरण में तकनीक का बहुत बड़ा योगदान है
तकनीक का योगदान
- रेलवे, जहाज, संचार प्रणाली आदि सभी तकनीक की ही देन है।
- इसके बिना 19वीं सदी में आये परिवर्तन के बारे में कल्पना भी नहीं कर सकते हैं मतलब वैश्वीकरण की कल्पना नहीं की जा सकती है
- उदाहरण के लिए हम समझते हैं अमेरिका और यूरोप का व्यापार
- 1870 के दशक तक केवल जिंदा जानवरों का व्यापार किया जाता था
- लेकिन जिंदा जानवर बहुत ही महंगे हुआ करते थे
- लंबे समय के सफर में मर जाते थे या फिर बीमार हो जाते थे
- जिससे बहुतों का वजन कम हो जाता था
- मांस खाना एक महंगा सौदा था और यूरोप के गरीबों की पहुंच से बाहर था।
- इन सभी समस्याओं को खत्म करने के लिए फ्रिज वाला जहाज बनाया गया
- जिसकी मदद से जानवरों को काटकर मास में बदल दिया जाता था और इसके बाद अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड सब जगह जानवरों का मांस ही भेजा जाने लगा
- इसे केवल समुद्री यात्रा में खर्च कम नहीं हुआ बल्कि मांस के भी दाम गिर गए
अफ्रीका में यूरोपियों का शासन
- अफ्रीका में यूरोपियों ने शासन किया
- वह आए तो व्यापार के लिए थे धीरे-धीरे उन्होंने अपना शासन स्थापित करने लगे
- यूरोप के लोग अफ्रीका में बागवानी खेती करना चाहते थे और खदानों का दोहन करना चाहते थे ताकि उन्हें वापस यूरोप भेजा जा सके
- पर वहां पर वेतन पर काम करने का चलन नहीं था
- अफ्रीका में सारे लोग आत्मनिर्भर थे क्योंकि आबादी कम थी और जमीन ज्यादा
- सारे के सारे लोग पशुपालन करते थे और पशुओं को चराते थे इसलिए वहां के लोग मजदूरों की तरह काम करने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थे
- मजदूरों की भर्ती के लिए यूरोपीय लोगों ने बहुत ही सारे हथकंडे को अपनाया
- लेकिन सारे विफल रहे
- जैसे
- भारी भरकम कर लगा दिया
- काश्तकारों को जमीनों से हटाने के लिए उत्तराधिकारी कानून बनाया गया
- जिसके अंतर्गत परिवार के केवल एक ही सदस्य को पैतृक संपत्ति मिलेगी
- खानकर्मियों के खुलेआम घूमने पर पाबंदी लगा दी गई
रिंडरपेस्ट या मवेशी प्लेग
- अफ्रीका में 1880 के दशक के आखिरी सालों में रिंडरपेस्ट नामक बीमारी बहुत तेजी से फैल गई
- जिसकी वजह से 90% प्रतिशत जानवरों की मृत्यु हो गई
- अब अफ्रीकी लोगों को श्रम बाजार में धकेलने के लिए बाकी के बचे पशुओं को अपने कब्जे में ले लिया अब अफ्रीकी लोगों के पास दूसरा कोई कार्य नहीं था तो उनके पास एक ही विकल्प बचा जो था यूरोपीय लोगों के लिए काम करना
भारत से अनुबंधित श्रमिक
- इसका मतलब मजदूरों को एक निश्चित समय अवधि के लिए भाड़े पर ले जाते हैं और उसे किसी अन्य देश में ले जाकर काम देते हैं
- 10वीं सदी में भारत और चीन के लाखों मजदूरों को बागानों, खदानों और सड़क व रेल के निर्माण कार्य के लिए दूर-दूर देशों में ले जाया जाता था
- भारत के ज्यादातर अनुबंधित श्रमिक पूर्व के उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य भारत और तमिलनाडु के सूखे इलाकों से जाते थे
- अप्रवासी लोग को झूठी जानकारी देते थे
- उन्हें कहां जाना है
- क्या काम करना है
- यात्रा के साधन क्या होगा
- काम व जीवन के क्या हालात होंगे
- इसके बारे में कोई भी सही जानकारी नहीं दी जाती थी जिसके कारण इसे नई दास प्रथा भी कहा गया परंतु 1921 में इसको पूरी तरह से खत्म कर दिया गया
विदेश में भारतीय उद्यमी
- विश्व बाजार के लिए खाद पदार्थ व फसलें उगाने के लिए पूंजी की आवश्यकता हुआ करती थी इसमें बड़े बागान के लिए तो बाजार और बैंकों से पैसा ले सकते थे लेकिन छोटे किसानों का क्या
- उसके लिए शिकारीपूरी श्रॉफ ऑफ़ नट्टुकोट्टई चट्टियारों
- यह उन सारे बैंको और व्यापारियों में से थे जो मध्य एवं दक्षिण पूर्व एशिया में निर्यातोन्मुखी खेती के लिए कर देते थे
- इसके लिए वह या तो अपनी जेब से पैसे लगाते थे या यूरोपीय बैंकों से कर्ज लेते थे
- अफ्रीका में यूरोपीय उपनिवेशकारों के पीछे पीछे भारतीय व्यापारी और महाजन भी जा पहुंचे
- भारत के लोगों ने बंदरगाह पर अपने बड़े-बड़े एंपोरियम खोल लिए थे जिसमें सबसे आगे थे हैदराबादी सिंधी जिसके बाद उन्होंने 1807 के दशक तक दुनियाभर में बड़े-बड़े एंपोरियम खोल दिए थे
भारत उपनिवेशवाद और वैश्विक व्यवस्था
- भारतीय व्यापार में बदलाव तब आया जब ब्रिटेन ने कपास के आयात पर रोक लगा दी क्योंकि उसके बाद ब्रिटेन में कपास की खेती बहुत ही तेजी से बढ़ने लगी थी
- और भारतीयों को कपड़ों के अन्य देशों के साथ भी प्रतिस्पर्धा करनी पड़ रही थी
- 1800 के आसपास में सूती कपड़े का लगभग 30%निर्यात था, जबकि 1815 में घटकर 15% रह गया था और 1870 तक 3% हो गया
- निर्मित वस्तुओं का निर्यात घटता जा रहा था उतनी ही तेजी से कच्चे माल का भी निर्यात होता
- उदाहरण के लिए 1812 से 1871 तक के बीच में कच्चे कपास का निर्यात 5% से बढ़कर 35% हो गया
- कपड़ों को रंगने के लिए भी बड़े पैमाने पर नील की खेती की जाने लगी
- 1820 के दशक से चीन को एक बड़ी मात्रा में अफीम का निर्यात करने लगा
- अफीम के बदले चीन से चाय और अन्य वस्तुओं का आयात किया जाता था
- लेकिन अगर ब्रिटेन के बारे में बात करें तो ब्रिटेन जो माल भारत भेजा करता था उसके मुकाबले भारत से ब्रिटेन से भेजे जाने वाले माल की कीमत से बहुत ज्यादा हुआ करती थी
- भारतीय व्यापार में बदलाव तब आया जब ब्रिटेन ने कपास के आयात पर रोक लगा दी क्योंकि उसके बाद ब्रिटेन में कपास की खेती बहुत ही तेजी से बढ़ने लगी थी
- और भारतीयों को कपड़ों के अन्य देशों के साथ भी प्रतिस्पर्धा करनी पड़ रही थी
- 1800 के आसपास में सूती कपड़े का लगभग 30%निर्यात था, जबकि 1815 में घटकर 15% रह गया था और 1870 तक 3% हो गया
- निर्मित वस्तुओं का निर्यात घटता जा रहा था उतनी ही तेजी से कच्चे माल का भी निर्यात होता
- उदाहरण के लिए 1812 से 1871 तक के बीच में कच्चे कपास का निर्यात 5% से बढ़कर 35% हो गया
- कपड़ों को रंगने के लिए भी बड़े पैमाने पर नील की खेती की जाने लगी
- 1820 के दशक से चीन को एक बड़ी मात्रा में अफीम का निर्यात करने लगा
- अफीम के बदले चीन से चाय और अन्य वस्तुओं का आयात किया जाता था
- लेकिन अगर ब्रिटेन के बारे में बात करें तो ब्रिटेन जो माल भारत भेजा करता था उसके मुकाबले भारत से ब्रिटेन से भेजे जाने वाले माल की कीमत से बहुत ज्यादा हुआ करती थी
महायुद्ध के बीच की अर्थव्यवस्था
- प्रथम विश्वयुद्ध मुख्य रूप से यूरोप में ही लड़ा गया था लेकिन इसका असर पूरी दुनिया में महसूस किया गया
- पहला विश्व युद्ध खेमों के बीच में लड़ा गया था
- जिसमें से पहला था मित्र राष्ट्र (ब्रिटेन, फ़्रांस और रूस)
- दूसरा था केंद्रीय शक्तियां (जर्मनी,ऑस्ट्रिया, हंगरी और ऑटोमन तुर्की)
- इस युद्ध के दौरान अमेरिका को कर्जदार की बजाय कर्जदाता देश बन गया
- युद्ध के समय
- मांग बढ़ गई
- उत्पादन बढ़ गया
- रोजगार बढ़ गया
- लेकिन युद्ध के बाद
- मांग घट गई
- उत्पादन घट गया
- रोजगार भी घट गया
- क्योंकि बारूद जो बनाए जा रहे थे उस में मजदूरों की संख्या कम होने लगी थी तो मजदूरों के पास रोजगार भी कम हो गया
- प्रथम विश्व युद्ध से पहले गेहूं का निर्यात केवल पूर्वी एशियाई यूरोप करते थे
- लेकिन विश्व युद्ध के समय ज्यादा मांग तो औद्योगिक सामान की थी
- इसलिए कृषि आधारित उत्पादन भी कम कर दिया गया
- इसका फायदा अमेरिका और कनाडा ने उठाया उन्होंने औद्योगिक सामान के साथ-साथ उत्पादन के केंद्रों में भी वृद्धि की
- जैसे युद्ध समाप्त हुआ वैसे ही गेहूं की पैदावार में भी बढ़ोतरी होने लगी और इसमें बहुत सारे व्यापारी भी आ गए
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