पाठ – 2
स्वतंत्रता
This post is about the detailed notes of class 11 Political Science Chapter 2 svatantrata (Freedom) in Hindi for CBSE Board. It has all the notes in simple language and point to point explanation for the students having Political Science as a subject and studying in class 11th from CBSE Board in Hindi Medium. All the students who are going to appear in Class 11 CBSE Board exams of this year can better their preparations by studying these notes.
यह पोस्ट सीबीएसई बोर्ड के लिए हिंदी में कक्षा 11 राजनीतिक विज्ञान अध्याय 2 स्वतंत्रता के विस्तृत नोट्स के बारे में है। इसमें सभी नोट्स सरल भाषा में हैं और सीबीएसई बोर्ड से हिंदी माध्यम से 11वीं कक्षा में एक विषय के रूप में राजनीतिक विज्ञान पढ़ने वाले छात्रों के लिए उपयोगी है। वे सभी छात्र जो इस वर्ष की कक्षा 11 सीबीएसई बोर्ड परीक्षा में शामिल होने जा रहे हैं, इन नोट्स को पढ़कर अपनी तैयारी बेहतर कर सकते हैं।
Board | CBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 11 |
Subject | Political Science |
Chapter no. | Chapter 2 |
Chapter Name | स्वतंत्रता (Freedom) |
Category | Class 11 Political Science Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
स्वतंत्रता
अर्थ :- स्वतंत्रता शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है ; 1. ‘स्व’ और 2. ‘तंत्र’ ।
‘स्व’ अर्थात ‘ अपना ‘
‘तंत्र’ अर्थात ‘बंधन’
अपने कायदे – कानून में रहना तथा हर प्रकार के बंधन से मुक्त होने का अर्थ ही स्वतंत्रता है।
परिभाषा :-
- स्वतंत्रता वह सब कुछ करने की शक्ति है जिससे किसी दूसरे को आघात न पहुंचे।
- स्वतंत्रता का मतलब व्यक्ति की आत्महै – अभिव्यक्ति की योग्यता का विस्तार करना तथा उसके भीतर की संभावनाओं को विकसित करना है।
- स्वतंत्रता एक ऐसी स्थिति है जिसमें लोग अपनी रचनात्मकता और क्षमताओं का विकास कर सके।
- यदि किसी व्यक्ति पर बाहरी नियंत्रण या दबाव न हो और वह बिना किसी पर निर्भर हुए निर्णय ले सके तथा स्वायत्त तरीके से व्यवहार कर सके तो उस व्यक्ति को स्वतंत्र माना जा सकता है।
स्वतंत्रता के दो आदर्श उदाहरण :-
1) ‘ लोंग वॉक टू फ्रीडम ‘ (नेल्सन मंडेला)
- नेल्सन मंडेला दक्षिण अफ्रीका के एक महानतम व्यक्ति ही नहीं बल्कि एक क्रांतिकारी नेता भी थे।
- नेल्सन मंडेला ने दक्षिण अफ्रीका में हो रहे रंगभेदी शासन के खिलाफ अपने व्यक्तिगत संघर्ष को समाज के सामने रखने के लिए इस पुस्तक को लिखा।
- रंगभेद के कारण नेल्सन मंडेला के जैसे कई लोगों को बहुत से अन्याय भी सहने पड़े जिनके खिलाफ उन्होंने कई आंदोलन छेड़े।
- आंदोलन की वजह से नेल्सन मंडेला को अपने जीवन के 28 वर्ष जेल की चारदीवारी में बिताने पड़े।
- आंदोलनों अभियानों के कई वर्ष बीत जाने पर तथा निरंतर संघर्ष के चलते नेल्सन मंडेला को अपना उद्देश्य सही मायनों में प्राप्त हुआ।
- परिणाम स्वरूप नेल्सन मंडेला दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने और अश्वेत लोगों के लिए एक मिसाल कायम की।
2) ‘फ्रीडम फ्रॉम फीयर’ (आंग सान सू की)
- आंग सान सू की म्यांमार की एक राजनेता , राजनयिक और एक मशहूर लेखिका है।
- आंग सान सू की को म्यांमार में उनके घर में ही कई वर्षों तक नजरबंद करके रखा गया।
- नजरबंदी के चलते हुए उसके कई अधिकार छीने गए।
- अपनी नजरबंदी के दौरान आंग सान सू की को अकेलेपन से ही डर लगने लगा।
- आंग सान सू की की नजरबंदी के कारण छिनी स्वतंत्रता को पाने के लिए उसने बहुत संघर्ष किया और अपने भय से भी मुक्ति पाई।
स्वतंत्रता की दो अवधारणाएं :-
1) नकारात्मक स्वतंत्रता :-
- स्वतंत्रता की नकारात्मक अवधारणा का अर्थ है बंधनों का न होना। अर्थात मनुष्य को अपनी इच्छा अनुसार कार्य करने की छूट।
- नकारात्मक स्वतंत्रता के अनुसार कानून व स्वतंत्रता परस्पर विरोधी हैं और कानून स्वतंत्रता की रक्षा नहीं अपितु उसे नष्ट करता है।
- नकारात्मक स्वतंत्रता के अनुसार व्यक्तिगत हित और सामाजिक हित दोनों अलग-अलग होते हैं।
- नकारात्मक स्वतंत्रता का तर्क यह स्पष्ट करता है कि व्यक्ति क्या करने से मुक्त है।
- नकारात्मक स्वतंत्रता का सरोकार अहस्तक्षेप के अनुलंघनीय क्षेत्र से है , इस क्षेत्र से बाहर समाज की स्थितियों से नहीं है।
2) सकारात्मक स्वतंत्रता :-
- स्वतंत्रता की सकारात्मक अवधारणा का अर्थ बंधनों का अभाव नहीं है।
- सकारात्मक स्वतंत्रता के अनुसार कानून व स्वतंत्रता दोनों परस्पर सहयोगी हैं। कानून स्वतंत्रता की रक्षा करते हैं।
- सकारात्मक स्वतंत्रता के अनुसार व्यक्तिगत हित और सामाजिक हित में कोई विरोध नहीं होता।
- सकारात्मक स्वतंत्रता के तर्क ‘कुछ करने की स्वतंत्रता’ के विचार की व्याख्या से जुड़े हैं।
- सकारात्मक स्वतंत्रता के पक्षधरों का मानना है कि व्यक्ति केवल समाज में स्वतंत्र रह सकता है , समाज से बाहर नहीं और इसी लिए वह इस समाज को ऐसा बनाने का प्रयास करते हैं, जो व्यक्ति के विकास का रास्ता साफ कर सके।
स्वतंत्रता के प्रकार :-
1) राजनीतिक स्वतंत्रता :-
- राजनीतिक स्वतंत्रता ऐसी स्वतंत्रता को कहते हैं जिसके अनुसार किसी देश के नागरिक अपने देश की सरकार में भाग लेने का अधिकार रखते हैं।
- नागरिकों को मताधिकार, चुनाव में खड़े होने का अधिकार, आवेदन देने का अधिकार तथा सरकारी नौकरी पाने का अधिकार रंग, जाति व धर्म आदि के भेदभाव के बिना सबको प्रदान किए जाते हैं।
2) आर्थिक स्वतंत्रता :-
- आर्थिक स्वतंत्रता से अभिप्राय ऐसी स्वतंत्रता से है जिसके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपनी रुचि व योग्यता अनुसार व्यवसाय करने की स्वतंत्रता हो।
- देश में उद्योग धंधों को सुचारू रूप से चलाने की स्वतंत्रता हो और उन को सुचारू रूप से चलाने की व्यवस्था बनाई जाए।
- धन का उत्पादन व वितरण ठीक ढंग से हो व बेरोजगारी न हो।
3) धार्मिक स्वतंत्रता :-
- धार्मिक स्वतंत्रता का अर्थ है – प्रत्येक व्यक्ति को अपना धर्म मानने की स्वतंत्रता।
- राज्य का कोई विशेष धर्म नहीं होता। विभिन्न धर्म के मानने वालों में कोई भेद नहीं किया जाता।
- इसी भावना के अनुसार भारत को धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया है।
4) नैतिक स्वतंत्रता :-
- व्यक्ति पूर्ण रूप से तभी स्वतंत्र हो सकता है जब वह नैतिक रूप से भी स्वतंत्र हो।
- नैतिक स्वतंत्रता का अर्थ है कि व्यक्ति बुद्धि तथा विवेक के अनुसार निर्णय ले सके।
- हीगेल तथा ग्रीन ने नैतिक स्वतंत्रता पर बल दिया है, उनके अनुसार राज्य ऐसी परिस्थितियों की स्थापना करता है; जिससे मनुष्य नैतिक रूप से उन्नति कर सकता है।
5) व्यक्तिगत स्वतंत्रता :-
- व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अर्थ है कि मनुष्य को व्यक्तिगत मामलों में पूरी तरह से स्वतंत्रता होनी चाहिए।
- व्यक्ति के भोजन, वस्त्र, विवाह, रहन-सहन आदि मामलों में राज्य को दखल नहीं देनी चाहिए क्योंकि ये सब एक मनुष्य के व्यक्तिगत मामले होते हैं।
6) प्राकृतिक स्वतंत्रता :-
- प्राकृतिक स्वतंत्रता है स्वतंत्रता है जिसका मनुष्य राज्य की स्थापना से पहले ही प्रयोग करता था।
- रूसो के अनुसार मनुष्य प्राकृतिक रूप से स्वतंत्र पैदा होता है परंतु समाज में आकर वह बंधनों से बंध जाता है। प्रकृति की ओर से व्यक्ति पर किसी प्रकार के बंधन नहीं होते परंतु अधिकतर राजनीतिक शास्त्री इस मत सहमत नहीं है।
7) राष्ट्रीय स्वतंत्रता :-
- राष्ट्रीय स्वतंत्रता का अर्थ है कि राष्ट्र को विदेशी नियंत्रण से स्वतंत्रता प्राप्त होती है; एक स्वतंत्र राष्ट्र ही अपने नागरिकों को अधिकार तथा स्वतंत्रता प्रदान कर सकता है, जिससे नागरिक अपना सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, आर्थिक तथा राजनीतिक विकास कर सकता है।
भारतीय संविधान में स्वतंत्रता
- भारतीय संविधान में स्वतंत्रता के अधिकार को अनुच्छेद 19 से लेकर अनुच्छेद 22 तक में वर्णित किया गया है।
- किसी भी संविधान में स्वतंत्रता का होना ही इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण है कि स्वतंत्रता किसी मनुष्य के लिए एक ही राष्ट्र के लिए कितनी अहम होती है।
अनुच्छेदों का वर्णन :-
- अनुच्छेद 19 :-
- यह भारतीय संविधान का मूल ढ़ाचा है। यह स्वतन्त्रता केवल भारतीय नागरिकों को ही प्रदान की गयी है। अनुo 19 में वर्णित सभी स्वतन्त्रताएँ सामाजिक है।
- अनुo 19 में वर्णित स्वतन्त्रता आपातकाल में अनुo 358 के अन्तर्गत स्वतः निलम्बित हो जाती है।
अनुच्छेद 19 के अन्तर्गत 6 स्वतंत्रताओं को वर्णित किया गया है:-
- इसमें भाषण अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का प्रावधान है। प्रेस की स्वतन्त्रता इसी अनु० में निहित है।
- इसमें शान्तिपूर्ण एवं निरायुध सम्मेलन की स्वतन्त्रता का प्रावधान है इसी में जलूस निकालने का अधिकार निहित है यह धार्मिक व राजनीतिक दोनों प्रकार का हो सकता है।
- इसमें संगम या संघ बनाने की स्वतन्त्रता का प्रावधान है इसी में राजनीतिक दल दबाव समूह तथा सामाजिक व सांस्कृतिक संगठन बनाने का विचार निहित है।
- भारत राज्य क्षेत्र में प्रत्येक नागरिक को अवाध भ्रमण की स्वतन्त्रता प्राप्त है।
- के द्वारा अनुसुचित जनजाति और सार्वजनिक हित के आधार पर प्रतिबंध है।
- भारत राज्य क्षेत्र में प्रत्येक नागरिक को कहीं आवास बनाने निवास करने व बस जाने की स्वतन्त्रता प्राप्त है।
- भारत राज्य क्षेत्र में प्रत्येक नागरिक को कोई वृत्ति व्यापार व्यवसाय या कारोबार करने की स्वतन्त्रता प्राप्त है।
- अनुच्छेद 20 :-
- इसमें अपराध की दोषसिद्धि के सम्बन्ध में संरक्षण का प्रावधान है। इसमें निम्न तीन बाते कही गयी है।
- अपराध करते समय लागू कानून के अतिरिक्त अन्य किसी कानून से व्यक्ति को सजा नहीं दी जाएगी अर्थात यह कार्योत्तर विधियों से संरक्षण प्रदान करता है।
- एक ही अपराध के लिए किसी व्यक्ति को दोहरा दण्ड नहीं दिया जाएगा लेकिन यदि अपराध की प्रकृति भिन्न भिन्न है तो व्यक्ति को दोहरा दण्ड दिया जा सकता है अर्थात यह दोहरे दण्ड का निषेध करता है। यह प्रावधान अमेरिका से गृहीत है।
- किसी व्यक्ति को अपने विरुद्ध गवाहि या साक्ष्य देने के लिए वाध्य नहीं किया जाएगा। अर्थात यह आत्म अभिसंशन का अधिकार देता है।
- इसमें अपराध की दोषसिद्धि के सम्बन्ध में संरक्षण का प्रावधान है। इसमें निम्न तीन बाते कही गयी है।
- अनुच्छेद 21 :-
- भारत राज्य क्षेत्र में राज्य किसी व्यक्ति को उसके प्राण एवं दैहिक स्वतन्त्रता से विधि द्वारा स्थानपित प्रक्रिया से ही वंचित करेगा अन्यथा नहीं।
- ए० के० गोपालन बनाम मद्रास राज्य के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यह स्वतन्त्रता कार्यपालिका के विरुद्ध नही अर्थात विधायिका कानून बनाकर किसी व्यक्ति को उसके प्राण एवं दैहिक स्वतन्त्रता से वंचित कर सकती है।
- अनुच्छेद 22 :-
- इसमें बन्दी बनाए जाने के विरुद्ध व्यक्तियों को संरक्षण प्रदान किया गया है। इसमें निम्न प्रावधान है।
- बन्दी बनाए जाने वाले व्यक्ति को बन्दी बनाए जाने के कारणों से तत्काल अवगत कराना होगा।
- बन्दी बनाए गए व्यक्ति 24 घण्टे के अन्दर निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष अपस्थित करना होगा और बन्दी बनाए जाने का कारण बताना होगा। इसी में कहा गया है कि बन्दी बनाए गए व्यक्ति को अपने रुचि या मनपसन्द के वकील से परामर्श लेने का अधिकार प्राप्त होगा।
- निम्नलिखित दो प्रकार से गिरफ्तार किए गए व्यक्तियों पर उपर्युक्त नियम लागू नहीं होता
- निवारक निरोध के अधीन गिरफ्तार किया गया व्यक्ति
- शत्रु देश के व्यक्ति पर
स्वतंत्रता का क्षेत्र व सीमा :-
- बिना किसी बाधा के अपने व्यक्तित्व को प्रकट करने का नाम ही स्वतंत्रता है; परंतु यदि प्रत्येक व्यक्ति को पूर्ण रूप से स्वतंत्रता दी जाए तो समाज में अव्यवस्था फैल जाएगी।
- सभ्य समाज में समाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए स्वतंत्रता बंधन व कानूनों की सीमा में ही होनी चाहिए।
- जब भी स्वतंत्रता असीम हो जाती है तो वह नकारात्मक स्वतंत्रता बन जाती है और व्यक्ति के ऊपर किसी प्रकार का बंधन नहीं होता।
- इस प्रकार की स्वतंत्रता के अंतर्गत व्यक्ति कुछ भी कर सकता है जिससे दूसरे व्यक्तियों की स्वतंत्रता नष्ट हो सकती है।
हानि सिद्धांत :-
- जॉन स्टुअर्टमिल ने अपने निबंध ‘ऑन लिबर्टी’ में बहुत प्रभावपूर्ण तरीके से उठाया है; राजनीतिक सिद्धांत के विमर्श में इसे ‘ हानि सिद्धांत ‘ कहा जाता है। हार्म सिद्धांत यह है कि किसी के कार्य करने की स्वतंत्रता में व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से हस्तक्षेप करने का इकलौता लक्ष्य आत्म – रक्षा है। सभ्य समाज के किसी सदस्य की इच्छा के खिलाफ शक्ति के औचित्यपूर्ण प्रयोग का एकमात्र उद्देश्य किसी अन्य को हानि से बचाना हो सकता है।
- जे. एस. मिल ने हार्म के सिद्धांत को व्यक्ति के कार्यों में हस्तक्षेप के लिए अकेला प्रभावी कारक के रूप में स्वीकार किया है तथा उनहोंने मानव को दो भागों में विभाजित भी कियां है – स्व निर्धारित कार्य व अन्य निर्धारित कार्य।
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