पाठ – 3
नियोजित विकास
This post is about the detailed notes of class 12 Political Science Chapter 3 Niyojit vikas (Politics of planned development) in Hindi for CBSE Board. It has all the notes in simple language and point to point explanation for the students having Political Science as a subject and studying in class 12th from CBSE Board in Hindi Medium. All the students who are going to appear in Class 12 CBSE Board exams of this year can better their preparations by studying these notes.
यह पोस्ट सीबीएसई बोर्ड के लिए हिंदी में कक्षा 12 राजनितिक विज्ञान अध्याय 3 नियोजित विकास के विस्तृत नोट्स के बारे में है। इसमें सभी नोट्स सरल भाषा में हैं और सीबीएसई बोर्ड से हिंदी माध्यम से 12वीं कक्षा में एक विषय के रूप में राजनितिक विज्ञान पढ़ने वाले छात्रों के लिए उपयोगी है। वे सभी छात्र जो इस वर्ष की कक्षा 12 सीबीएसई बोर्ड परीक्षा में शामिल होने जा रहे हैं, इन नोट्स को पढ़कर अपनी तैयारी बेहतर कर सकते हैं।
Board | CBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Political Science |
Chapter no. | Chapter 3 |
Chapter Name | नियोजित विकास (Politics of planned development) |
Category | Class 12 Political Science Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
आज़ादी के बाद मौजूद तीन मुख्य समस्याओ में से दो का समाधान करने के बाद अब तीसरी और सबसे मुश्किल समस्या का सामना करना था। यह समस्या थी देश का विकास करने की ।
आज़ादी के समय भारतीय अर्थव्यवस्था ।
- कृषि पर निर्भरता ।
- उद्योगों का निराशाजनक विकास ।
- आधारिक संरचना(बिजली, सड़क, बाज़ार आदि ) का आभाव ।
- अधिकांश जनसँख्या गरीब ।
- मूलभूत सुविधाओं का आभाव ।
भारत के सामने विकास करने के दो मॉडल उपलब्ध थे ।
समाजवादी मॉडल
- यह व्यवस्था सोवियत संघ में प्रचलित थी। इसके अंदर सभी चीज़ो का उत्पादन सरकार द्वारा किया जाता है । देश में निजी क्षेत्र नहीं होता और सभी कम्पनियाँ सरकार के आधीन होती है ।
पूंजीवादी व्यवस्था
- इस व्यवस्था के अंतर्गत हर सभी वस्तुओ का उत्पादन निजी क्षेत्र द्वारा किया जाता है और सरकार का हस्तक्षेप न के बराबर होता है । यह व्यवस्था उस समय अमेरिका में प्रचलित थी
- पर भारत में विकास के मुद्दे को लेकर दो अलग अलग राय थी ।
वामपंथी
- यह वो लोग थे जो चाहते थे की देश में गरीबो और पिछड़े वर्ग को ध्यान में रख कर विकास की व्यवस्था बनाई जाये ।
- यह लोग गरीबो के लिए चिंचित थे ।
- यह चाहते थे की ऐसी व्यवस्था बनाई जाये जिससे की देश में गरीब लोगो का कल्याण हो सके ।
दक्षिणपंथी
- यह वो लोग थे जो पूंजीवाद के समर्थन में थे । यह चाहते थे की देश में व्यापार की नीतियां सरल बनाई जाये । यह चाहते थे की सरकार द्वारा व्यापार के नियम सरल बनाये जाये और निजी क्षेत्र को बढ़ावा दिया जाये ।
- दोनों वर्गों की बात मानते हुए भारत ने मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया। भारतीय अर्थव्यवस्था में कुछ विशेषताएं पूंजीवादी व्यवस्था से ली गई और कुछ विशेषताएं सामजवादी व्यवस्था से ली गई । इस तरह भारत ने मिश्रित अर्थव्यवस्था का निर्माण किया ।
मिश्रित अर्थव्यवस्था
- मिश्रित अर्थव्यवस्था में समाजवाद तथा पूंजीवाद दोनों की विशेषताओं को शामिल किया गया। देश में छोटे उद्योगों का विकास निजीं क्षेत्र में किया गया तथा बड़े उद्योगों के विकास की जिम्मेदारी सरकार ने अपने कंधो पर ली।
नियोजन
- सोवियत संघ की नियोजित विकास की व्यवस्था से प्रभावित होकर भारत ने भी नियोजन को अपनाया।
- वर्तमान के संसाधनों को ध्यान में रखते हुए भविष्य के लिए कुछ लक्ष्य निर्धारित करना और उन्हें प्राप्त करने की योजना बनाना नियोजन कहलाता है।
योजना आयोग
- नियोजन की प्रक्रिया के अंतर्गत भारत में पंचवर्षीय योजनाओ का निर्माण किया गया ।
- पंचवर्षीय योजना से अभिप्राय देश में पांच सालो के लिए विकास करने की योजना से है ।
- इन पंचवर्षीय योजनाओ का निर्माण करने क लिए योजना आयोग का गठन किया गया । भारत में योजना आयोग का गठन 1950 में किया गया। इसके अध्यक्ष देश के प्रधानमंत्री होते है ।
- 1 जनवरी 2015 को योजना आयोग का नाम बदल कर नीति (NITI – नेशनल इंस्टिट्यूट फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया ) आयोग रख दिया गया ।
पंचवर्षीय योजना
पहली पंचवर्षीय योजना ( 1951 – 56 )
- भारत में पहली पंचवर्षीय योजना को 1951 में लागु किया गया और यह योजना 1956 तक चली ।
- इस योजना के मुख्य योजनाकार थे के एन राज थे ।
- उद्देश्य
- कृषि पर केंद्रित ।
- देश को गरीबी से बाहर निकालना ।
- भूमि सुधार ।
दूसरी पंचवर्षीय योजना (1956 – 61 )
- दूसरी पंचवर्षीय योजना को 1956 में लागु किया गया और यह 1961 तक चली ।
- इस योजना के मुख्य योजनाकार थे पी सी महालनोबिस थे ।
- उद्देश्य
- बड़े उद्योगों का विकास करना ।
- देशी उंद्योगो को बढ़ावा देना ।
- आयत को कम करना और निर्यात को बढ़ावा देना ।
- आधारिक संरचना( बिजली, यातायात, इस्पात, संचार आदि) का विकास करना ।
कृषि की समस्याएँ
- जमींदारी व्यवस्था।
- सिचाई की सुविधा का आभाव।
- वर्षा पर निर्भरता।
- निम्न उत्पादकता।
- खंडित जोते।
भूमि सुधार (कृषि सुधार)
- जमींदारी प्रथा की समाप्ति ।
- सिचाई के लिए बांधो का निर्माण ।
- वर्षा पर निर्भरता काम करने के लिए सिंचाई की व्यवस्था को सुधारा गया ।
- उत्पादकता बढ़ाने हेतु अच्छी किस्म के बीज एवं उर्वरक उपलब्ध करवाए गए ।
- खंडित जोतो को समाप्त किया गया ।
- दूसरी पंचवर्षीय योजना में उद्योगों पर ध्यान देने के कारण भारत में कृषि की हालत खराब हो गई ।
भारत में खद्यान संकट
- दूसरी पंचवर्षीय योजना में उद्योगों पर ध्यान देने के कारण भारत में खाद्यान की कमी ।
- 1962 में चीन युद्ध के कारण कृषि को नुकसान ।
- अमेरिका से खाद्यान आयत के कारण अमेरिका का बढ़ता दवाब ।
हरित क्रांति क्या है ?
हरित क्रांति उस दौर को कहा जाता है जब भारत में खाद्यान उत्पादन में एक दम से अत्यधिक वृद्धि हुई । यह दौर था 1964 – 67.
हरित क्रांति कैसे आई ?
देश में खाद्यान की बढ़ती समस्या को देखते हुए सरकार ने खाद्यान उत्पादन की वृद्धि पर ध्यान दिया। इसके लिए सरकार ने
- अच्छी किस्म के बीज उपलब्ध करवाए
- किसानो को भूमि अनुसार उत्पादन की सलाह दी ।
- किसान को और अधिक सहायता उपलब्ध करवाई ।
हरित क्रांति के सकारात्मक प्रभाव (परिणाम)
- खाद्यान उत्पादन में वृद्धि ।
- खाद्यान उत्पादन में भारत आत्मनिर्भर बना ।
- कृषि में नयी तकनीक का प्रयोग होना शुरू हुआ ।
- मध्यम कृषक वर्ग का उदय हुआ ।
- कृषि में व्यापारीकरण की शुरुआत हुई ।
हरित क्रांति के नकारात्मक प्रभाव ।
- केवल कुछ किस्म की फसलों जैसे की चावल, गेहूँ आदि के उत्पादन में वृद्धि हुई ।
- हरित क्रांति का प्रभाव कुछ क्षेत्रों जैसे की उत्तरप्रदेश, पंजाब आदि तक सीमित रहा ।
- अमीर और गरीब किसानो के बीच का अंतर और बढ़ गया ।
- हरित क्रांति का फ़ायदा सम्पूर्ण भारत को नहीं हुआ ।
मुख्य विवाद
कृषि बनाम उद्योग ।
- आज़ादी के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि तथा उद्योगों दोनों की ही हालत बहुत ख़राब थी । वैसे तो कृषि पर देश की लगभग 70 प्रतिशत जनसँख्या निर्भर थी पर फिर भी देश में कृषि की हालत बहुत ख़राब थी दूसरी तरफ औद्योगिक क्षेत्र की हालत तो कृषि से भी ज़्यादा ख़राब थी ।
- दोनों ही क्षेत्रों का अपना अपना महत्व था इसीलिए दोनों क्षेत्रों का विकास करना बहुत ज़रूरी था ऐसे में सबसे बड़ी समस्या यह थी, की किस क्षेत्र को कितना महत्व दिया जाये ।
- कृषि पर ज़्यादा ध्यान देने की वजह से औद्योगिक क्षेत्र पिछड़ जाता और अगर औद्योगिक क्षेत्र पर ज़्यादा ध्यान दिया जाता तो कृषि के पिछड़ने की समस्या थी ।
- जहाँ एक तरफ कृषि खाद्यान और कच्चे माल का स्त्रोत थी वही दूसरी तरफ उद्योग विकास के लिए आवश्यक थे ।
- इसी वजह से योजनाकारों के लिए हमेशा ही उद्योगों या कृषि में से एक को चुनने की समस्या बनी रही ।
निजी क्षेत्र बनाम सार्वजनिक क्षेत्र
- जैसा की हमे पता है की भारत ने मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया जिसमे निजी और सार्वजानिक दोनों क्षेत्रों को शामिल किया गया ।
- इस व्यवस्था में सबसे बड़ी समस्या यह थी, की किस तरह से इन दोनों क्षेत्रों का विकास किया जाये ।
- सार्वजनिक क्षेत्र सामान सामाजिक कल्याण के लिए ज़रूरी था, पर इसमें भ्रष्टाचार और निम्न उत्पादकता जैसी समस्याएँ थी ।
- निजी क्षेत्र में भ्रष्टाचार और निम्न उत्पादकता की सम्भावना तो कम थी पर इसके द्वारा समाज कल्याण करना बहुत मुश्किल था ।
- इसीलिए योजनाकारों के बीच निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका को लेकर विवाद बने रहे ।
योजना आयोग
- भारत के अंदर विकास करने की आवश्यकता को देखते हुए नियोजित व्यवस्था को अपनाया गया
- योजना को बनाने और उसका आकलन करने के लिए सरकार ने योजना आयोग का गठन किया
- योजना आयोग की स्थापना 15 मार्च 1950 में की गई
- इसका मुख्य उद्देश्य देश के संसाधनों को ध्यान में रखते हुए भविष्य के लिए योजना का निर्माण करना था ताकि देश तेजी से विकास कर सकें
योजना आयोग की कमियां
- योजना आयोग में मुख्य रूप से केंद्र सरकार का प्रभाव था और सभी योजनाएं केंद्र सरकार द्वारा बनाकर राज्यों पर थोप दी जाती थी
- राज्यों का प्रतिनिधित्व ना होने के कारण राज्यों के लिए उन योजनाओं को लागू कराना मुश्किल होता था
- विभिन्न पार्टियों के बीच होने वाली राजनीति की वजह से भी योजनाओं को बनाने और लागू कराने में समस्याएं आती थी
- राज्यों में संसाधनों का आवंटन करने में समस्या आती थी
नीति आयोग
- इन्हीं सब समस्याओं को देखते हुए सरकार ने योजना आयोग की समाप्ति कर 1 जनवरी 2015 को नीति आयोग की स्थापना की
- नीति आयोग में योजना आयोग की तरह संसाधनों का बंटवारा है आयोग द्वारा नहीं किया जाता बल्कि अब यह जिम्मेदारी देश के वित्त मंत्रालय को सौंपी गई है जिस वजह से संसाधन आवंटन की समस्या समाप्त हो गई
- संचालन परिषद में सभी राज्यों के मुख्यमंत्री और केंद्र शासित प्रदेशों के उप राज्यपालों को स्थान दिया गया जिससे राज्यों के प्रतिनिधित्व की समस्या को समाप्त हुई
संरचना
- अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है
- उपाध्यक्ष प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त किया जाता है
- संचालन परिषद सभी राज्यों के मुख्यमंत्री और केंद्र शासित प्रदेशों के उपराज्यपाल
- कुछ मुख्य तथ्य
- प्रथम उपाध्यक्ष अरविंद पनगड़िया
- प्रथम मुख्य कार्यकारी अधिकारी सीईओ सिंधुश्री खुल्लर
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