भारतीय अर्थव्यवस्था 1950 से 1990 (CH-2) Notes in Hindi || CBSE Board Class 12 Economics Chapter 2 Notes in Hindi ||

 

पाठ – 2

भारतीय अर्थव्यवस्था 1950 से 1990

This post is about the detailed notes of class 12 Economics Chapter 2 bhaarateey arthavyavastha 1950 se 1990 (Indian Economy 1950 – 1990) in Hindi for CBSE Board. It has all the notes in simple language and point to point explanation for the students having Economics as a subject and studying in class 12th from CBSE Board in Hindi Medium. All the students who are going to appear in Class 12 CBSE Board exams of this year can better their preparations by studying these notes.

यह पोस्ट सीबीएसई बोर्ड के लिए हिंदी में कक्षा 12 अर्थशास्त्र अध्याय 2 भारतीय अर्थव्यवस्था 1950 से 1990 के विस्तृत नोट्स के बारे में है। इसमें सभी नोट्स सरल भाषा में हैं और सीबीएसई बोर्ड से हिंदी माध्यम से 12वीं कक्षा में एक विषय के रूप में अर्थशास्त्र पढ़ने वाले छात्रों के लिए उपयोगी है। वे सभी छात्र जो इस वर्ष की कक्षा 12 सीबीएसई बोर्ड परीक्षा में शामिल होने जा रहे हैं, इन नोट्स को पढ़कर अपनी तैयारी बेहतर कर सकते हैं।

BoardCBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectIndian Economics (भारतीय अर्थशास्त्र)
Chapter no.Chapter 2
Chapter Nameभारतीय अर्थव्यवस्था 1950 से 1990 (Indian Economy 1950 – 1990)
CategoryClass 12 Economics Notes in Hindi
MediumHindi
Class 12 Indian Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था 1950 से 1990 (Indian Economy 1950 – 1990) in Hindi
Class 12 Indian Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था 1950 से 1990 (Indian Economy 1950 – 1990) in Hindi
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2 भारतीय अर्थव्यवस्था 1950 से 1990
2.9 भारत में पंचवर्षीय योजनाएं

भारतीय अर्थव्यवस्था 1950 से 1990 

  • भारत में पंचवर्षीय योजनाएं 
  • कृषि उद्योग तथा व्यापार

 आर्थिक नियोजन 

वर्तमान के संसाधनों को ध्यान में रखते हुए भविष्य के लिए कुछ लक्ष्य निर्धारित करना और उन्हें प्राप्त करने की योजना बनाना नियोजन कहलाता है। 

पंचवर्षीय योजना

  • नियोजन की प्रक्रिया के अंतर्गत भारत में पंचवर्षीय योजनाओ का निर्माण किया गया ।
  • पंचवर्षीय योजना का अभिप्राय अगले 5 सालों के लिए देश के विकास से संबंधित लक्ष्य निर्धारित करना एवं उन्हें प्राप्त करने के लिए योजना बनाने से है
  • इन लक्ष्यों को अगले 5 साल के लिए बनाया जाता है इसीलिए इन्हें पंचवर्षीय योजना कहा जाता है अगर लक्ष्य 1 साल के लिए बनाए जाते हैं तो इसे 1 वर्षीय योजना कहते हैं
  • इन पंचवर्षीय योजनाओ का निर्माण करने क लिए योजना आयोग का गठन किया गया ।

योजना आयोग

  • भारत में योजना आयोग का गठन 1950 में किया गया।
  • इसके अध्यक्ष देश के प्रधानमंत्री होते है ।
  • भारत के अंदर विकास करने की आवश्यकता को देखते हुए नियोजित व्यवस्था को अपनाया गया
  • योजना को बनाने और उसका आकलन करने के लिए सरकार ने योजना आयोग का गठन किया
  • योजना आयोग की स्थापना 15 मार्च 1950 में की गई
  • इसका मुख्य उद्देश्य देश के संसाधनों को ध्यान में रखते हुए भविष्य के लिए योजना का निर्माण करना था ताकि देश तेजी से विकास कर सकें

 योजना आयोग की कमियां

  • योजना आयोग में मुख्य रूप से केंद्र सरकार का प्रभाव था और सभी योजनाएं केंद्र सरकार द्वारा बनाकर राज्यों पर थोप दी जाती थी
  • राज्यों का प्रतिनिधित्व ना होने के कारण राज्यों के लिए उन योजनाओं को लागू कराना मुश्किल होता था
  • विभिन्न पार्टियों के बीच होने वाली राजनीति की वजह से भी योजनाओं को बनाने और लागू कराने में समस्याएं आती थी
  • राज्यों में संसाधनों का आवंटन करने में समस्या आती थी

 नीति आयोग

  • इन्हीं सब समस्याओं को देखते हुए सरकार ने योजना आयोग की समाप्ति कर 1 जनवरी 2015 को नीति आयोग की स्थापना की
  • नीति आयोग में योजना आयोग की तरह संसाधनों का बंटवारा आयोग द्वारा नहीं किया जाता बल्कि अब यह जिम्मेदारी देश के वित्त मंत्रालय को सौंपी गई है जिस वजह से संसाधन आवंटन की समस्या समाप्त हो गई
  • संचालन परिषद में सभी राज्यों के मुख्यमंत्री और केंद्र शासित प्रदेशों के उप राज्यपालों को स्थान दिया गया जिससे राज्यों के प्रतिनिधित्व की समस्या की समाप्ति हुई 
  • संरचना
      • अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है
      • उपाध्यक्ष प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त किया जाता है
      • संचालन परिषद – सभी राज्यों के मुख्यमंत्री और केंद्र शासित प्रदेशों के उपराज्यपाल
      • कुछ मुख्य तथ्य
      • प्रथम उपाध्यक्ष – अरविंद पनगड़िया
      • प्रथम मुख्य कार्यकारी अधिकारी – सीईओ सिंधुश्री खुल्लर

 भारत में नियोजन की आवश्यकता

 भारत में निम्नलिखित कारणों से नियोजन की आवश्यकता थी

    • पिछड़ी और गतिहीन अर्थव्यवस्था 
    • उत्पादकता का कम स्तर 
    • GDP वृद्धि की मंद दर
    • अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों का असमान विकास
    • आधारिक संरचना का अभाव
    • इन सभी वजह से बड़े स्तर पर सरकारी निवेश की आवश्यकता थी और ऐसी अर्थव्यवस्था को बाजार की शक्तियों( मांग एवं पूर्ति) के भरोसे छोड़ा नहीं जा सकता था
    • इसी वजह से आर्थिक नियोजन को अपनाया गया

भारत में नियोजन

  •  भारत में नियोजन मुख्य रूप से आर्थिक प्रणाली के चुनाव से जुड़ा था
  •  मुख्य रूप से देखें तो आर्थिक प्रणालियाँ तीन प्रकार की होती हैं
    • पूंजीवादी
    • समाजवादी
    • मिश्रित

पूंजीवादी व्यवस्था

    • इसे बाजार अर्थव्यवस्था भी कहा जाता है 
    • इस अर्थव्यवस्था में उत्पादन के सभी साधनों पर निजी स्वामित्व होता है एवं व्यक्ति अपने आर्थिक निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र होते हैं

विशेषताएं

      •  उत्पादन के साधनों पर निजी स्वामित्व
      •  लाभ का अधिकतमीकरण मुख्य उद्देश्य
      •  केवल लाभदायक वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन
      •  सरकार का हस्तक्षेप ना के बराबर

 गुण

    • इस व्यवस्था के अंतर्गत लाभ का अधिकतमीकरण होता है और जीडीपी की वृद्धि दर में तेजी आती है

 अवगुण

    • संपूर्ण समाज के हितों का ध्यान नहीं रखा जाता
    • केवल उन्हीं वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है जिन से अधिक से अधिक लाभ प्राप्त किया जा सके
    • समाज के निर्धन वर्ग की उपेक्षा होती है
    • बिना सामाजिक न्याय के विकास होता है

समाजवादी अर्थव्यवस्था

  • इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में उत्पादन के साधनों पर मुख्य रूप से सरकार का स्वामित्व होता है
  • समाज का कल्याण अधिकतम करने के लिए  सरकारी अधिकारियों द्वारा सभी आर्थिक निर्णय लिए जाते हैं

विशेषताएं

    • उत्पादन के साधनों पर संपूर्ण समाज का स्वामित्व होता है
    • निजी संपत्ति का अभाव होता है
    • उत्पादन के साधनों का प्रयोग समाज के कल्याण को अधिकतम करने के लिए किया जाता है
    • सरकार मुख्य रूप से सभी आर्थिक निर्णयों में योगदान देती है

गुण 

    • सामाजिक कल्याण में वृद्धि होती है
    • संपूर्ण समाज का सामान विकास संभव हो पाता है
    • सामाजिक न्याय में वृद्धि होती है

अवगुण 

    • जीडीपी संवृद्धि की गति धीमी होती है
    • अर्थव्यवस्था का विकास धीमी गति से होता है
    • भ्रष्टाचार एवं निम्न उत्पादकता जैसी समस्याएं होती है

मिश्रित अर्थव्यवस्था

  •  इस प्रणाली में उत्पादन के साधनों पर निजी एवं सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों का स्वामित्व होता है
  •  उत्पादन संबंधी निर्णय सामाजिक कल्याण एवं लाभ अधिकतमीकरण को ध्यान में रखकर लिए जाते हैं

विशेषताएं

    • उत्पादन के साधनों पर निजी एवं सरकारी दोनों प्रकार का स्वामित्व होता है
    • उत्पादन प्रक्रिया में निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र दोनों महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है 
    • निजी क्षेत्र द्वारा उत्पादन संबंधी निर्णय लाभ अधिकतमीकरण जबकि सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा उत्पादन संबंधी निर्णय सामाजिक कल्याण को ध्यान में रखकर लिए जाते हैं

गुण 

    • इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में पूंजीवाद एवं समाजवाद दोनों के गुण उपस्थित होते हैं
    • लाभ अधिकतमीकरण के कारण जीडीपी की वृद्धि दर तेज होती है जबकि सरकार द्वारा सामाजिक कल्याण को ध्यान में रखते हुए निर्णय लिए जाने के कारण सामाजिक कल्याण भी सुनिश्चित होता है

अवगुण 

    • सरकारी क्षेत्र में भ्रष्टाचार, अकुशलता और निम्न उत्पादकता जैसी समस्याएं देखने को मिलती हैं
    • अत्याधिक पाबंदियां होने के कारण निजी क्षेत्र पूर्ण रूप से फल-फूल नहीं पाता

भारत में पंचवर्षीय योजनाएं

पहली पंचवर्षीय योजना (1951 – 56)

    • भारत में पहली पंचवर्षीय योजना को 1951 में लागु किया गया और यह योजना 1956 तक चली ।
    • इस योजना के मुख्य योजनाकार थे के एन राज थे ।
    • उद्देश्य
      • कृषि पर केंद्रित ।
      • देश को गरीबी से बाहर निकालना
      • भूमि सुधार ।

 दूसरी पंचवर्षीय योजना (1956 – 61)

      • दूसरी पंचवर्षीय योजना को 1956 में लागु किया गया और यह 1961 तक चली ।
      • इस योजना के मुख्य योजनाकार थे पी सी महालनोबिस थे ।
      • उद्देश्य
        • बड़े उद्योगों का विकास करना ।
        • देशी उंद्योगो को बढ़ावा देना ।
        • आयत को कम करना और निर्यात को बढ़ावा देना ।
        • आधारिक संरचना का विकास करना ।

तीसरी पंचवर्षीय योजना ( 1 अप्रैल 1961 से 31 मार्च 1966) खाद्यान्न उत्पादन

    • उद्देश्य 
      • देश को खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाना
      • रोजगार के अवसरों में वृद्धि करना

 चौथी पंचवर्षीय योजना ( 1 अप्रैल 1969 से 31 मार्च 1974 तक ) कीमत  स्थिरता

    • उद्देश्य 
      • विकास की गति में वृद्धि करना
      • कीमत स्थिरता कायम करना

पांचवी पंचवर्षीय योजना ( 1 अप्रैल 1974 से 31 मार्च 1979 तक ) जीवन स्तर सुधार

    • उद्देश्य 
      • जीवन स्तर में सुधार करना

 छठी पंचवर्षीय योजना ( 1 अप्रैल 1980 से 31 मार्च 1985 तक ) निर्धनता  घटाना 

    • उद्देश्य   
      • गरीबी हटाना
      • आज समानता दूर करना

सातवीं पंचवर्षीय योजना ( 1 अप्रैल 1985 से 31 मार्च 1990 तक ) रोजगार में वृद्धि

    • उद्देश्य 
      • देश में रोजगार के नए अवसर पैदा करना

आठवीं पंचवर्षीय योजना ( 1 अप्रैल 1992 से 31 मार्च 1997 तक ) शिक्षा का विकास

    • उद्देश्य 
      • शिक्षा मानव पूंजी तथा आधारिक संरचना का विकास करना

 9 वी पंचवर्षीय योजना ( 1 अप्रैल 1997 से 31 मार्च 2002 तक )  ग्रामीण विकास

    •  उद्देश्य 
      • देश में ग्रामीण क्षेत्र का विकास करना कीमत फिरता लाना जनसंख्या वृद्धि  पर नियंत्रण करना

दसवीं पंचवर्षीय योजना ( 1 अप्रैल 2002 से 31 मार्च 2007 तक ) जीवन सुधार

    •  उद्देश्य 
      • देश में लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाना

 11वीं पंचवर्षीय योजना ( 1 अप्रैल 2007 से 31 मार्च 2012 तक ) पर्यावरण संरक्षण

    •  उद्देश्य 
      • देश में पर्यावरण संरक्षण को सुनिश्चित करना
  •  12वीं पंचवर्षीय योजना ( 1 अप्रैल 2012 से 31 मार्च 2017 तक ) संपूर्ण विकास

    •  उद्देश्य 
      • देश का संपूर्ण विकास करना

भारत में नियोजन के लक्ष्य

  •  नियोजन के लक्ष्य को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा जा सकता है
    • दीर्घकालीन लक्ष्य 
    • अल्पकालीन लक्ष्य

 नियोजन के अल्पकालीन लक्ष्य

    • कृषि का विकास
    • उद्योगों का विकास
    • खाद्यान्न भंडार का विस्तार
    • गरीबी हटाना
    • जीवन स्तर में सुधार
    • पर्यावरण सुधार

 दीर्घकालीन उद्देश्य

    • सकल घरेलू उत्पाद में  संवृद्धि 
    • आधुनिकीकरण 
    • आत्मनिर्भरता 
    • पूर्ण रोजगार
    • संसाधनों का सामान वितरण
    • समान  सामाजिक कल्याण

 1991 तक अपनाई गई भारतीय आर्थिक नीतियों की विशेषताएं

  • निजी क्षेत्र का नियंत्रित विकास 
  • सार्वजनिक क्षेत्र पर भरोसा 
  • लघु उद्योगों का संरक्षण 
  • भारी उद्योगों का विकास 
  • बचत तथा निवेश में वृद्धि 
  • विदेशी प्रतियोगिता से संरक्षण 
  • निर्यात में वृद्धि 
  • आयात में कमी 
  • विदेशी पूंजी पर रोक 
  • केंद्रीकृत नियोजन

 पंचवर्षीय योजनाओं की उपलब्धियां

  • प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि 
  • राष्ट्रीय आय में वृद्धि 
  • पूंजी निर्माण में वृद्धि 
  • कृषि सुधार 
  • प्रौद्योगिकी का विकास 
  • उद्योगों का विकास 
  • आर्थिक आधारिक संरचना का विकास 
  • अंतरराष्ट्रीय व्यापार का बदला स्वरूप

 आर्थिक नियोजन की असफलताएं

  •  मुद्रास्फीति दर में वृद्धि
  •  बेरोजगारी संकट
  • असमान विकास
  •  अपूर्ण आधारिक संरचना
  •  संसाधनों का असमान वितरण
  •  गरीबी

 

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