बंधुत्व, जाति तथा वर्ग (CH-3) Notes in Hindi || CBSE Board Class 12 History Chapter 3 Notes in Hindi ||

पाठ – 3

बंधुत्व, जाति तथा वर्ग

This post is about the detailed notes of class 12 History Chapter 3 bandhutv, jaati tatha varg (Kinship, Caste and Class) in Hindi for CBSE Board. It has all the notes in simple language and point to point explanation for the students having History as a subject and studying in class 12th from CBSE Board in Hindi Medium. All the students who are going to appear in Class 12 CBSE Board exams of this year can better their preparations by studying these notes.

यह पोस्ट सीबीएसई बोर्ड के लिए हिंदी में कक्षा 12 इतिहास अध्याय 3 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग के विस्तृत नोट्स के बारे में है। इसमें सभी नोट्स सरल भाषा में हैं और सीबीएसई बोर्ड से हिंदी माध्यम से 12वीं कक्षा में एक विषय के रूप में इतिहास पढ़ने वाले छात्रों के लिए उपयोगी है। वे सभी छात्र जो इस वर्ष की कक्षा 12 सीबीएसई बोर्ड परीक्षा में शामिल होने जा रहे हैं, इन नोट्स को पढ़कर अपनी तैयारी बेहतर कर सकते हैं।

BoardCBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 12
SubjectHistory
Chapter no.Chapter 3
Chapter Nameबंधुत्व, जाति तथा वर्ग (Kinship, Caste and Class)
CategoryClass 12 History Notes in Hindi
MediumHindi
Class 12 History Chapter 3 Bandhutav, jati tatha varg in Hindi
Class 12th (History) Ch 3 (Kinship, Caste and Class) in Hindi | Latest Syllabus 2021 | बंधुत्व, जाति तथा वर्ग | Part – 1 |
Class 12th (History) Ch 3 (Kinship, Caste and Class) in Hindi | Latest Syllabus 2021 | बंधुत्व, जाति तथा वर्ग | Part – 2 |
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2 बंधुत्व, जाति तथा वर्ग

महाभारत

महाभारत एक गतिशील महाकाव्य है जिसमें कौरव और पांडवों के बीच कुरुक्षेत्र में हुए युद्ध का वर्णन है

महाभारत की रचना

  • शुरुआत में महाभारत में लगभग 8800 श्लोक थे पर समय के साथ-साथ यह संख्या बढ़कर एक लाख तक हो गई
  • ऐसा माना जाता है कि महाभारत का निर्माण हजार सालों में किया गया
  • इन दोनों बातों को ध्यान में रख कर एक बात स्पष्ट होती है कि महाभारत का निर्माण किसी एक व्यक्ति द्वारा नहीं किया गया बल्कि समय-समय पर इसमें नई नई रचनाएं जुड़ती गई

महाभारत के लेखक

  • प्राचीन समय में

    • महाभारत का मूल लेखक भाट सारथी को माना जाता है
    • भाट सारथी
      • वे लोग थे जो योद्धाओं के साथ युद्ध भूमि में जाते थे
      • फिर वह युद्ध भूमि में घटित हर घटना का वर्णन लिखा करते थे
    • महाभारत का मुख्य साहित्य लेखक वेदव्यास को माना जाता है
    • वेदव्यास ने ही महाभारत को साहित्यिक रूप दिया
    • लगभग 200 ईसा पूर्व इसमें मनुस्मृति के कुछ अंशों को जोड़ा गया
    • और इसके बाद इसमें श्री कृष्ण और भागवत गीता के उपदेशों को शामिल किया गया
    • महाभारत का निर्माण काल 500 ईसा पूर्व से 500 ईसवी माना जाता है
    • पुराने समय में इसे जयसंहिता कहा जाता था
  • आधुनिक समय में

    • सन 1919 में वीएस सुखतांकर  (संस्कृत के विद्वान) ने महाभारत पुनर्रचना का जिम्मा उठाया
    • इस परियोजना में उन्होंने देश में उपलब्ध महाभारत संबंधित सभी पांडुलिपियों और जानकारियों को इकट्ठा किया और उनके आधार पर महाभारत बनाई
    • इस कार्य को पूर्ण करने में उन्हें लगभग 47 वर्ष का समय लगा
    • इसका प्रकाशन 13000 पेज में फैले अनेक ग्रंथ खंडों में किया गया
  • परिवार

  • परिवार समाज की महत्वपूर्ण संस्थाओं में से एक था
  • संस्कृत ग्रंथों में परिवार को कुल कहा जाता था
  • परिवार की विशेषताएं
    • परिवार के सभी सदस्यों में संसाधनों का बंटवारा
    • मिल जुल कर रहना
    • आपसी सहयोग
    • परिवार में उपलब्ध संसाधनों का उपयो

पितृवंशिकता

  • इस व्यवस्था के अनुसार समाज में पुरुष को अधिक महत्व दिया जाता है
  • इस परंपरा के अनुसार
    • घर का मुखिया पुरुष होता है
    • सभी मुख्य फैसले लेने की शक्ति और उसके पास होती है
    • पिता की मृत्यु के बाद संपत्ति पर पुत्र का अधिकार होता है
    • पुत्र ना होने की स्थिति में भाई या बंधु को उत्तराधिकारी बनाया जाता है
    • कुछ विशेष परिस्थितियों में सत्ता स्त्रियों को भी दी जाती थी

धर्म सूत्र तथा धर्म शास्त्र

  • समाज के बदलती हुई परिस्थितियों और लोगों के बीच बढ़ते मेलजोल को देखते हुए ब्राह्मणों ने कुछ नियमों और कायदे कानूनों को बनाया
  • इन कायदे कानूनों और नियमों के समूह को आचार संहिता कहा जाता था
  • इनका संकलन 520 ईसाई धर्म सूत्र तथा धर्म शास्त्र नामक संस्कृत ग्रंथों में किया गया
  • इनमें सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ मनुस्मृति था
  • इसका संकलन 200 ईसा पूर्व से 200 ईस्वी के बीच हुआ

धर्म शास्त्र और सूत्रों में वर्णित बातें

  • गौत्र
  • विवाह के प्रकार
  • वर्ण व्यवस्था
  • अन्य वर्ण
  • जातीय व्यवस्था
  • संपत्ति

गोत्र

  • हिंदू धर्म में मुख्य रूप से ऐसा माना जाता है कि प्रत्येक हिंदू किसी ना किसी एक ऋषि की संतान है
  • इन्हीं ऋषि यों के नाम के अनुसार गोत्र निर्धारित किया जाता है
  • हिंदू धर्म में सभी की उत्पत्ति मुख्य रूप से 7 राशियों से मानी जाती है
  • इसीलिए शुरुआत में गौत्रों की संख्या 7 थी
  • भविष्य में जाकर इसके अंदर एक और गोत्र अगस्त्य जोड़ा गया और इस तरीके से गोत्र की संख्या 8 हो गई
  • समय के साथ-साथ इन गौत्रों की संख्या बढ़ती गई
  • इनका प्रचलन लगभग 1000 ईसा पूर्व के बाद से हुआ
  • मुख्य गौत्र

    • अत्रि
    • भार
    • भृगु
    • गौतम
    • कश्यप
    • वशिष्ठ
    • विश्वामित्र
    • अगस्त्य

गोत्र के नियम

  • समान गोत्र के सदस्य आपस में विवाह नहीं कर सकते क्योंकि ऐसा माना जाता है कि वह आपस में बहन भाई है
  • विवाह के बाद स्त्री को अपने पिता के गोत्र को बदलकर पति का गोत्र अपनाना पड़ता है

गौत्र के आधार पर विवाह के प्रकार

  • बहिर विवाह          –           एक गोत्र से दूसरे गोत्र में विवाह करने की पद्धति को बहिर विवाह कहा जाता था
  • अंतर विवाह          –           एक समान गोत्र, कुल या जाति के लोगों में विवाह की स्थिति को अंतर विवाह कहा जाता था
  • बहुपति प्रथा          –           यह वह स्थिति थी जिसमें एक स्त्री के अनेकों पति होते थे
  • बहु पत्नी विवाह     –           इस विवाह के अंदर एक ही पुरुष की अनेकों पत्नियां हुआ करती थी

विवाह के प्रकार

धर्म सूत्र और धर्म शास्त्रों के अनुसार आठ प्रकार के विवाह होते थे

  • ब्रह्म विवाह

    • `दोनों पक्षों की सहमति के साथ कन्या का विवाह करना ब्रह्म विवाह कहलाता है अरेंज मैरिज
  • देव विवाह

    • किसी धार्मिक अनुष्ठान के मूल्य के रूप में अपनी कन्या को दान में दे देना देव विवाह कहलाता है
  • अर्श विवाह

    • कन्या के माता-पिता को कन्या का मूल्य दहेज गोदान देकर कन्या से विवाह करना अर्श विवाह कहलाता है
  • प्रजापत्य विवाह

    • कन्या की सहमति के बिना उसका विवाह अभिजात्य वर्ग अर्थात उच्च वर्ग के वर से कर देना प्रजापत्य विवाह कहलाता है
  • गंधर्व विवाह

    • परिवार वालों की सहमति के बिना वर और कन्या का बिना किसी रीति-रिवाज के आपस में विवाह कर लेना गंधर्व विवाह कहलाता है
  • असुर विवाह

    • कन्या को खरीदकर विवाह कर लेना असुर विवाह कहलाता है
  • राक्षस विवाह

    • कन्या की सहमति के बिना उसका अपहरण करके जबरदस्ती विवाह कर लेना राक्षस विवाह कहलाता
  • पैशाच विवाह

    • कन्या की मदहोशी (गहन निद्रा, मानसिक दुर्बलता आदि) का लाभ उठा कर उससे शारीरिक सम्बंध बना लेना और उससे विवाह करना ‘पैशाच विवाह’ कहलाता है।   

इन विवाहों में से पहले चार विवाहों को सही माना जाता था जबकि बाकी के 4 विवाहों को गलत माना जाता था ऐसा माना जाता था कि जो लोग आखिर के 4 विवाह करते हैं वह ब्राह्मणों के नियमों का पालन नहीं करते और वह समाज से अलग है

वर्णो की उत्पत्ति

  • ब्राह्मणों के अनुसार सभी वर्णों की उत्पत्ति ब्रह्मा जी के शरीर के विभिन्न अंगों में से हुई है
  • इसी के आधार पर उस वर्ण के कार्यों का निर्धारण किया गया
  • ब्राह्मणों के अनुसार

    • ब्रह्मा जी के मुख से ब्राह्मणों की उत्पत्ति हुई
    • उनके कंधे एवं भुजाओं से क्षत्रियों की उत्पत्ति हुई
    • वैश्य की उत्पत्ति जांघो से बताई गई
    • शूद्रों की उत्पत्ति ब्रह्मा जी के पैरों से हुई

वर्ण व्यवस्था

  • धर्म सूत्र और धर्म शास्त्रों के अनुसार ब्राह्मणों ने समाज को 4 वर्णों में बांटा था
    • ब्राह्मण
    • क्षत्रिय
    • वैश्य
    • शूद्र

विभिन्न वर्णों के कार्य

इसी बटवारे के अनुसार इन सभी के काम का भी विभाजन किया गया था

  • ब्राह्मण

    • वेदों का अध्ययन करना, यज्ञ करना और करवाना, भिक्षा मांगना
  • क्षत्रिय

    • शासन करना, युद्ध करना, न्याय करना, दान दक्षिणा देना, लोगों को सुरक्षा प्रदान करना, यज्ञ करवाना, वेद पढ़ना आदि
  • वैश्य

    • कृषि, पशुपालन, व्यापार, वेद पढ़ना, यज्ञ करवाना, दान देना आदि
  • शूद्र

    • तीनों वर्णों की सेवा करना

अन्य वर्ग

  • ब्राह्मणों के अनुसार एक व्यक्ति की प्रतिष्ठा उसके जन्म के आधार पर निर्धारित की जाती थी ना कि उसकी योग्यता और काबिलियत के अनुसार
  • इसी कारणवश यह व्यवस्था विवादास्पद थी
  • ब्राह्मणों ने कुछ लोगों को इस वर्ण व्यवस्था से बाहर माना
  • उनके अनुसार दो प्रकार के कर्म होते थे
    • पवित्र कर्म

      • वह सभी कार्य जो 4 वर्ग के लोगों द्वारा किए जाते थे उन्हें पवित्र कर्म माना जाता था
    • दूषित कर्म

      • इसके अलावा अन्य कार्य जैसे कि शवों को उठाना अंतिम संस्कार करना गंदगी की सफाई करना आदि दूषित कर्म माने जाते थे
      • ऐसे सभी लोग जो यह दूषित कर्म किया करते थे उन्हें अस्पृश्य घोषित कर दिया गया
      • इन अस्पृश्य लोगो को ही चांडाल कहा जाता था

चाण्डालो की स्थिति (अछूत )

  • चांडाल ओं के बारे में मुख्य रूप से वर्णन मनुस्मृति में किया गया है
    • इसके अनुसार चांडाल को गांव से बाहर रहना पड़ता था
    • उन्हें रात में गांव में आने जाने की आज्ञा नहीं थी
    • वह लोगों के फेंके हुए बर्तनों और चीजों का इस्तेमाल किया करते थे
    • मृत शवों से उतार कर कपडे पहना करते थे
    • सभी शवों का अंतिम संस्कार उन्हीं के द्वारा किया जाता था
    • समाज द्वारा उन्हें अस्पृश्य माना जाता था
    • चांडाल को निंदनीय नजरों से देखा जाता था
    • उन्हें देख लेना भी पाप समझा जाता था
  • अन्य स्रोतों जैसे कि चीनी बौद्ध भिक्षु फा शी एन के अनुसार
    • गांव में आने से पहले चाण्डालो  को करताल बजाने पड़ते थे ताकि लोगों को उनके आने का पता चल जाए और वह सब अपने घर में चले जाए क्योंकि उस समय के लोगों के अनुसार चाण्डालो को देखना पाप होता था

जातीय व्यवस्था

  • समय के साथ-साथ कई ऐसे लोग सामने आए जो ब्राह्मणों द्वारा बनाई गई वर्ण व्यवस्था में समा नहीं पाए
  • इस स्थिति को देखते हुए ब्राह्मणों ने जाति व्यवस्था को बनाया
  • इन जातियों का निर्धारण व्यक्तियों द्वारा किए जा रहे कार्य के अनुसार होता था[
  • समय के साथ-साथ इन जातियों की संख्या बढ़ती गई और इनका निर्धारण भी जन्म के अनुसार किया जाता था
  • जैसे की
    • शिकारी
    • निषाद (जंगल में रहने वाले लोग)
    • कुम्हार
    • सुवर्णकार
  • ऐसे लोग जो उस समय संस्कृत नहीं बोल पाते थे उन्हें मलेच्छ कहा जाता था एवं हीनदृष्टि से देखा जाता था

संपत्ति पर अधिकार

  • संपत्ति पर अधिकार से अभिप्राय समाज में लोगों के पास उपलब्ध संसाधनों से है
  • संपत्ति पर अधिकार का अध्ययन दो आधारों पर किया जा सकता है

लैंगिक आधार पर

  • पिता की जायदाद पर सभी पुत्रों का बराबर का अधिकार होता था
  • सबसे बड़े पुत्र को संपत्ति का विशेष भाग दिया जाता था
  • माता पिता की संपत्ति पर पुत्री का कोई अधिकार नहीं होता था
  • स्त्री के विवाह के दौरान मिले उपहारों और धन को स्त्री धन कहा जाता था और इस पर स्त्री का पूर्ण अधिकार होता था
  • स्त्रीधन पर पति का कोई अधिकार नहीं होता था
  • पत्नियों द्वारा गुप्त रूप से धन इकट्ठा करना गलत माना जाता था

वर्ण के आधार पर

  • वर्ण के आधार पर संपत्ति के बंटवारे में अत्याधिक विभिन्नता थी
  • शूद्रों के पास केवल एक ही कार्य था वह था बाकी के तीन वर्णों की सेवा करना इसीलिए अधिकतर वह गरीब हुआ करते थे
  • ब्राह्मण और क्षत्रिय सबसे धनवान हुआ करते थे क्योंकि ब्राह्मणों की समाज में विशेष स्थिति हुआ करती थी और क्षत्रिय शासन कार्य में लगे होते थे
  • वैश्य के पास अनेकों कार्यों के चुनाव का अक्सर होता था पर समाज में उनकी स्थिति उनके कार्यों के अनुसार ही होती थी उदाहरण के लिए
  • किसान मुख्य रुप से गरीब हुआ करते थे
  • जबकि व्यापारी अमीर हुआ करते थे
  • संपत्ति के मामले में चांडाल ओं की स्थिति बहुत खराब थी वह दूसरों के द्वारा त्यागी गई चीजों पर निर्भर रहते थे

क्या सभी लोग ब्राह्मणों द्वारा बनाए गए नियमों का पालन किया करते थे?

  • देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग व्यवस्था होने के कारण हर जगह ब्राह्मणवादी व्यवस्था को नहीं माना जाता था
  • उदाहरण के लिए
  • सातवाहन शासक गोत्र व्यवस्था का पालन नहीं करते थे
  • इन राजाओं की पत्नियों ने विवाह के बाद भी अपने पिता के गोत्र को अपनाया
  • सातवाहन शासकों द्वारा बहु पत्नी प्रथा को भी माना जाता था
  • इनकी कुछ रानियां सामान गोत्र की भी हुआ करती थी
  • दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में अंतर विवाह पद्धति को भी अपनाया जाता था
  • जिसके अनुसार एक ही गोत्र अथवा जाति से संबंधित लोगों के बीच विवाह किया जाता था

समाज में स्त्रियों का महत्व

  • ब्राह्मणवादी व्यवस्था के अंतर्गत स्त्रियों को ज्यादा अधिकार नहीं दिए जाते थे
  • जबकि देश में कई ऐसे क्षेत्र थे जहां पर स्त्रियों का समान रूप से सम्मान किया जाता
  • सातवाहन शासकों को उनकी माता के नाम से जाना जाता था
  • सातवाहन शासकों के दौर में औरतों का भी संपत्ति पर अधिकार हुआ करता था और वह भी संपत्ति का उपयोग अपने अनुसार किया करती थी

क्या केवल छत्रिय ही राजा हुआ करते थे ?

  • ब्राह्मणवादी व्यवस्था के अनुसार केवल क्षत्रियों को ही राजा बनने का अधिकार था परंतु वास्तविकता इससे कहीं अलग थी
  • उदाहरण के लिए
  • चंद्रगुप्त मौर्य

    • बौद्ध और जैन ग्रंथों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि चंद्रगुप्त मौर्य क्षत्रिय थे
    • जबकि ब्राह्मणों के अनुसार यह निम्न कुल के थे
    • अगर इस स्थिति में ब्राह्मणों की बात को सही माना जाए तो इससे यह स्पष्ट होता है कि केवल क्षत्रिय ही राजा नहीं बना करते थे बल्कि अन्य कुल के लोग भी राजा बना करते थे
  • शक शासक

    • यह मध्य एशिया से भारत में आए और भारत में शासन स्थापित किया
    • इन्हें खानाबदोश (खानाबदोश उस व्यक्ति को कहा जाता है जो खाने की खोज में एक जगह से दूसरी जगह घूमता फिरता रहता है) कहा जाता था
    • शक शासकों भी निम्न कुल के थे परंतु फिर भी यह राजा के पद पर थे
  • शुंग और कण्व

    • यह मौर्य के उत्तराधिकारी थे
    • इन्हें ब्राह्मण माना जाता था और यह भी आगे जाकर शासक बने
  • सातवाहन शासक

    • सातवाहन शासक स्वयं को एक ऐसा अनूठा ब्राह्मण कहते थे जो कि क्षत्रियों का हनन करते हैं
    • तो इस कथन के अनुसार सातवाहन शासक ब्राह्मण थे एवं फिर भी वह राजा बने

उपरोक्त उदाहरणों से यह स्पष्ट है कि केवल क्षत्रिय ही राजा नहीं बना करते थे बल्कि अन्य वर्गों के लोग भी राजा हुआ करते थे

 

बौद्ध धर्म के अनुसार सामाजिक विषमता का कारण

  • बौद्ध धर्म के मुख्य ग्रंथ सुत्तपिटक के अनुसार
  • शुरुआत में मानव पूरी तरह विकसित नहीं था
  • इसी वजह से वह प्रकृति से सिर्फ उतना ही ग्रहण करता था जितनी उसे एक समय में आवश्यकता होती थी
  • पर समय के साथ-साथ यह व्यवस्था बदली और मनुष्य लालची और कपटी हो गया और सभी संसाधनों पर नियंत्रण करने की कोशिश करने लगा
  • इस स्थिति को देखते हुए उस समय के लोगों ने विचार किया कि क्या हम किसी ऐसे व्यक्ति को चुन सकते हैं
  • जो कि सही बातों पर क्रोधित हो और ऐसे व्यक्तियों को सजा दे सके जो कि समाज में बुराइयां फैला रहा है
  • उसके इस कार्य के बदले हम उसे चावल का अंश देंगे
  • यहां पर राजा के चुनाव की बात की गई है जो कि देखेगा कि समाज में स्थिति सही तरीके से चलती रहे
  • चावल के अंश का मतलब राजा को दिए वाले दिए जाने वाले कर है

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