पाठ – 12
भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ
This post is about the detailed notes of class 12 Geography Chapter 12 bhaugolik pariprekshy mein chayanit kuchh mudde evan samasyaen (Geographical Perspective on Selected Issues and Problems) in Hindi for CBSE Board. It has all the notes in simple language and point to point explanation for the students having Geography as a subject and studying in class 12th from CBSE Board in Hindi Medium. All the students who are going to appear in Class 12 CBSE Board exams of this year can better their preparations by studying these notes.
यह पोस्ट सीबीएसई बोर्ड के लिए हिंदी में कक्षा 12 भूगोल अध्याय 12 भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ के विस्तृत नोट्स के बारे में है। इसमें सभी नोट्स सरल भाषा में हैं और सीबीएसई बोर्ड से हिंदी माध्यम से 12वीं कक्षा में एक विषय के रूप में भूगोल पढ़ने वाले छात्रों के लिए उपयोगी है। वे सभी छात्र जो इस वर्ष की कक्षा 12 सीबीएसई बोर्ड परीक्षा में शामिल होने जा रहे हैं, इन नोट्स को पढ़कर अपनी तैयारी बेहतर कर सकते हैं।
Board | CBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Geography |
Chapter no. | Chapter 12 |
Chapter Name | भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ (Geographical Perspective on Selected Issues and Problems) |
Category | Class 12 Geography Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
पर्यावरण प्रदूषण
- स्वच्छ तत्वों में अनावांछित एवं अनावश्यक तत्वों का मिल जाना प्रदूषण कहलाता है
- पर्यावरणीय प्रदूषण से अभिप्राय मानव गतिविधियों द्वारा अपशिष्ट उत्पादों, पदार्थों एवं ऊर्जा का उत्पन्न होना है
- पर्यावरणीय प्रदूषण को प्रदूषको एवं उनके माध्यम के आधार पर निम्नलिखित अलग-अलग भागो में वर्गीकृत किया जाता है
- जल प्रदूषण
- वायु प्रदुषण
- ध्वनि प्रदूषण
- भूमि प्रदूषण
जल प्रदूषण
- जल प्रदूषण व स्थिति है जिसमें स्वच्छ जल में कुछ अनावश्यक एवं आनावांछित तत्व घुल जाते हैं
- जल प्रदूषण का मुख्य कारण तेजी से बढ़ती आबादी, उद्योगों का विस्तार एवं पानी का अंधाधुंध उपयोग है
- जल प्रदूषण के कारण जल मनुष्य के प्रयोग के लिए उपयोगी नहीं रहता
जल प्रदूषण के स्रोत
- जल प्रदूषण के मुख्य रूप से दो स्त्रोत है
प्राकृतिक
- प्राकृतिक रूप से भूस्खलन, पौधों एवं जानवरों का क्षय और अपघटन आदि जल को प्रदूषित करते हैं
- मानव की अनेकों गतिविधियां उदाहरण के लिए औद्योगिक गतिविधि, कृषि एवं कई सांस्कृतिक गतिविधियां जल प्रदूषण के लिए उत्तरदाई हैं
गंगा और यमुना नदियों में प्रदूषण के स्रोत
- गंगा और यमुना नदी भारत की कुछ मुख्य एवं सबसे प्रदूषित नदियों में से एक है
- इन नदियों में प्रदूषण का मुख्य कारण औद्योगिक अपशिष्ट, घरेलू अपशिष्ट एवं सीवेज बहाव है
गंगा नदी
- गंगा नदी उत्तर प्रदेश, बिहार एवं पश्चिम बंगाल आदि राज्यों से होकर बहती है
- वर्तमान दौर में कानपुर एवं वाराणसी के आसपास के क्षेत्रों में गंगा नदी सबसे अधिक प्रदूषित है
यमुना नदी
- यमुना नदी मुख्य रूप से दिल्ली एवं उत्तर प्रदेश से होकर बहती है
- यह नदी मुख्य रुप से दिल्ली, मथुरा एवं आगरा आदि क्षेत्रों में सबसे अधिक प्रदूषित है
गंगा एवं यमुना नदी के प्रदूषित होने के मुख्य कारण
- इन नदियों में बड़ी मात्रा में औद्योगिक अपशिष्टों जैसे कि अपशिष्ट जल, जहरीली गैसे, रासायनिक अवशेष, धूल, धुआं आदि बहाया जाता है जिस वजह से इन नदियों के प्रदूषण में वृद्धि दर्ज की गई है
- कृषि के अंदर उपयोग किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के रसायनों जैसे कि उर्वरक, कीटनाशक आदि के अधिक प्रयोग के कारण भूजल प्रदूषित होता है साथ ही साथ सतही जल में नाइट्रेट की मात्रा बढ़ती है
- इसके अलावा सांस्कृतिक गतिविधियां जैसे की तीर्थ यात्रा, पर्यटन, धार्मिक मेले आदि भी नदियों के प्रदूषण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं
जल प्रदूषण के कारण उत्पन्न समस्याएं
- उपरोक्त कारणों से प्रदूषित जल मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उपयोगी नहीं होता जिस वजह से कई बड़े नगर जल की कमी की समस्या का सामना कर रहे है
- इसके प्रयोग से कई बीमारियों जैसे कि दस्त, हेपेटाइटस एवं आंतों के कीड़े होने की संभावना बनी रहती है
वायु प्रदूषण
- वायु में धूल, धुएं, गैस, कोहरे, गंध, या वाष्प जैसे प्रदूषकों की मात्रा में वृद्धि होना वायु प्रदूषण कहलाता है
- वायु प्रदूषण मनुष्य, वनस्पतियों एवं जीवो के लिए अत्यंत हानिकारक होता है
- इसकी वजह से श्वसन संबंधी बीमारियां होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं
वायु प्रदूषण के कारण
- वर्तमान दौर में वायु प्रदूषण मुख्य रूप से जीवाश्म इंधनो के दहन, खनन क्रिया, एवं उद्योगों द्वारा सल्फर, नाइट्रोजन, कार्बन डाई आक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी गैसों के उत्सर्जन के कारण होता है
वायु प्रदूषण के प्रभाव
- वर्तमान दौर में वायु प्रदूषण विश्व के सामने उपस्थित सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है क्योंकि बढ़ता वायु प्रदूषण श्वसन संबंधित बीमारियों का सबसे बड़ा कारण है
वायु प्रदूषण के प्रभाव निम्नलिखित हैं
- वायु प्रदूषण के कारण श्वसन तंत्र, तंत्रिका तंत्र एवं संचार प्रणाली संबंधित कई बीमारियों में वृद्धि होती है
- सर्दियों में उत्पन्न होने वाला धुँए के रंग का कोहरा भी वायु प्रदूषण का ही परिणाम है
- वायु प्रदूषण के कारण अम्लीय वर्षा में वृद्धि होती है
- साथ ही साथ वायु प्रदूषण के कारण विश्व उष्णन की प्रक्रिया में भी तेज़ी आ रही है।
ध्वनि प्रदूषण
- एक ऐसे प्रकार का शोर या ध्वनि जो मनुष्य के लिए असुविधाजनक हो ध्वनि प्रदूषण कहलाता है
- ध्वनि प्रदूषण के कई कारण हो सकते हैं उदाहरण के लिए कारखाने, मशीनों द्वारा निर्माण, वाहन, हवाई जहाज आदि
- उपरोक्त के अलावा कई अन्य स्त्रोत जैसे कि सायरन, विभिन्न त्योहार, गाड़ियों के हॉर्न, लाउडस्पीकर आदि भी ध्वनि प्रदूषण के मुख्य कारणों में से एक है
ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव
- ध्वनि प्रदूषण के कारण मुख्य रूप से चिंता, तनाव और कई अन्य मानसिक समस्याओं में वृद्धि होती है
- ध्वनि प्रदुषण की स्थिति में मनुष्य असहज महसूस करता है जिस वजह से कई अन्य प्रकार की समस्याओं की संभावना बढ़ जाती है
भूमि
भूमि :- का क्षरण सीमित उपलब्धता और भूमि की गुणवत्ता में गिरावट, दोनों ही कृषि भूमि पर दबाव डालने के लिए जिम्मेदार हैं। मिट्टी का कटाव, जल जमाव, लवणीकरण और भूमि का क्षारीयकरण भूमि क्षरण का कारण बनता है जिससे भूमि की उत्पादकता में गिरावट आती है। सरल शब्दों में, भूमि की उत्पादक क्षमता में अस्थायी या स्थायी गिरावट को भूमि क्षरण के रूप में जाना जाता है। सभी निम्नीकृत भूमि को बंजर भूमि नहीं माना जा सकता है। लेकिन यदि निम्नीकरण की प्रक्रिया को नियंत्रित नहीं किया गया तो निम्नीकृत भूमि को बंजर भूमि में परिवर्तित किया जा सकता है। प्राकृतिक और मानव निर्मित प्रक्रियाएं, दोनों ही भूमि की गुणवत्ता को कम करती हैं।
बंजर भूमि का वर्गीकरण
राष्ट्रीय सुदूर संवेदन एजेंसी (NRSA) :- यह भारत में बंजर भूमि के वर्गीकरण के लिए जिम्मेदार एक संगठन है। यह उन प्रक्रियाओं के आधार पर रिमोट सेंसिंग तकनीकों का उपयोग करके बंजर भूमि को वर्गीकृत करता है जिन्होंने उन्हें बनाया है। :-
- प्राकृतिक एजेंटों के कारण बंजर :- भूमि, गलीड / उबड़-खाबड़ भूमि, रेगिस्तानी या तटीय रेत, बंजर चट्टानी क्षेत्र, खड़ी ढलान वाली भूमि, हिमनद क्षेत्र, आदि प्राकृतिक एजेंटों के कारण होने वाली बंजर भूमि हैं। इन्हें प्राकृतिक एजेंटों के कारण बंजर भूमि माना जाता है।
- प्राकृतिक और साथ ही मानव :- कारकों के कारण बंजर भूमि जलभराव और दलदली क्षेत्र, लवणता और क्षारीयता से प्रभावित भूमि और बिना स्क्रब वाली भूमि जो प्राकृतिक और साथ ही मानवीय कारकों से अपमानित होती हैं, इस श्रेणी में शामिल हैं।
- मानव निर्मित प्रक्रियाओं के कारण होने वाली बंजर भूमि :- खेती के क्षेत्र को स्थानांतरित करना, वृक्षारोपण फसलों के तहत अपमानित भूमि, अपमानित वन, अपमानित चरागाह और खनन और औद्योगिक बंजर भूमि कुछ प्रकार की बंजर भूमि हैं जो मानव क्रिया के कारण खराब हो जाती हैं।
भूमि प्रदूषण
- मानवीय गतिविधियों के कारण बड़े स्तर पर कचरे का उत्सर्जन होता है जो भूमि प्रदूषण का मुख्य कारण है
- कचरे के अलावा कृषि कार्यों में प्रयोग किए जाने वाले रसायनों की वजह से भी भूमि प्रदूषण में वृद्धि होती है
- रसायनों एवं कचरे के कारण मिट्टी की उपजाऊता भी कम हो जाता है
शहरी कचरे का निपटान
- बड़े-बड़े शहरों में अत्यधिक भीड़ भाड़, बढ़ती आबादी एवं कचरा निपटान की व्यवस्था ना होने के कारण कचरे की समस्या बढ़ती जा रही है
- बड़े-बड़े शहरों में प्रतिदिन बड़ी मात्रा में कचरे का उत्सर्जन होता है परंतु उसका पूर्ण रूप से निपटान नहीं किया जाता जिस वजह से पर्यावरण प्रदूषण में वृद्धि होती है
- इस कचरे के अंदर मुख्य रूप से ठोस अपशिष्ट जैसे की धातु के छोटे टुकड़े, प्लास्टिक के कंटेनर, पॉलिथीन बैग, फ्लॉपी, सीडी, टूटे कांच के सामान आदि शामिल होते हैं
- महानगरों की तुलना में छोटे शहरों एवं कस्बों में कचरे का निपटान एक अधिक बड़ी समस्या है
- बड़े महानगरों जैसे कि मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बैंग्लोर आदि का 90% से अधिक कचरा सफलतापूर्वक एकत्र करके निपटा दिया जाता है परंतु छोटे कस्बों का 30 से 40% कचरा एकत्र करके ठीक से निपटाया नहीं जाता
- समय के साथ-साथ यह कचरा सड़कों, सार्वजनिक मैदानों, पार्को एवं गलियों में जमा हो जाता है और अनेको स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनता है
ठोस कचरे के अनुचित प्रबंधन के प्रभाव
- मानवीय स्वास्थ्य के लिए हानिकारक
- दुर्गंध की समस्या
- कई बीमारियों जैसे कि टाइफाइड, डिप्थीरिया, दस्त, मलेरिया, हैजा आदि का मुख्य कारण
- असुविधा
- कई अन्य प्रकार के प्रदूषण का कारण
- अपघटन के कारण मीथेन गैस का उत्सर्जनकता है।
ग्रामीण-शहरी प्रवास
- एक व्यक्ति का एक क्षेत्र से किसी अन्य क्षेत्र में जाना प्रवास कहलाता है
- प्रवास मुख्य रूप से गंतव्य क्षेत्र की विशेषताओं एवं उद्गम क्षेत्र की कमियों के कारण किया जाता है
- ग्रामीण क्षेत्र से लोगों का शहरी क्षेत्र की ओर जाना ग्रामीण शहरी प्रवास कहलाता है ऐसा मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों की कमियों एवं शहरी क्षेत्रों की विशेषताओं के कारण होता है
- प्रवास की इस धारा में मुख्य रूप से दैनिक वेतन प्राप्त करने वाले कर्मचारी शामिल होते हैं उदाहरण के लिए सब्जी बेचने वाला, बढ़ई, मजदूर आदि
- गांव में रह रहे अपने परिवार का भरण पोषण करने के लिए इन्हें दिन रात मेहनत करनी पड़ती है एवं कई अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है
- नए क्षेत्रों में वहां के लोगों एवं संस्कृति के साथ मेलजोल स्थापित करने में समस्या का सामना करना पड़ता है
- इस धारा में मुख्य रूप से पुरुषों द्वारा रोज़गार की तलाश में प्रवास किया जाता है जिस वजह से गांव में महिलाये बच्चे एवं बुजुर्ग अकेले रह जाते हैं और महिलाओं को मुख्य रूप से पूरे परिवार की देखभाल करनी पड़ती है जिस वजह से उन पर दबाव बढ़ता है
ग्रामीण शहरी प्रवास के कारण
- रोजगार की तलाश
- जीवन की बेहतर दशाएं
- उच्च स्तरीय सुविधाएं
- बेहतर अवसर
- ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार की अस्थिरता
विश्व में शहरीकरण
- 2011 के आंकड़ों के अनुसार विश्व की आबादी लगभग 7 अरब के आसपास है और इस आबादी का लगभग 54% हिस्सा शहरी क्षेत्रों में रहता है
- शहरी आबादी के पास मूलभूत सुविधाएं एवं बुनियादी ढांचा उपलब्ध होता है जो उन्हें जीवन में बेहतर अवसर प्राप्त करने में मदद करता है
- एक अनुमान के अनुसार 2050 तक विश्व की लगभग दो-तिहाई जनसंख्या शहरी क्षेत्रों में निवास करेगी
नगरीय जनसंख्या
- वह जनसंख्या जो नगरों में निवास करती है नगरीय जनसंख्या कहलाती है
- बेहतर सुविधाएं, अवसर एवं ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में होने वाले प्रवास के कारण शहरों की जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है
शहरों की जनसंख्या में वृद्धि के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं
- उच्च जन्म दर
- प्रवास
- ग्रामीण बस्तियों को शामिल करने के लिए शहरी क्षेत्रों का पुनर्वर्गीकरण।
- बेहतर सुविधाएं एवं अवसर
- जीवन की बेहतर दशाएं आदि
मलिन बस्तियाँ
ग्रामीण क्षेत्रों से बड़ी संख्या में शहरी क्षेत्रों की ओर होने वाले जनसँख्या के प्रवास के कारण शहरों में कई ऐसी बस्तियाँ विकसित हुई है जहां पर बुनियादी ढांचा, मूलभूत सुविधाएं एवं रहने की दशा अत्यंत निम्न है ऐसी बस्तियों को मलिन बस्तियाँ कहा जाता है
मलिन बस्तियों की विशेषताएं
- मलिन बस्तियाँ मुख्य रूप से वे इलाके हैं जहां पर बुनियादी ढांचा, मूलभूत सुविधाएं एवं रहने की दशा अत्यंत निम्न है
- इन बस्तियों में बड़ी संख्या में लोग रहते हैं जिस वजह से बहुत छोटे-छोटे एवं पास पास मकान बने होते हैं
- सड़के बहुत पतली होती हैं एवं छोटे से क्षेत्र में बहुत बड़ी संख्या मैं लोग निवास करते हैं
- इन बस्तियों में रहने वाले लोग मुख्य रूप से शहरी क्षेत्रों में काम करने वाले मजदूर एवं अन्य दैनिक वेतन कमाने वाले लोग हैं
- इन बस्तियों में कई बीमारियों का प्रभाव भी बड़े रूप में देखा जा सकता है इसका मुख्य कारण बस्तियों में स्वच्छता का अभाव एवं जीवन की निम्न दशाएं हैं
- गरीबी के कारण इन बस्तियों में नशीली दवाओं का उपयोग शराब का सेवन एवं अपराध आदि एक सामान्य बात है
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