जीवों में विविधता Notes || Class 9 Science Chapter 7 in Hindi ||

पाठ – 7

जीवों में विविधता

In this post we have given the detailed notes of class 9 Science chapter 7 Diversity in Living Organismsin Hindi. These notes are useful for the students who are going to appear in class 9 board exams.

इस पोस्ट में कक्षा 9 के विज्ञानके पाठ 7 जीवों में विविधता के नोट्स दिये गए है। यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए आवश्यक है जो इस वर्ष कक्षा 9 में है एवं विज्ञानविषय पढ़ रहे है।

BoardCBSE Board, UP Board, JAC Board, Bihar Board, HBSE Board, UBSE Board, PSEB Board, RBSE Board, CGBSE Board, MPBSE Board
TextbookNCERT
ClassClass 9
SubjectScience
Chapter no.Chapter 7
Chapter Nameजीवों में विविधता (Diversity in Living Organisms)
CategoryClass 9 Science Notes in Hindi
MediumHindi
Class 9 Science Chapter 7 जीवों में विविधता Notes in Hindi
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3 पाठ 7 जीवों में विविधता

पाठ 7 जीवों में विविधता

जीवों का वर्गीकरण

जीवों में विविधता:सभी जीवधारी किसी न किसी रूप में भिन्न हैं| कोई आवास के आधार पर, कोई आकार के आधार पर, जैसे – एक अति सूक्ष्म बैक्टीरिया और दूसरी ओर 30 मीटर लंबे ह्वेल या विशाल वृक्ष, जीवन-काल के आधार पर, ऊर्जा ग्रहण करने की विधि के आधार पर जीवों में भिन्नता पाई जाती है| जीवों में इन्ही भिन्नताओं को विविधता कहते हैं|

वर्गीकरण का लाभ:

  • (i) जीवों का जैव विकास का अध्ययन करने में आसानी हो जाता है|
  • (ii) जीवों में विशेष लक्षणों को समझने में आसानी हो जाता है|
  • (iii) इससे जीवों को पहचानने में मदद मिलती है|
  • (iv) यह विभिन्न जीवों के समूहों के बीच संबंध स्थापित करने में मदद मिलती है|
  • (v) एक जीव के अध्ययन करने से उस समूह के सभी जीवों के बारे में पता लग जाता है|

वर्गीकरण का आधार:

(i) जीवों में उपस्थित उनकी समानताओं के आधार पर एक समूह बनाया गया है और विभिन्नताओं के आधार पर उन्हें अलग रखा गया है|

(ii) जीवों के वर्गीकरण का सबसे पहला आधारभुत लक्षण जीवों की कोशिकीय संरचना और कार्य है|

(iii) उसके बाद जैसे – एककोशिकीय एवं बहुकोशिकीय जीव, फिर कोशिका भित्ति वाले जीव और कोशिका भित्ति रहित वाले जीव फिर प्रकाश संश्लेषण करने वाले जीव या प्रकाश संश्लेषण नहीं करने वाले जीव को अलग रखा गया है|

वर्गीकरण और जैव विकास:

सभी जीवधरियों को उनकी शारीरिक संरचना और कार्य के आधर पर पहचाना जाता है और उनका वर्गीकरण किया जाता है। शारीरिक बनावट में कुछ लक्षण अन्य लक्षणों की तुलना में ज्यादा परिवर्तन लाते हैं। इसमें समय की भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अतः जब कोई शारीरिक बनावट अस्तित्व में आती है, तो यह शरीर में बाद में होने वाले कई परिवर्तनों को प्रभावित करती है।

मूललक्षण:शरीर की बनावट के दौरान जो लक्षण पहले दिखाई पड़ते हैं, उन्हें मूल लक्षण के रूप में जाना जाता है।

जैव-विकास:अब तक जीवों में जो भी निरंतर परिवर्तन हुए है वे सभी परिवर्तन उस प्रक्रिया के कारण हुए है जो उनके बेहतर जीवन के लिए आवश्यक थे|

अर्थात जीवों के बेहतर जीवन यापन के लिए उनमें जो भी परिवर्तन होने चाहिए वही परिवर्तन हुए है जीवों में यह परिवर्तन ही जैव-विकास कहलाता है|

जैव-विकास की अवधारणा:

जीवों में समय-समय पर जो उनके बेहतर जीवन-यापन के लिए जो परिवर्तन होते है जिसके कारण कोई जीवन नयी परिस्थिति में अपनी उत्तरजीविता को बनाये रखता है, यही जैव-विकास है|

जैव विकास की इस अवधारणा को सबसे पहले चाल्र्स डार्विन ने 1859 में अपनी पुस्तक ‘‘दि ओरिजिन ऑफ़ स्पीशीश’’ में दिया।

जैव-विकास के अवधारणा के आधार पर जीवों के प्रकार:

(1) आदिम जीव:कुछ जीव समूहों की शारीरिक संरचना में प्राचीन काल से लेकर आज तक कोई खास परिवर्तन नहीं हुआ है। उन्हें आदिम जीव (Primitive) कहते है|

(2) उन्नत या उच्च जीव:कुछ जीव समूहों की शारीरिक संरचना में पर्याप्त परिवर्तन
दिखाई पड़ते हैं। उन्हें उन्नत (Advanced) जीव कहते हैं|

व्हिटेकर द्वारा प्रस्तुत जीवों के पाँच जगत निम्नलिखित है:

  • मोनेरा (Monera)
  • प्रॉटिस्टा (Protista)
  • फंजाई (Fungi)
  • प्लान्टी (Plantee)
  • एनिमेलिया (Animelia)

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1. मोनेरा जगत (Monera Kingdom):

मोनेरा जगत के जीवों के लक्षण:

(i) इन जीवों में संगठित केन्द्रक और कोशिकांग नहीं होते हैं|

(ii) इनका शरीर बहुकोशिक नहीं होते हैं|

(iii) कुछ जीवों में कोशिका भित्ति पाई जाती है और कुछ जीवों में नहीं पाई जाती है|

(iv) इनकी कोशिका प्रोकैरियोटिक कोशिका होती है|

(v) ये स्वपोषी एवं बिषमपोषी दोनों हो सकते है|

उदाहरण:जीवाणु, नील-हरित शैवाल अथवा सयानोबैक्टीरिया, माइकोप्लाज्मा आदि|

2. प्रॉटिस्टा जगत (Protista Kingdom):

प्रॉटिस्टा जगत के जीवों के लक्षण:

(i) इस जगत के जीव एककोशिक, यूकैरियोटिक होते हैं|

(ii) कुछ जीवों में गमन (movement) के लिए सिलिया और फ्लैजेला नामक संरचना पाई जाती है|

(iii) ये स्वपोषी एवं विषमपोषी दोनों होते हैं|

उदाहरण: एककोशिक शैवाल, डाईएटम और प्रोटोजोआ आदि|

3. फंजाई जगत (Fungi Kingdom):

फंजाई जगत के जीवों के लक्षण:

(i) ये विषमपोषी यूकैरियोटिक जीव होते हैं|

(ii) ये मृतजीवी होते हैं जो अपना पोषण सड़े-गले कार्बोनिक पदार्थों से करते है|

(iii) इनमें से कई जीव बहु कोशिक क्षमता वाले होते हैं|

(iv) फंजाई अथवा कवक में काइटिन नामक जटिल शर्करा की बनी हुई कोशिका भित्ति पाई जाती है।

उदाहरण: यीस्ट और मशरूम।

जगत (Plantae Kingdom):

प्लांटी जगत के जीवों के लक्षण:

(i) इनमें कोशिका भित्ति पाई जाती है|

(ii) ये बहुकोशिक यूकैरियोटिक जीव हैं|

(iii) ये स्वपोषी जीव हैं और प्रकाश-संश्लेषण के लिए क्लोरोफिल का उपयोग करते हैं|

(iv) इस वर्ग में सभी हरे पौधों को रखा गया है|

प्लांटी जगत के जीवों का वर्गीकरण:

प्लांटी जगत के जीवों को निम्न आधार पर वर्गीकृत किया गया है|

(i) पादप शरीर के प्रमुख घटक पूर्णरूपेण विकसित एवं विभेदित हैं, अथवा नहीं।

(ii) वर्गीकरण का अगला स्तर पादप शरीर में जल और अन्य पदार्थों को संवहन करने वाले विशिष्ट उतकों (संवहन उतक) की उपस्थिति के आधार पर होता है।

(iii) पौधे में बीजधरण की क्षमता है अथवा नहीं।

(iv) बीजधरण की क्षमता है तो बीज फल के अंदर विकसित है, अथवा नहीं।

उपरोक्त आधार पर प्लांटी जगत को पाँच वर्गों में बाँटा गया है|

(1) थैलोफाइटा समुह

(2) ब्रायोफाइटा समुह

(3) टेरिड़ोंफाइटा समुह

(4) जिम्नोंस्पर्म समुह

(5) एन्जियोंस्पर्म समुह

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पादप जगत के जीवों के गुण

थैलोफाइटा समुह के जीवों के गुण:

  • (i) इन पौधों की शारीरिक संरचना में विभेदीकरण नहीं पाया जाता है।
  • (ii) इस वर्ग के पौधें को समान्यतया शैवाल कहा जाता है।
  • (iii) यह जलीय पौधे होते है।
  • उदाहरण: यूलोथ्रिक्स, स्पाइरोगाइरा, कारा इत्यादि|

ब्रायोफाइटा समुह के जीवों के गुण:

  • (i) इस प्रकार के पौधे जलीय तथा स्थलीय दोनों होते हैं, इसलिए इन्हें पादप वर्ग का उभयचर कहा जाता है।
  • (ii) यह पादप, तना और पत्तों जैसी संरचना में विभाजित होता है।
  • (iii) इसमें पादप शरीर के एक भाग से दूसरे भाग तक जल तथा दूसरी चीजों के संवहन के लिए विशिष्ट उत्तक नहीं पाए जाते हैं।
  • उदाहरण: मॉस (फ्रयूनेरिया), मार्वेंफशिया आदि।

टेरिड़ोंफाइटा समुह के जीवों के गुण:

  • (i) इस वर्ग के पौधें का शरीर जड़, तना तथा पत्ती में विभाजित होता है।
  • (ii) जल तथा अन्य पदार्थों वेफ संवहन वेफ लिए संवहन ऊतक भी पाए जाते हैं।
  • (iii) उदाहरणार्थ- मार्सीलिया, प़फर्न, हाॅर्स-टेल इत्यादि।
  • (iv) नग्न भ्रूण पाए जाते हैं, जिन्हें बीजाणु (spore) कहते हैं।
  • (v) इसमें जननांग अप्रत्यक्ष होते हैं।
  • (vi) इनमें बीज उत्पन्न करने की क्षमता नहीं होती है।

जिम्नोंस्पर्म के जीवों के गुण:

  • (i) इनमें नग्न बीज पाया जाता हैं।
  • (ii) ये बहुवर्षिय तथा काष्ठिय पौधे होते है।
  • उदाहरण: पाइनस तथा साइकस।

एन्जियोंस्पर्म के जीवों के गुण:

  • (i) इन पौधें के बीज फलों के अंदर ढकें होते हैं।
  • (ii) इन्हें पुष्पी पादप भी कहा जाता है।
  • (iii) इनमें भोजन का संचय या तो बीजपत्रों में होता है या फिर भ्रूणपोष में।

क्रिप्टोगैम:

  • वे जीव जिनमे जननांग प्रत्यक्ष होते हैं तथा इनमें बीज उत्पन्न करने की क्षमता नही होती है। अंत: ये क्रिप्टोगैम कहलाते हैं|
  • उदाहरण: थैलोंफाईटा, ब्रायोफाईटा एवं टेरीडोफाईटा|

फेनेरोगेम्स:

  • वे पौधे जिनमें जनन ऊतक पूर्ण विकसित एवं विभेदित होते हैं तथा जनन प्रकिया के पश्चात् बीज उत्पन्न करते हैं, फेनेरोगेम्स कहलाते हैं|
  • उदाहरण: ज़िम्नोस्पर्म एवं एन्जिओस्पर्म|

ज़िम्नोस्पर्म एवं एन्जिओस्पर्म में अंतर:

ज़िम्नोस्पर्म

एन्जिओस्पर्म

1. ये नग्न बीज उत्पन्न करते हैं|

2. ये पौधे बहुवर्षीय सादबहर तथा काष्ठीय होते है|

3. इनके बीजों में बीज पत्र नहीं होते हैं|

4. उदाहरण: पाइनस एवं साईकस आदि|

1. ये फल के अंदर बीज उत्पन्न करते हैं|

2. ये पुष्पी पादप होते हैं|

3. इनके बीज बीज पत्र वाले होते हैं|

4. उदाहरण: पैफियोपेडिलम (एकबीज पत्री) एवं आइपोमिया (द्विबीज पत्री )|

एक बीजपत्री तथा द्विबीजपत्री अंतर:

एक बीजपत्री

द्वि बीजपत्री

1. इसमें एक बीजपत्र होता है|

2. उदाहरण: पेफियोपेडिलम

1. इसमें दो बीजपत्र होते हैं|

2. उदाहरण: आइपोमिया

टेरिडोफाइटा और फैनरोगैम अंतर:

टेरिडोफाइटा –

  • इनमें बीज उत्पन्न करने की क्षमता नही होती है।
  • इनमें जननांग अप्रत्यक्ष होते है ।
  • उदाहरण: टेरीडोफाईटा|

फैनरोगैम –

  • जनन प्रक्रिया के पश्चात् बीज उत्पन्न करते है।
  • जनन उतक पूर्ण विकसित होते हैं।
  • उदाहरण: ज़िम्नोस्पर्म एवं एन्जिओस्पर्म|

बीजाणु (Spore):थैलोफाइटा, ब्रायोफाइटा और टेरिडोफाइटा में नग्न भ्रूण पाए जाते हैं, जिन्हें बीजाणु (Spore) कहते हैं।

अर्थात नग्न भ्रूण वाले बीजों को बीजाणु (Spore) कहते हैं।

एनिमेलिया (जन्तु जगत)

एनिमेलिया (Animelia):

इस जगत को प्राणी जगत भी कहते हैं| तथा इस जगत के उपसमूह को फाइलम (Phylum) कहते है, तथा इनके गुण निम्नलिखित हैं|

इस वर्ग के जीवों का गुण (features):

  • इस वर्ग में ऐसे सभी बहुकोशिक यूकेरियोटी जीव आते हैं|
  • इनमें कोशिका भित्ति नहीं पाई जाती है।
  • इस वर्ग के जीव विषमपोषी होते हैं।
  • इसके अधिकतर जन्तु चलायमान (mobile) होते हैं|

प्राणी जगत के जीवों के वर्गीकरण का आधार:

  • सर्वप्रथम इस जगत के जीवों के विभाजन का आधार बनाया गया है कोशिकीय स्तर की संरचना तथा दूसरा उतक स्तर की संरचना|
  • उसके बाद बिना देहगुहा धारी जीवों, कूट (छदम) देहगुहाधारी, तथा देहगुहाधारी जैसे गुणों को वर्गीकरण का आधार बनाया गया हैं|
  • उसके बाद भ्रूण के विकास के समय एक कोशिका से मेसोडर्म की कोशिका का विकास तथा अंतःस्तर की एक थैली से देहगुहा का बनना जैसे लक्षणों को आधार बनाया गया है|
  • उसके बाद इस जगत के जीवों में नोटोकोर्ड की उपस्थिति को विभाजन का आधार बनाया गया है|
  • उसके बाद जिन जीवों में नोतोकोर्ड पाया जाता है उनकों आगे कशेरुकी और अकशेरुकी में विभाजित किया गया है|

1. पोरीफेरा (Porifera)

पोरीफेरा फाइलम के जीवों के गुण:

  • ये अचल जीव होते हैं, जो किसी आधार से चिपके रहते हैं|
  • इनके पुरे शरीर में अनेक छिद्र पाए जाते हैं| ये छिद्र शरीर में उपस्थित नाल प्रणाली से जुड़े होते हैं|
  • इनका शरीर कठोर आवरण अथवा बाह्य कंकाल से ढका होता है|
  • इनकी शारीरिक संरचना अत्यंत सरल होती है, जिनमें उतकों का विभेदन नहीं होता हैं|
  • इन्हें समान्यत: स्पंज के नाम से जाना जाता है|
  • ये समुद्री आवास में पाए जाते हैं|
  • उदाहरण: साइकॅान, यूप्लेक्टेला, स्पांजिला इत्यादि।

2. सीलेंटरेटा

सीलेंटरेटा फाइलम के जीवों के गुण:

  • ये जलीय जंतु हैं।
  • इनका शारीरिक संगठन ऊतकीय स्तर का होता है।
  • इनमें एक देहगुहा पाई जाती है।
  • इनका शरीर कोशिकाओं की दो परतों (आंतरिक एवं बाह्य परत) का बना होता है।
  • इनकी कुछ जातियाँ समूह में रहती हैं|
  • उदाहरण: कोरल, हाइड्रा, समुद्री एनीमोन और जेलीफिश इत्यादि|

3. प्लेटीहेल्मिन्थीज

प्लेटीहेल्मिन्थीज फाइलम के जीवों के गुण:

  • पूर्ववर्णित वर्गों की अपेक्षा इस वर्ग के जंतुओं की शारीरिक संरचना अधिक जटिल होती है।
  • इनका शरीर द्विपार्श्वसममित होता है अर्थात् शरीर के दाएँ और बाएँ भाग की संरचना समान होती है।
  • इनका शरीर त्रिकोरक (Triploblastic) होता है अर्थात् इनका ऊतक विभेदन तीन कोशिकीय स्तरों से हुआ है।
  • इससे शरीर में बाह्य तथा आंतरिक दोनों प्रकार के अस्तर बनते हैं तथा इनमें कुछ अंग भी बनते हैं।
  • इनमें वास्तविक देहगुहा का अभाव होता है जिसमें सुविकसित अंग व्यवस्थित हो सकें।
  • इनका शरीर पृष्ठधारीय एवं चपटा होता है। इसलिए इन्हें चपटे कृमि भी कहा जाता है।
  • इनमें प्लेनेरिया जैसे कुछ स्वछंद जंतु तथा लिवरफ्लूक, जैसे परजीवी हैं।
  • उदाहरण: प्लेनेरिया, लिवरफ्लूक और फीताकृमि (Tape worm) इत्यादि|

4. निमेटोडा

निमेटोडा फाइलम के जीवों के गुण:

  • ये भी त्रिकोरक जंतु हैं तथा इनमें भी द्विपार्श्व सममिति पाई जाती है, लेकिन इनका शरीर चपटा ना होकर बेलनाकार होता है।
  • इनके देहगुहा को कूटसीलोम कहते हैं। इसमें ऊतक पाए जाते हैं परंतु अंगतंत्रा पूर्ण विकसित नहीं होते हैं।
  • इनकी शारीरिक संरचना भी त्रिकोरिक होती है। ये अधिकांशत: परजीवी होते हैं।
  • परजीवी के तौर पर ये दूसरे जंतुओं में रोग उत्पन्न करते हैं।
  • उदाहरणार्थ- गोल कृमि, फाइलेरिया कृमि, पिन कृमि, एस्केरिस और वुचेरेरिया इत्यादि।

5. एनीलिडा

एनीलिडा फाइलम के जीवों के गुण:

  • एनीलिड जंतु द्विपार्श्वसममित एवं त्रिकोरिक होते हैं।
  • इनमें वास्तविक देहगुहा भी पाई जाती है। इससे वास्तविक अंग शारीरिक संरचना में निहित रहते हैं।
  • अतः अंगों में व्यापक भिन्नता होती है। यह भिन्नता इनके शरीर के सिर से पूँछ तक एक के बाद एक खंडित रूप में उपस्थित होती है।
  • जलीय एनीलिड अलवण एवं लवणीय जल दोनों में पाए जाते हैं।
  • इनमें संवहन, पाचन, उत्सर्जन और तंत्रिका तंत्रा पाए जाते हैं।
  • ये जलीय और स्थलीय दोनों होते हैं।
  • उदाहरण: केंचुआ, नेरीस, जोंक इत्यादि|

6. आर्थ्रोपोडा:

यह जंतु जगत का सबसे बड़ा संघ है।

आर्थ्रोपोडा फाइलम के जीवों के गुण:

  • इनमें द्विपार्श्व सममिति पाई जाती है और शरीर खंडयुक्त होता है।
  • इनमें खुला परिसंचरण तंत्रा पाया जाता है। अतः रुधिर वाहिकाओं में नहीं बहता।
  • देहगुहा रक्त से भरी होती है।
  • इनमें जुड़े हुए पैर पाए जाते हैं।
  • उदाहरण: झींगा, तितली, मक्खी, मकड़ी, बिच्छू केकड़े इत्यादि|

7. मोलस्का

मोलस्का फाइलम के जीवों के गुण:

  • इनमें भी द्विपार्श्वसममिति पाई जाती है।
  • इनकी देहगुहा बहुत कम होती है तथा शरीर में थोड़ा विखंडन होता है।
  • अधिकांश मोलस्क जंतुओं में कवच पाया जाता है।
  • इनमें खुला संवहनी तंत्रा तथा उत्सर्जन के लिए गुर्दे जैसी संरचना पाई जाती है।
  • उदाहरण: घोंघा, सीप इत्यादि|

8. इकाइनोडर्मेटा:

ग्रीक में इकाइनॉस का अर्थ है, जाहक (हेजहॉग) तथा डर्मा का अर्थ है, त्वचा। अतः इन जंतुओं की त्वचा काँटों से आच्छादित होती है।

इकाइनोडर्मेटा फाइलम के जीवों के गुण:

  • ये मुक्तजीवी समुद्री जंतु हैं।
  • ये देहगुहायुक्त त्रिकोरिक जंतु हैं।
  • इनमें विशिष्ट जल संवहन नाल तंत्रा पाया जाता है, जो उनके चलन में सहायक हैं।
  • इनमें कैल्शियम कार्बोनेट का कंकाल एवं काँटे पाए जाते हैं।
  • उदाहरण: स्टारपि़ फश, समुद्री अखचन, इत्यादि|

नोटोकॉर्ड:नोटोकॉर्ड छड़ की तरह की एक लंबी संरचना है जो जंतुओं के पृष्ठ भाग पर पाई जाती है। यह तंत्रिका ऊतक को आहार नाल से अलग करती है। यह पेशियों के जुड़ने का स्थान भी प्रदान करती है जिससे चलन में आसानी हो|

9. प्रोटोकॉर्डेटा

प्रोटोकॉर्डेटा फाइलम के जीवों के गुण:

  • ये द्विपार्श्वसममित, त्रिकोरिक एवं देहगुहा युक्त जंतु हैं।
  • इनमें नोटोकॉर्ड पाया जाता है ।
  • ये समुद्री जन्तु हैं|
  • उदाहरण: बैलैनाग्लोसस, हर्डमेनिया, एम्पिफयोक्सस, इत्यादि|

वर्टीब्रेटा (कशेरुकी)

इन जंतुओं में वास्तविक मेरुदंड एवं अंतःकंकाल पाया जाता है। इस कारण जंतुओं में पेशियों का वितरण अलग होता है एवं पेशियाँ कंकाल से जुड़ी होती हैं, जो इन्हें चलने में सहायता करती हैं।

वर्टीब्रेट द्विपार्श्वसममित, त्रिकोरिक, देहगुहा वाले जंतु हैं। इनमें ऊतकों एवं अंगों का जटिल विभेदन पाया जाता है।

सभी कशेरुकी जीवों में पाए जाने वाले समान्य लक्षण:

  • इनमें नोटोकोर्ड पाया जाता है|
  • इनमें पृष्ठनलीय कशेरुकी दंड एवं मेरुरज्जु होता है|
  • इनका त्रिकोरिक शरीर होता है|
  • इनमें युग्मित क्लोम थैली पाई जाती है|
  • इनमें देह्गुहा पाया जाता है|

वर्टीब्रेटा समूह जे जंतुओं का वर्गीकरण:

वर्टीब्रेटा को पाँच वर्गों में विभाजित किया गया है:-

  • मत्स्य
  • जल-स्थलचर
  • सरीसृप
  • पक्षी
  • स्तनपायी या स्तनधारी

1. मत्स्य

मत्स्य वर्ग के जीवों के गुण:

  • ये मछलियाँ हैं, जो समुद्र और मीठे जल दोनों जगहों पर पाई जाती हैं।
  • इनकी त्वचा शल्क (scales) अथवा प्लेटों से ढकी होती है तथा ये अपनी मांसल पूँछ का प्रयोग तैरने के लिए करती हैं।
  • इनका शरीर धारारेखीय होता है।
  • इनमें श्वसन क्रिया के लिए क्लोम पाए जाते हैं, जो जल में विलीन ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं।
  • ये असमतापी होते हैं तथा इनका हृदय द्विकक्षीय होता है।
  • ये अंडे देती हैं।
  • कुछ मछलियों में कंकाल केवल उपास्थि का बना होता है जैसे- शार्क। अन्य प्रकार की मछलियों में कंकाल अस्थि का बना होता है जैसे – ट्युना, रोहू।

2. जल-स्थलचर (Amphibia):

जल-स्थलचर वर्ग के जीवों के गुण:

  • ये मत्स्यों से भिन्न होते हैं क्योंकि इनमें शल्क नहीं पाए जाते।
  • इनकी त्वचा पर श्लेष्म ग्रंथियाँ पाई जाती हैं|
  • इनका हृदय त्रिकक्षीय होता है।
  • इनमें बाह्य कंकाल नहीं होता है।
  • वृक्क पाए जाते हैं।
  • श्वसन क्लोम अथवा फेफड़ों द्वारा होता है।
  • ये अंडे देने वाले जंतु हैं।
  • ये जल तथा स्थल दोनों पर रह सकते हैं।
  • उदाहरण- मेंढक, सैलामेंडर, टोड इत्यादि|

3. सरीसृप (Reptile):

सरीसृप वर्ग के जीवों के गुण:

  • ये असमतापी जंतु हैं।
  • इनका शरीर शल्कों द्वारा ढका होता है।
  • इनमें श्वसन पेफपफड़ों द्वारा होता है।
  • हृदय सामान्यतः त्रिकक्षीय होता है, लेकिन मगरमच्छ का हृदय चार कक्षीय होता है।
  • वृक्क पाया जाता है।
  • ये अंडे देते हैं|
  • इनके अंडे कठोर कवच से ढके होते हैं तथा जल-स्थलचर की तरह इन्हें जल में अंडे देने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
  • उदाहरण:- कछुआ, साँप, छिपकली, मगरमच्छ इत्यादि|

4. पक्षी:

इस वर्ग में सभी पक्षियों को रखा गया है|

पक्षी वर्ग के जंतुओं के गुण:

  • ये समतापी प्राणी हैं।
  • इनका हृदय चार कक्षीय होता है।
  • इनके दो जोड़ी पैर होते हैं।
  • इनमें आगे वाले दो पैर उड़ने के लिए पंखों में परिवर्तित हो जाते हैं।
  • शरीर परों से ढका होता है।
  • श्वसन फेंफडों द्वारा होता है।
  • उदाहरण: कबूतर, कौवा, गौरेया, बगुला (सफ़ेद स्टोर्क), ऑस्ट्रिच (स्ट्रुथियो कैमेलस) इत्यादि|

5. स्तनपायी या स्तनधारी:

स्तनपायी वर्ग के जंतुओं के गुण:

  • ये समतापी प्राणी हैं।
  • हृदय चार कक्षीय होता है।
  • इस वर्ग के सभी जंतुओं में नवजात के पोषण के लिए दुग्ध ग्रंथियाँ पाई जाती हैं।
  • इनकी त्वचा पर बाल, स्वेद और तेल ग्रंथियाँ पाई जाती हैं।
  • इस वर्ग के जंतु शिशुओं को जन्म देने वाले होते हैं।
  • उदाहरण: मनुष्य, बकरी, गाय, ह्वेल, चूहा, बिल्ली और चमगादड़ आदि|

अपवाद:

कुछ स्तनपायी जंतु अंडे भी देते हैं जैसे इकिड्ना, प्लेटिपस। कंगारू जैसे कुछ स्तनपायी अविकसित बच्चे को जन्म देती है जो मार्सूपियम नामक थैली में तब तक लटके रहते हैं जब तक कि उनका पूर्ण विकास नहीं हो जाता है।

पक्षी एवं स्तनधारी में अंतर:

पक्षी:

  • इनमें नवजात के पोषण के लिए दुग्ध ग्रंथियाँ नहीं पाई जाती हैं।
  • इनका शरीर परों से ढका रहता है|
  • ये अंडे देते हैं|
  • ये अपने अग्र पाद का उपयोग उड़ने के लिए करते हैं|

स्तनधारी:

  • इनमें नवजात के पोषण के लिए दुग्ध ग्रंथियाँ पाई जाती हैं।
  • इनके त्वचा पर बाल, स्वेद और तेल ग्रंथियाँ पाई जाती हैं।
  • ये अपने जैसे शिशु को जन्म देते हैं|
  • इनके अपने अग्र पाद का उपयोग चलने के लिए या भोजन पकड़ने के लिए करते हैं|

We hope that class 9 Science Chapter 7 जीवों में विविधता (Diversity in Living Organisms) Notes in Hindi helped you. If you have any queries about class 9 Science Chapter 7 जीवों में विविधता (Diversity in Living Organisms)Notes in Hindi or about any other Notes of class 9 Science in Hindi, so you can comment below. We will reach you as soon as possible…

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