पाठ – 8
निर्माण उद्योग
This post is about the detailed notes of class 12 Geography Chapter 8 nirmaan udyog (Land Resources and Agriculture) in Hindi for CBSE Board. It has all the notes in simple language and point to point explanation for the students having Geography as a subject and studying in class 12th from CBSE Board in Hindi Medium. All the students who are going to appear in Class 12 CBSE Board exams of this year can better their preparations by studying these notes.
यह पोस्ट सीबीएसई बोर्ड के लिए हिंदी में कक्षा 12 भूगोल अध्याय 8 निर्माण उद्योग के विस्तृत नोट्स के बारे में है। इसमें सभी नोट्स सरल भाषा में हैं और सीबीएसई बोर्ड से हिंदी माध्यम से 12वीं कक्षा में एक विषय के रूप में भूगोल पढ़ने वाले छात्रों के लिए उपयोगी है। वे सभी छात्र जो इस वर्ष की कक्षा 12 सीबीएसई बोर्ड परीक्षा में शामिल होने जा रहे हैं, इन नोट्स को पढ़कर अपनी तैयारी बेहतर कर सकते हैं।
Board | CBSE Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 12 |
Subject | Geography |
Chapter no. | Chapter 8 |
Chapter Name | निर्माण उद्योग (Land Resources and Agriculture) |
Category | Class 12 Geography Notes in Hindi |
Medium | Hindi |
निर्माण उद्योग
- वह उद्योग जो कच्चे माल को परिवर्तित करके उपयोगी वस्तुओं का निर्माण करते हैं निर्माण उद्योग कहलाते हैं।
- इस उत्पादन की प्रक्रिया द्वारा वस्तु की कीमत बढ़ जाती है वस्तु के उपयोग में वृद्धि होती है।
- उदाहरण के लिए
- प्राथमिक क्रिया में प्राप्त लोहे के अत्याधिक उपयोग नहीं हो सकते परंतु उसे इस्पात(Steel) में परिवर्तित करके उसे अनेकों कार्यों में उपयोग किया जा सकता हैं।
उद्योगों का वर्गीकरण
उद्योगों का वर्गीकरण मुख्य रूप से पांच आधारों पर किया जाता है:
आकार के आधार पर
- कुटीर उद्योग
- छोटे पैमाने के उद्योग
- बड़े पैमाने के उद्योग
कच्चे माल के आधार पर
- कृषि आधारित
- खनिज आधारित
- धात्विक खनिज उद्योग
- अधात्विक खनिज उद्योग
- रसायन आधारित
- पशु आधारित
- वन आधारित
उत्पाद के आधार पर
- आधारभूत उद्योग
- उपभोक्ता वस्तु उद्योग
स्वामित्व के आधार पर
- सार्वजानिक उद्योग
- निजी उद्योग
- संयुक्त क्षेत्र के उद्योग
आकार के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण
- आकार के आधार पर उद्योगों को मुख्य रूप से तीन भागों में बांटा जाता है: –
कुटीर उद्योग
- ऐसे छोटे-छोटे उद्योग जिनका संचालन बहुत छोटे स्तर पर किया जाता है कुटीर उद्योग कहलाते हैं।
- यह निर्माण की सबसे छोटी इकाई है।
- स्थानीय कच्चे माल का प्रयोग।
- स्थानीय बाजारों तक पहुंच।
- कम पूंजी और परिवहन की आवश्यकता।
- रोजमर्रा के जीवन की छोटी छोटी वस्तुओं का उत्पादन।
- उदाहरण: –
- मिट्टी के बर्तन, चटाई आदि।
छोटे पैमाने के उद्योग
- कम पूंजी की आवश्यकता।
- स्थानीय बाजार तक पहुंच।
- स्थानीय कच्चे माल का उपयोग।
- कम श्रमिकों की आवश्यकता।
- प्रौद्योगिकी का कम प्रयोग।
- निम्न शक्ति साधनों की आवश्यकता।
- छोटी मशीनों द्वारा कार्य।
- उदाहरण: –
- कुर्सी उद्योग, कपड़ा उद्योग आदि।
बड़े पैमाने के उद्योग
- अधिक पूंजी की आवश्यकता।
- उत्पादित वस्तु बेचने के लिए विशाल बाजार की आवश्यकता।
- कच्चे माल का विभिन्न जगहों से आयात।
- अत्याधिक एवं कुशल श्रमिकों की आवश्यकता।
- उच्च प्रौद्योगिकी का प्रयोग।
- अत्याधिक शक्ति साधनों की आवश्यकता।
- बड़ी-बड़ी मशीनों द्वारा कार्य।
- उदाहरण: –
- लोहा इस्पात, उद्योग कार उद्योग।
कच्चे माल के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण
- कच्चे माल के आधार पर उद्योगों को मुख्य रूप से पांच भागों में बांटा जाता है: –
कृषि आधारित उद्योग
- वह उद्योग जो कृषि द्वारा उत्पादित कच्चे माल पर निर्भर होते हैं कृषि आधारित उद्योग कहलाते हैं।
- उदाहरण के लिए: –
- शक्कर उद्योग, आचार उद्योग, मसाले एवं तेल उद्योग आदि।
- इन उद्योगों में कृषि से प्राप्त कच्चे माल को तैयार माल में बदलकर ग्रामीण एवं नगरीय भागों में बेचने के लिए भेजा जाता है।
रसायन आधारित उद्योग
- इस प्रकार के उद्योगों में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले रासायनिक खनिजों का उपयोग होता है।
- जैसे कि: –
- पेट्रो रसायन उद्योग, प्लास्टिक उद्योग आदि।
वनों पर आधारित उद्योग
- वे उद्योग जो कच्चे माल के लिए वनों पर निर्भर होते हैं वन आधारित उद्योग के लाते हैं।
- उदाहरण के लिए: –
- फर्नीचर उद्योग, कागज उद्योग आदि।
पशु आधारित उद्योग
- वह उद्योग जिन में पशुओं से प्राप्त वस्तुओं का उपयोग कच्चे माल के रूप में किया जाता है पशु आधारित उद्योग कहलाते हैं
- उदाहरण के लिए: –
- चमड़ा उद्योग, ऊनी वस्त्र उद्योग आदि
खनिज आधारित उद्योग
- वे उद्योग जिनमें खनिजों का उपयोग कच्चे माल के रूप में किया जाता है खनिज आधारित उद्योग कहलाते हैं।
- उदाहरण के लिए: –
- लोहा उद्योग
- इन्हे मुख्य रूप से दो भागों में बांटा जाता है: –
धात्विक खनिज उद्योग
- इसमें वे उद्योग आते हैं जो धात्विक खनिजों जैसे कि लोहा, एलुमिनियम, तांबा आदि का उपयोग करते हैं।
अधात्विक खनिज उद्योग
- इसमें वे उद्योग आते हैं जो मुख्य रूप से अधात्विक खनिज जैसे कि सीमेंट आदि का उपयोग करते है उद्योग।
स्वामित्व के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण
- स्वामित्व के आधार पर उद्योगों को मुख्य रूप से तीन भागों में बांटा जाता है:
सार्वजनिक उद्योग
- यह वह उद्योग होते हैं जो सरकार के अधीन होते।
- दूसरे शब्दों में सरकारी कंपनियों को ही सार्वजनिक उद्योग कहा जाता है।
- इन पर मुख्य रूप से सरकार का स्वामित्व होता है और इन्हें सरकार द्वारा ही चलाया जाता है।
निजी उद्योग
- वह उद्योग जिन पर एक या अनेक व्यक्तियों का स्वामित्व होता है उन्हें निजी उद्योग कहा जाता है।
- आसान शब्दों में समझें तो प्राइवेट कम्पनियाँ ही निजी उद्योग होती हैं।
- इन पर मुख्य रूप से एक व्यक्ति या अनेकों व्यक्तियों का स्वामित्व होता है।
संयुक्त क्षेत्र के उद्योग
- यह व उद्योग है जिनमें सरकार एवं निजी दोनों क्षेत्रों का स्वामित्व होता है यानी कि कंपनी का कुछ हिस्सा सरकार के पास होता है और कुछ हिस्सा निजी हाथों में होता है।
- इस तरह से दोनों द्वारा कंपनी का संचालन किया जाता है।
उत्पाद के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण
- उत्पाद के आधार पर उद्योगों को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा जाता है:
आधारभूत उद्योग
- वह उद्योग जो दूसरे उद्योगों के लिए आवश्यक वस्तुएं बनाते हैं, उन्हें आधारभूत उद्योग कहा जाता है
- उदाहरण के लिए: –
- मशीन बनाने वाले उद्योग, लोहा और इस्पात उद्योग आदि।
- दूसरे शब्दों में मैं उद्योग जिनके द्वारा बनाई गई वस्तुओं का उपयोग अन्य उद्योगों में कच्चे माल के रूप में किया जाता है उन्हें आधारभूत उद्योग कहते हैं
उपभोक्ता उद्योग
- उपभोक्ता उद्योग जिनके द्वारा बनाई गई वस्तुओं का उपभोग प्रत्यक्ष रूप से उपभोक्ता द्वारा कर लिया जाता है, उन्हें उपभोक्ता उद्योग कहते हैं।
- उदाहरण के लिए: –
- बिस्कुट, चाय, साबुन उद्योग आदि।
उद्योगों को प्रभावित करने वाले कारक
पूंजी की उपलब्धता
- किसी विशेष क्षेत्र में उपलब्ध पूंजी उस क्षेत्र में उद्योगों को प्रभावित करती हैं।
- उदाहरण के लिए: –
- एक अल्प विकसित क्षेत्र में बड़े उद्योग लगाना मुश्किल होगा जबकि एक विकसित क्षेत्र में यह कार्य आसान होगा।
बाजार तक पहुंच
- उत्पादन करने के बाद प्रत्येक उद्योग को अपना सामान बाजार में बेचना है इसीलिए किसी भी उद्योग की बाजार तक पहुंच होना अत्यंत आवश्यक होता है।
- यहां पर बाजार से मतलब ग्राहकों तक पहुंच से हैं।
श्रम की उपलब्धता
- उत्पादन प्रक्रिया में श्रमिकों की आवश्यकता पड़ती है, इसीलिए एक उद्योग श्रम पर निर्भर होता है।
- सस्ता एवं उचित मात्रा में मिलने वाला श्रम उद्योगों के विकास में मदद करता है जबकि महंगा एवं कम मात्रा में श्रम की उपलब्धता उद्योगों के विकास में बाधा डालते हैं।
शक्ति के संसाधनों ( बिजली और संचार आदि) की स्थिति
- उद्योगों में बड़े स्तर पर उत्पादन किया जाता है एवं बड़ी – बड़ी मशीनों का प्रयोग किया जाता है इसीलिए शक्ति संसाधन (बिजली और संचार आदि) अत्यंत जरूरी होते हैं।
- शक्ति संसाधनों की उच्च उपलब्धता के कारण उद्योगों का विकास होता है जबकि शक्ति संसाधन उपलब्ध ना होने पर औद्योगिक विकास में कमी आती है।
परिवहन की सुविधा
- कच्चा माल लाने एवं उत्पादित वस्तु ले जाने के लिए परिवहन अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, इसीलिए पर्याप्त परिवहन एवं संचार के साधनों का होना आवश्यक होता है।
कच्चे माल की उपलब्धता
- उद्योगों में वस्तुओं का उत्पादन करने के लिए कच्चा माल सबसे महत्वपूर्ण होता है, इसीलिए कच्चे माल की उपलब्धता उद्योगों के विकास को प्रभावित करती है।
सरकारी नीति
- प्रत्येक उद्योग सरकारी नीतियों के अनुसार कार्य करते है, इसीलिए सरकार द्वारा औद्योगिक पक्ष में बनाई गई नीतियों के कारण उद्योगों को फायदा होता है और उद्योगों के विकास में मदद मिलती है।
मुख्य उद्योग
- वर्तमान समय में भारत के मुख्य उद्योग निम्नलिखित हैं:
- लोहा इस्पात उद्योग
- सूती वस्त्र उद्योग
- चीनी उद्योग
- पेट्रो रसायन उद्योग
- अवगम प्रौद्योगिकी उद्योग
लोहा इस्पात उद्योग
- लोहा इस्पात उद्योग को आधारभूत उद्योग कहा जाता है, क्योंकि यह सभी उद्योगों का आधार है।
- अन्य उद्योगों में उपयोग होने वाली मशीनें एवं सभी प्रकार के औजार लोहा एवं इस्पात से ही बनाए जाते हैं, इसीलिए इसे अन्य उद्योगों का आधार माना जाता है।
- लोहा इस्पात उद्योग में कच्चे माल के रूप में लौह अयस्क, चूना पत्थर, डोलोमाइट, मैंगनीज़ एवं कोयले की आवश्यकता पड़ती है।
- इन उद्योगों की स्थापना मुख्य रूप से कच्चे माल के स्त्रोत के पास ही की जाती है, क्योंकि कच्चे माल का परिवहन अत्याधिक महंगा पड़ता है।
इस्पात कैसे बनता है?
- लोहा अयस्क को भट्टियों में कार्बन एवं चूना पत्थर के साथ पिघलाया जाता है, इस पिघले हुए लोहे को कच्चा लोहा कहा जाता है।
- फिर इस कच्चे लोहे में मैंगनीज मिलाकर इस्पात का निर्माण किया जाता है।
भारत के प्रमुख लोह इस्पात कारखाने
टाटा लोह एवं इस्पात उद्योग (TISCO)
- टाटा लोहा एवं इस्पात उद्योग मुंबई, कोलकाता रेलवे मार्ग के पास स्थित है।
- यहां से कोयले के निर्यात के लिए सबसे नजदीकी पतन कोलकाता का प्रयोग किया जाता है।
- इस उद्योग को पानी स्वर्णरेखा एवं खारकोई नदी, लोहा नोआमंडी और बदाम पहाड़ एवं कोककारी कोयला झरिया और पश्चिमी बोकारो कोयला क्षेत्रों से प्राप्त होता है।
भारतीय लोहा एवं इस्पात कंपनी (IISCO)
- इस कंपनी का पहला कारखाना हीरापुर और दूसरा कुल्टी में स्थापित किया गया।
- इस कंपनी के अधिकार क्षेत्र में आने वाले तीनों संयंत्र कोलकत्ता आसनसोल रेल मार्ग पर स्थित है।
- इस कारखाने में लौह अयस्क सिंह भूमि झारखंड से आता है।
- जल की पूर्ति दामोदर नदी की सहायक नदी बराकार से की जाती है।
- 1972 – 73 में इस कंपनी का इस्पात उत्पादन बहुत कम हो गया और इसी वजह से सरकार द्वारा इसका अधिग्रहण कर लिया गया।
विश्वेश्वरैया आयरन एण्ड स्टील वर्क्स (VISW)
- इससे पहले मैसूर लोहा और इस्पात वर्क्स के नाम से जाना जाता था।
- यह बाबाबुदन की पहाड़ियों के केमान गुंडी के लौह अयस्क क्षेत्रों के निकट स्थित है।
- इस संयंत्र में मैग्नीज एवं चूना पत्थर की पूर्ति आसपास के क्षेत्रों से की जाती है।
- परंतु इस क्षेत्र में कोयला उपलब्ध ना होने की वजह से 1951 तक आसपास के जंगल की लकड़ियों से चारकोल बनाकर उसका प्रयोग किया जाता था बाद में विद्युत की भट्टियों का प्रयोग किया जाने लगा।
- इस संयंत्र को जल भद्रावती नदी से प्राप्त होता है और यह संयंत्र विशिष्ट इस्पात एवं एलॉय का उत्पादन करता है।
राउरकेला इस्पात संयत्र
- 1959 में जर्मनी के सहयोग से राउरकेला इस्पात संयंत्र की स्थापना उड़ीसा के सुंदरगढ़ जिले में की गई।
- इस संयंत्र को झरिया से कोयला एवं सुंदरगढ़ और केंदूझर से लोहा अयस्क की पूर्ति की जाती है।
- विद्युत भर्तियों के लिए विद्युत शक्ति हीराकुंड परियोजना और जल की पूर्ति कोइल और शंख नदियों से होती है।
भिलाई इस्पात संयत्र
- भिलाई इस्पात संयंत्र की स्थापना छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में रूस के सहयोग से की गई।
- यह संयंत्र कोलकाता मुंबई रेल मार्ग पर स्थित है।
- इस संयंत्र में लौह अयस्क की आपूर्ति डल्ली राजहरा खानो से तथा कोयले की आपूर्ति कोरबा और करगाली कोयला खानों से की जाती है।
- जल की आपूर्ति तंदुला बांध एवं विद्युत शक्ति कोरबा ताप शक्ति ग्रह से प्राप्त होती है।
दुर्गापुर इस्पात संयंत्र
- यूनाइटेड किंगडम की सरकार के सहयोग से पश्चिम बंगाल में दुर्गापुर इस्पात संयंत्र की स्थापना की गई।
- यह कोलकाता दिल्ली रेलवे मार्ग पर स्थित है।
- यह संयंत्र रानीगंज और झरिया कोयला पेटी में स्थित है और यहां पर लौह अयस्क की आपूर्ति नोआमंडी से की जाती है।
- इसे विद्युत शक्ति एवं जल दामोदर घाटी का ऑपरेशन से प्राप्त होते हैं।
बोकारो इस्पात संयत्र
- इस संयंत्र की स्थापना 1964 में रूस के सहयोग से बोकारो में की गई।
- इस संयंत्र में लोएस्ट की पूर्ति राउरकेला प्रदेश से की जाती है।
- जल और जल विद्युत शक्ति की आपूर्ति दामोदर घाटी कॉर्पोरेशन द्वारा की जाती है।
अन्य इस्पात संयंत्र
विजाग इस्पात संयंत्र
- यह देश का पहला पतन आधारित संयंत्र है।
- इसकी स्थापना 1992 में विशाखापट्टनम आंध्र प्रदेश में की गई थी।
विजयनगर इस्पात संयंत्र
- विजयनगर इस्पात संयंत्र होसपेटे कर्नाटक में विकसित किया गया है।
- इसमें स्वदेशी तकनीक का उपयोग किया जा रहा है और यह अपने आसपास के क्षेत्रों से प्राप्त लोहा अयस्क और चूना पत्थर का उपयोग करता है।
सूती वस्त्र उद्योग
- सूती वस्त्र उद्योग भारत के परंपरागत उद्योगों में से एक है।
- प्राचीन काल एवं मध्य काल में भारत उच्च कोटि के मलमल एवं अच्छी गुणवत्ता वाले सूती कपड़ों के उत्पादन के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध था।
- अंग्रेजी शासन के दौरान सूती वस्त्र उद्योग को भारी नुकसान उठाना पड़ा क्योंकि अंग्रेज भारत से कच्चे माल को मैनचेस्टर और लेवल पुल में स्थित अपनी मिलो में भेज दिया करते थे और वहां से तैयार माल को भारत में बेचने के लिए लाया करते थे जिस वजह से भारतीय सूती वस्त्र उद्योग को हानि उठानी पड़ी।
- 1854 में मुंबई में भारत की पहली आधुनिक सूती मिल की स्थापना की गई।
- इस मील का बड़ी तेजी से विकास हुआ जिसके कारण निम्न थे:
- यह गुजरात और महाराष्ट्र के कपास उत्पादक क्षेत्रों के निकट।
- सस्ते एवं कुशल श्रमिकों की उपलब्धता।
- पर्याप्त पूंजी।
- आजादी के दौर तक भारत में मिलों की संख्या लगभग 423 तक पहुंच गई थी लेकिन देश के विभाजन के बाद स्थिति में परिवर्तन आये क्योंकि अच्छी गुणवत्ता वाले कपास उत्पादक क्षेत्रों में से अधिकांश क्षेत्र पाकिस्तान में चले गए जबकि भारत में 409 मील और केवल 29% कपास उत्पादक क्षेत्र ही बचे।
- स्वतंत्रता के बाद सरकार द्वारा किए गए प्रयासों के द्वारा धीरे – धीरे इस उद्योग का विकास हुआ।
- वर्तमान में इस उद्योग का तेजी से विकास हो रहा है एवं यह अनेकों लोगों को रोजगार प्रदान करता है।
भारत में सूती वस्त्र उद्योग का वितरण
- भारत में सबसे पहले मुंबई और अहमदाबाद में सूती वस्त्र उद्योग का विकास हुआ।
- 1951 में रेल मार्गों के विकास के साथ ही दक्षिणी भारत में कोयंबटूर, मदुरई और बेंगलुरु जैसे क्षेत्रों में मिलों की स्थापना हुई।
- धीरे – धीरे मध्य भारत के क्षेत्र नागपुर, इंदौ,र शोलापुर और वडोदरा सूती वस्त्र केंद्र बनकर उभरे।
- वर्तमान में अमदाबाद, भिवांडी, शोलापुर, कोल्हापुर, नागपुर, इंदौर और उज्जैन सूती वस्त्र उद्योग के मुख्य केंद्र है।
- देश में सबसे ज्यादा मिले तमिलनाडु में स्थित है।
भारत में सूती वस्त्र उद्योग के विकास के मुख्य कारण
- सस्ते श्रम की उपलब्धता
- शक्ति साधनों की उपलब्धता
- बड़ा बाजार
- विकसित परिवहन संरचना
- कच्चे माल की उपलब्धता
भारत में सूती वस्त्र उद्योग की समस्याएं: –
- पर्याप्त पूंजी की कमी
- कुशल श्रमिकों का अभाव
- लंबे रेशे वाली कपास का कम उत्पादन
- प्रौद्योगिकी का निम्न स्तर
- विदेशी मिलो से प्रतिस्पर्धा
चीनी उद्योग
- भारत में चीनी उद्योग दूसरा सबसे अधिक महत्वपूर्ण कृषि आधारित उद्योग है।
- भारत विश्व में गन्ना और चीनी दोनों का सबसे बड़ा उत्पादक है एवं यह विश्व की लगभग 8% चीनी का उत्पादन करता है।
- इस उद्योग द्वारा चार लाख से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष रूप से और एक बड़ी संख्या में किसानों को अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्रदान किया जाता है।
भारत में चीनी उद्योग का विकास
- 1903 में बिहार में चीनी मिल की स्थापना की गई और यहीं से भारत के चीनी उद्योग का विकास शुरू हुआ।
- इसके बाद समय के साथ – साथ बिहार और उत्तर प्रदेश के अलग – अलग क्षेत्रों में चीनी मिलों की स्थापना की गई।
- 1950 से 51 के दौर में भारत में चीनी के 139 कारखाने थे, जो संख्या 2010 – 11 में बढ़कर 662 हो गई।
चीनी उद्योग को एक मौसमी उद्योग क्यों कहा जाता है?
- गन्ना एक भारी ह्रास वाली फसल है।
- खेत से काटने के बाद अगर 24 घंटे के अंदर ही गन्ने का रस निकाल लिया जाए तो इससे अधिक मात्रा में चीनी प्राप्त होती है।
- इसीलिए गन्ने को खेतों से काट कर तुरंत मिलों में भेजना जरूरी होता है और गन्ना मिले केवल उसी मौसम में कार्य करती है, जब गन्ने की कटाई की जाती है। इसी वजह से इसे एक मौसमी उद्योग कहा जाता है।
भारत में चीनी उद्योग का वितरण
- महाराष्ट्र देश में चीनी उत्पादक राज्यों में सबसे आगे है, जो देश के एक तिहाई चीनी का उत्पादन करता है।
- चीनी उत्पादन में राज्य में उत्तर प्रदेश का दूसरा स्थान है, यहां पर चीनी उद्योग दो पेटियों में बटा हुआ है
- जिसमें से पहली गंगा यमुना दोआब और तराई प्रदेश है, इसमें मुख्य रूप से लखीमपुर, खीरी बस्ती, गोंडा, गोरखपुर और बहराइच जैसे जिले शामिल है।
- दूसरी गंगा यमुना दोआब में सहारनपुर ,मुजफ्फरनगर, मेरठ, गाजियाबाद, बागपत और बुलंदशहर है।
- बिहार, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश और गुजरात अन्य महत्वपूर्ण चीनी उत्पादक राज्य है।
पेट्रो रसायन उद्योग
- पेट्रो रसायन उत्पादों की बढ़ती मांग के कारण उद्योग भारत में तेजी से विकसित हो रहे है।
- इस श्रेणी के उत्पादों को मुख्य रूप से चार भागों में बांटा जाता है:
- पॉलीमर
- कृत्रिम रेशे
- इलैस्टोमर्स
- पृष्ठ संक्रियक
भारत में पेट्रो रासायनिक उद्योग
- भारत में पेट्रो रासायनिक सेक्टर के अंतर्गत भारतीय रासायनिक एवं पेट्रो रासायनिक विभाग के अंतर्गत 3 संस्थाएं काम कर रही हैं:
भारतीय पेट्रोल रासायनिक कॉरपोरेशन लिमिटेड (IPCL)
- यह विभिन्न प्रकार के पेट्रो रसायन हो जैसे पॉलीमर रेशों और रेशों से बने संक्रिया का निर्माण एवं वितरण करती है।
पेट्रोफिल्स कोऑपरेटिव लिमिटेड (PCL)
- यह पॉलिएस्टर तंतु सूत और नायलॉन चिप्स का उत्पादन करती है।
- यह उत्पादन मुख्य रूप से गुजरात में स्थित वडोदरा एवं नलधारी संयंत्रों में किया जाता है।
सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर प्लास्टिक इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (CIPET)
- यह संस्था पेट्रोकेमिकल उद्योग में प्रशिक्षण प्रदान करती है।
ज्ञान आधारित उद्योग
- वे उद्योग जिनमें विशिष्ट ज्ञान की आवश्यकता होती है, ज्ञान आधारित उद्योग कहलाते है।
- भारतीय सॉफ्टवेयर उद्योग भारत के अर्थव्यवस्था में सबसे तेजी से विकसित हुए सेक्टरों में से एक है।
- भारत में सॉफ्टवेयर उद्योग के विकास से बड़े स्तर पर रोजगार एवं पूंजी का सृजन हुआ है।
नई उद्योगिक नीति
- नई आर्थिक नीति के अंतर्गत विकास के लिए निम्नलिखित उपायों को अपनाया गए: –
- लाइसेंसिंग व्यवस्था की समाप्ति।
- विदेशी निवेश को बढ़ावा।
- खुला व्यापार
- विदेशी प्रौद्योगिकी का निशुल्क प्रवेश।
- देश की आधारिक संरचना का विकास आदि।
भारत में औद्योगिक प्रदेश
- भारत में औद्योगिक प्रदेशों की पहचान निम्नलिखित आधारों पर की जाती है।
- औद्योगिक इकाइयों की संख्या
- औद्योगिक कर्मियों की संख्या
- औद्योगिक देशों के लिए प्रयोग की जाने वाली शक्ति की मात्रा
- कुल औद्योगिक उत्पादन
- कुल औद्योगिक उत्पादन का मूल्य
- इन आधारों पर भारत में मुख्य रूप से निम्नलिखित औद्योगिक क्षेत्रों की पहचान की गई है।
मुंबई – पुणे औद्योगिक प्रदेश
- यह मुंबई ठाणे से पुणे, नासिक तथा शोलपुर जिलों तक विस्तृत है।
- इसका विकास मुंबई में सूती वस्त्र उद्योग की स्थापना के साथ प्रारंभ हुआ।
- 1869 में स्वेज नहर के खुलने के बाद मुंबई पतन का तेजी से विकास हुआ, जिससे इस क्षेत्र को फायदा मिला।
- मुंबई हाई पेट्रोलियम क्षेत्र और नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र की स्थापना की वजह से इस क्षेत्र में औद्योगिक विकास में वृद्धि आई।
- क्षेत्र में मुख्य रूप से अभियांत्रिकी वस्तुएं, पेट्रोल, रासायनिक उद्योग, चमड़ा, प्लास्टिक वस्तुएं, दवाये, उर्वरक, विद्युत वस्तुएं, जलयान, निर्माण आदि उद्योगों का तेजी से विकास हुआ।
- क्षेत्र के मुख्य औद्योगिक केंद्र मुंबई, कोलाबा, कल्याण, थाणे, ट्रांबे, पुणे, नासिक, शोलापुर, कोल्हापुर, अहमदनगर आदि है।
हुगली औद्योगिक प्रदेश
- यह क्षेत्र उत्तर में बाँसबेरिया से दक्षिण में बिडलानगर तक लगभग 100 किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है, जो हुगली नदी के किनारे स्थित है।
- क्षेत्र का विकास हुगली नदी पर पतन बनने के बाद से हुआ।
- क्षेत्र में मुख्य रूप से जूट उद्योग, सूती वस्त्र उद्योग, कागज, इंजीनियरिंग, टेक्सटाइल, मशीनों, विद्युत, रासायनिक, औषधीय, उर्वरक और पेट्रोल आयनिक उद्योगों का तेजी से विकास हुआ।
- क्षेत्र के मुख्य औद्योगिक केंद्र कोलकाता, हावड़ा, हल्दिया, सीरमपुर, रिशरा, काकीनारा, श्यामनगर, बिड़लानगर, बांसबेरिया, त्रिवेणी, हुगली और बेलूर आदि है।
बेंगलुरु, चेन्नई औद्योगिक प्रदेश
- स्वतंत्रता के बाद इन क्षेत्रों का सबसे तेजी से विकास हुआ।
- क्षेत्र में मुख्य रूप से भारी अभियांत्रिकी उद्योग जैसे कि वायु यान, मशीन, उपकरण, टेलीफोन और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे उद्योगों का विकास हुआ।
- इसके अलावा टेक्सटाइल, रेल के डिब्बे, डीजल इंजन, रेडियो, रबड़ का सामान, एलुमिनियम, शक्कर, सीमेंट, कागज, सिगरेट, माचिस, चमड़े आदि उद्योग यहां पर मुख्य रूप से विकसित हुए।
गुजरात औद्योगिक प्रदेश
- इस प्रदेश का केंद्र अहमदाबाद और वडोदरा के बीच स्थित है और यह प्रदेश पश्चिम में जामनगर से लेकर दक्षिण में वलसाद और सूरत तक फैला हुआ है।
- इस प्रदेश के मुख्य औद्योगिक केंद्र अहमदाबाद, वडोदरा, कोयली, आनंद, सुरेंद्रनगर, राजकोट, सूरत, वलसाद और जामनगर हैं।
- इन क्षेत्रों में मुख्य रूप से कपड़ा, पेट्रो रासायनिक उत्पाद, मोटर, ट्रैक्टर, डीजल इंजन, टेक्सटाइल, मशीनें, रंग रोगन, कीटनाशक, चीनी, दुग्ध उत्पाद आदि का उत्पादन किया जाता है।
छोटानागपुर प्रदेश
- यह प्रदेश झारखंड, उड़ीसा और पश्चिमी बंगाल तक फैला है।
- यह प्रदेश मुख्य रूप से भारी धातु उद्योगों के लिए जाना जाता है।
- देश परदेश में छह बड़े एकीकृत लोह इस्पात संयंत्र जमशेदपुर, बर्नपुर, कुल्टी, दुर्गापुर, बोकारो और राउरकेला में स्थापित है।
- एक क्षेत्र के महत्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र है रांची, धनबाद के बादशाह सिंदरी, हजारीबाग, जमशेदपुर, बोकारो, राउरकेला और दुर्गापुर है।
- यहां पर मुख्य रूप से इंजीनियरिंग मशीन, औजार, उर्वरक, सीमेंट, कागज, रेल इंजन एवं भारी विद्युत उद्योग स्थापित है।
विशाखापट्टनम गुंटुर प्रदेश
- यह प्रदेश विशाखापट्टनम जिले से लेकर दक्षिण में कुरनूल और प्रकासम जिले तक फैला हुआ है।
- इस प्रदेश के विकास की शुरुआत विशाखापट्टनम और मछलीपट्टनम पत्तनों के विकास के साथ हुई।
- इस प्रदेश के मुख्य उद्योग शक्कर, वस्त्र, जूट, कागज और उर्वरक, सीमेंट, एलुमिनियम आदि है।
- विशाखापट्टनम, विजयवाड़ा, विजय नगर, गुंटुर, एलुरु, कुरनूल आदि क्षेत्र के महत्वपूर्ण औद्योगिक केंद्र।
गुड़गांव, दिल्ली, मेरठ प्रदेश
- पिछले कुछ समय में इस क्षेत्र के उद्योगों ने बड़ी तेजी से विकास किया है।
- यहां मुख्य रूप से इलेक्ट्रॉनिक, हल्के इंजीनियरिंग और विद्युत उपकरणों आदि के उद्योग स्थापित है।
- इसी के साथ – साथ सूती उन्हें और कृत्रिम रेशा वस्त्र, शक्कर, सीमेंट, मशीन उपकरण, ट्रैक्टर, साइकिल, रासायनिक पदार्थ आदि के उद्योग भी इस क्षेत्र में तेजी से विकसित हो रहे हैं।
- क्षेत्र के प्रमुख औद्योगिक केंद्र दिल्ली, शाहदरा, मेरठ, मोदीनगर, गाजियाबाद ,अंबाला, आगरा और मथुरा है।
कोलम तिरुवनंतपुरम प्रदेश
- योगिक प्रदेश तिरुअनंतपुरम, कोलम, अर्नाकुलम और अल्लापुझा जिलों में फैला हुआ है।
- क्षेत्र के मुख्य उद्योग सूती वस्त्र उद्योग, चीनी, रबड़, माचिस, शीशा, रासायनिक उर्वरक, मछली आधारित उद्योग, कागज, नारियल, रेशा एवं एलुमिनियम उद्योग हैं।
- कोलम, तिरुवनंतपुरम, अलुवा, कोच्चि, अल्लापुझा, पुनालूर आदि इस क्षेत्र के मुख्य औद्योगिक केंद्र हैं।
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